तूने मेरा हाथ पकड़ा
मैं चलने लगा
फिर चलता गया, चलता गया,
चलता गया
पता नही कब हाथ छूटा
या मैंने छुड़ा लिया ...
आँख खुली तो तन्हा सड़क पे
हांफ रहा था
अजनबी आँखों की चुभन
घात लगाए खूनी पंजे
जानता हूं इस सब से बचने का
ढंग माँ
तूने ही तो सिखाया था
जीने का अंदाज़
हालात से जूझने का संकल्प
इन सब से पार पा लूँगा
मुश्किलें भी आसान कर लूँगा
पर एक बार फिर से
तेरी ऊँगली पकड़ने का मन कर
रहा है
बच्चा होने का मन कर रहा है
बता क्या करूं ...
सो जाओ और स्वप्न देखो
जवाब देंहटाएंपर एक बार फिर से
जवाब देंहटाएंतेरी ऊँगली पकड़ने का मन कर रहा है
बच्चा होने का मन कर रहा है
....मन के अन्दर छुपे बच्चे की हर चाह कहाँ पूरी हो पाती है...बहुत भावपूर्ण रचना...
पुत्तर ! दायें हाथ से, ले पोती का साथ ।
जवाब देंहटाएंपकड़ाओ उँगली बड़ी, पकड़ो उसका हाथ ।
पकड़ो उसका हाथ, अनोखा लगता है ना ।
किसको पकड़े कौन, बोलिए मधुरिम बैना ।
माँ का आशिर्वाद, यही तो माँ का उत्तर ।
सदा रहे आबाद, हमारा प्यारा पुत्तर ।।
...वाह !
हटाएंकोई विकल्प नहीं माँ का.
जवाब देंहटाएंनामुमकिन आरजू है ये !
जवाब देंहटाएंआपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति का लिंक लिंक-लिक्खाड़ पर है ।।
जवाब देंहटाएंमैं यहीं हूँ तेरे पास. कर आँखें बंद और ले हाथ में कलम, मुझे महसूस कर पाओगे.
जवाब देंहटाएंतुम्हारी
माँ.
...माँ !
जवाब देंहटाएं"पर एक बार फिर से तेरी उंगली पकडने का मन है "बहुत अच्छी भावात्मक अभिव्यक्ति |
जवाब देंहटाएंआशा
यूँ निराश नहीं होते.........माँ की ऊँगली तो सदा साथ है.....उसके दिए संस्कार उम्र भर राह दिखायेंगे ।
जवाब देंहटाएंआदरणीय दिगम्बर सर इन पंक्तियों ने आँखें नम कर दी. हार्दिक बधाई
जवाब देंहटाएंपर एक बार फिर से
तेरी ऊँगली पकड़ने का मन कर रहा है
बच्चा होने का मन कर रहा है
बता क्या करूं ...
माँ का वो दुलार ही
जवाब देंहटाएंआज यादे बन कर रह गई ,,,उम्दा प्रस्तुति,,
recent post: मातृभूमि,
माँ ... तो हर पल साथ है ... जब महसूस करेंगे तभी वो पास है ...
जवाब देंहटाएंभावमय करते शब्दों का संगम
वाह ! माँ को याद करने का अनोखा अंदाज..
जवाब देंहटाएंपर एक बार फिर से
जवाब देंहटाएंतेरी ऊँगली पकड़ने का मन कर रहा है
बच्चा होने का मन कर रहा है
. यह माँ का अगाध प्यार ही तो है जो रह-रह कर याद आता है ..
स्पर्श में ऊर्जा भरी है...
जवाब देंहटाएंपर एक बार फिर से
जवाब देंहटाएंतेरी ऊँगली पकड़ने का मन कर रहा है
बच्चा होने का मन कर रहा है
बता क्या करूं ...
sahi kaha hai aapne.
पर एक बार फिर से
जवाब देंहटाएंतेरी ऊँगली पकड़ने का मन कर रहा है
बच्चा होने का मन कर रहा है
बता क्या करूं ...
बहुत मुश्किल चाहत
जवाब देंहटाएंहाँ फिर से दोहराता है व्यक्ति बचपन को लौट लौट के जीता है उस माँ को जो हर पल हिफाज़ती छाता ताने रहती ,हमें निर्द्वन्द्व रखती .,माँ के जाने के बाद इस देह लोक से परे .आभार आपकी सद्य टिप्पणियों का .
बहुत ही मार्मिक लिखा आपने, शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
खुबसूरत अभिवयक्ति.....
जवाब देंहटाएंमाँ तेरे आँचल में आकाश ,तेरी आँखों में संसार ,ममता से तेरी ये धरती बंधी हैं।ऊँगली मैं तेरी थामे रहूंगा।प्राणों में मेरे तेरी ही शक्ति।तेरा ही जीवन हैं-मेरी नहीं माँ तेरी ही हैं - ये मेरी सी काया . हर बच्चे की जिजीविषा उसकी माँ हे। माँ कहा नहीं हैं।।एक बालक का आकाश ,उसका संसार उसकी माँ की ममता का ही तो विशाल विस्तार हैं। जैसे कोई राजा अंपनी प्रजा और अपने राज्य विस्तार के लिए तडपे ..बेटी और बेटे को माँ के आशीर्वाद ,प्यार और उसकी ममता के विस्तार के लिए तडपना चाहिए ही।किन्तु बालक को यह ज्ञात रहे उसकी जिजीविषा ही उसकी माता द्वारा प्रद्दत ममता का विस्तार संभव बनाएगी।।।।।अर्थात जीवन की ललक उतनी ही तीव्र रहे जितना तीव्र माँ का प्यार ....जिजीविषा उतनी ही विशाल बने जितना माँ का आँचल।।।
जवाब देंहटाएंपर एक बार फिर से
जवाब देंहटाएंतेरी ऊँगली पकड़ने का मन कर रहा है
बच्चा होने का मन कर रहा है...ये तो हम सभी की चाहत है.जो मुश्किल है..
कहाँ उत्तर मिलते हैं ऐसे प्रश्नों के, मर्मस्पर्शी
जवाब देंहटाएंमन माँ की ऊँगली में जाने कितने हल पाता है ........ चलना आ जाने से, एक बड़ा-छोटा घर होने से क्या ... माँ की गोद आकाश,धरती सब लगती है
जवाब देंहटाएंतूने ही तो सिखाया था
जवाब देंहटाएंजीने का अंदाज़
हालात से जूझने का संकल्प
इन सब से पार पा लूँगा
मुश्किलें भी आसान कर लूँगा
बहुत सुन्दर.....!
कई बार इंसान के जीवन में ऐसे पल आते हैं जब वो र्सिफ अपनी मां की उंगली पकड़ना चाहता है....भावपूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंप्रभावशाली ,
जवाब देंहटाएंजारी रहें।
शुभकामना !!!
आर्यावर्त (समृद्ध भारत की आवाज़)
आर्यावर्त में समाचार और आलेख प्रकाशन के लिए सीधे संपादक को editor.aaryaavart@gmail.com पर मेल करें।
भावपूर्ण प्रस्तुति .कविता में मन के भीतर की टीस सुनायी देती है .
जवाब देंहटाएं.......
उनकी उंगली पकडना ...ख्यालों में ही अब ये मुमकिन है.
प्रभावशाली ,
जवाब देंहटाएंजारी रहें।
शुभकामना !!!
आर्यावर्त (समृद्ध भारत की आवाज़)
आर्यावर्त में समाचार और आलेख प्रकाशन के लिए सीधे संपादक को editor.aaryaavart@gmail.com पर मेल करें।
जवाब देंहटाएंआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 17-01-2013 को यहाँ भी है
.... आज की नयी पुरानी हलचल में ....
.. आज की नयी पुरानी हलचल में ...फिर नया दिनमान आया ......संगीता स्वरूप
. .
पर एक बार फिर से
जवाब देंहटाएंतेरी ऊँगली पकड़ने का मन कर रहा है
बच्चा होने का मन कर रहा है
बता क्या करूं ...
marmik panktiyaan ...
अनूठी यादें ताजा हो गयी। बेहतरीन रचना।
जवाब देंहटाएंसादर
मधुरेश
अब दूसरों को अपनी अँगुली का सहारा देने की बारी है !
जवाब देंहटाएंgood one
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंपर एक बार फिर से
तेरी ऊँगली पकड़ने का मन कर रहा है
बच्चा होने का मन कर रहा है
बेहतरीन रचना।
New post कुछ पता नहीं !!! (द्वितीय भाग )
New post: कुछ पता नहीं !!!
पर एक बार फिर से
जवाब देंहटाएंतेरी ऊँगली पकड़ने का मन कर रहा है
बच्चा होने का मन कर रहा है
बता क्या करूं ... काश इस बात का जवाब कोई दे पाता ...माता पिता को खोने का दुःख ....:(
माँ की दी हुई शिक्षा हमेशा साथ रहती है... और माँ की उंगली पकड़ने की ख्वाहिश.... बहुत मासूम ! जब भी हम ज़िंदगी के रास्तों में उलझते हैं... माँ ही याद आती है...
जवाब देंहटाएं~सादर!!!
बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति .....आप भी पधारो आपका स्वागत है मेरा पता है ...http://pankajkrsah.blogspot.com
जवाब देंहटाएंbahut bahut..khoob.
जवाब देंहटाएंdil ki chhu gyi apki rachna,
maa ke hath ka koi sani nhi..
मन को छूते और भिगोते भाव....
जवाब देंहटाएंसादर
अनु
अति सुंदर कृति
जवाब देंहटाएं---
नवीनतम प्रविष्टी: गुलाबी कोंपलें
Maa jaisa duniya me koi nhi...
जवाब देंहटाएंsundar Rachna ke leye , Badhai
http://ehsaasmere.blogspot.in/2013/01/blog-post_5971.html
"एक बार फिर से
जवाब देंहटाएंतेरी ऊँगली पकड़ने का मन कर रहा है
बच्चा होने का मन कर रहा है"
अंतस के कपाटों पर दस्तक दे गई
किसी अपने के चले जाने के बाद बहुत से प्रश्न मन में अधूरे ही रहते हैं ...अधूरे सपनों जैसे
जवाब देंहटाएंपर एक बार फिर से
जवाब देंहटाएंतेरी ऊँगली पकड़ने का मन कर रहा है
बच्चा होने का मन कर रहा है
बता क्या करूं ...
बहुत खुब....
बेहतरीन लिखे हैं सर!
जवाब देंहटाएंसादर
कुछ भी हो हौसला तो बनाए रखना होगा आंटी!
जवाब देंहटाएंसादर
dil to bachcha hai ji..
जवाब देंहटाएंअहा बचपन
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति... बच्चा होने को चाहता है मन फिर से
जवाब देंहटाएंमाँ की ऊंगली थामे बच्चे को देखना कितना सुखद है.... और माँ कहीं भी क्यों न हो, बच्चे को यूँ ही हांफते कैसे छोड़ सकती है?
जवाब देंहटाएंबहुत कुछ सोंचने पर विवश करती सटीक अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंहाँ सालों साल पीछा कर्ट हैं माँ की यादें .शुक्रिया आपकी सद्य टिप्पणियों का .आज भी पीछा करती है वह जबकि उसने एक नवम्बर ,1997 को ही शरीर छोड़ महाप्रयाण किया था .हम अपने आप को वहीँ पाते हैं जहां थे उसके समक्ष .
जवाब देंहटाएंकाश वह उंगली फिर मिले ...!
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं !
बचपन कभी लौटकर नहीं आता ,,,,
जवाब देंहटाएंलेकिन जिन्दा रहता है हमारे अन्दर (अगर हम उसे ना मारे तो ),,,
और माँ का साथ तो हमेशा ही अच्छा लगता है
सुन्दर भावाबिव्यक्ति ..
सादर .
माँ कभी दूर नहीं जाती, वो हमेशा हमारे लिए अपने एहसास छोड़ जाती है, वो किसी भी दुनिया में क्यूँ न हो हमेशा अपना आशीष देती रहती है !!
जवाब देंहटाएंNew Post
Gift- Every Second of My life.
माँ के सामीप्य का अहसास ही एक नयी उर्जा प्रदान करता है. सुंदर भावपूर्ण प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंमाँ कितना सुकून देता है यह शब्द । माँ सी और कोई नही ।
जवाब देंहटाएंkya baat kahi......
जवाब देंहटाएंतूने ही तो सिखाया था
जवाब देंहटाएंजीने का अंदाज़
हालात से जूझने का संकल्प ...
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.
तहे दिल से शुक्रिया आपकी ताज़ा टिपण्णी के लिए
जवाब देंहटाएंबहुत ही भावपूर्ण अभिव्यक्ति ...
जवाब देंहटाएंभाई साहब !गृह मंत्री, भारत सरकार तो अब 'भारत धर्मी समाज 'को ही' कश्मीरी पंडित' बनाने पर आमादा है .आप भारत धर्मी समाज को पहले संकुचित अर्थों में 'हिन्दू' कहतें हैं फिर हिन्दू संगठन
जवाब देंहटाएंफिर
आतंकवादियों का प्रशिक्षण स्थल . .पूर्व में उपाध्यक्ष कांग्रेस राहुल गांधी भी हिन्दू आतंकवाद को जिहादी आतंकवाद से ज्यादा खतरनाक बतला चुके हैं .इन अभागे सेकुलरों को नहीं मालूम -जिहादी
का धर्म क्या होता है .जिहादी इस्लाम की श्रेष्ठता के कायल हैं जो मुसलमान नहीं है इस्लाम को नहीं मानता वह काफिर है सर कलम कर दो उसका यही फरमान है इनका .फतुवा खोर नहीं हैं हिन्दू
और वृहद् हिन्दू समाज बोले तो भारत धर्मी समाज .हम बिलकुल नहीं कहते मुस्लमान आतंकी हैं अलबत्ता जो भी आतंकी पकड़ा जाता है मुसलमान ही निकलता है .हिन्दू आतंक प्रोएक्टिव पालिसी
नहीं हैं छिटपुट प्रतिक्रिया है मिस्टर टिंडे .
वह वक्र मुखी भोपाली बाज़ीगर फिर बोला है कहता है मैं जो बात दस सालों से कह रहा हूँ ,गृह मंत्री आज कह रहें हैं .यही ढोंग है जयपुर चिंतन शिविर का .
शुक्रिया आपकी ताज़ा टिपण्णी का
बहुत अच्छी कविता |
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंदिल की गहरायी से लिखी है इसी लिए तो दिल को छू रहे है हर शब्द
जवाब देंहटाएंशायद पहली बार आपके ब्लॉग में आया
और तृप्त हो गया
बहत खूब दिगम्बर जी ..
इन सब से पार पा लूँगा
जवाब देंहटाएंमुश्किलें भी आसान कर लूँगा
पर एक बार फिर से
तेरी ऊँगली पकड़ने का मन कर रहा है !
मेरा भी मन कर रहा है आपकी कविता पढ़ कर !
सुन्दर ....बहुत सुन्दर.....बहुत बहुत सुन्दर...
तूने ही तो सिखाया था
जवाब देंहटाएंजीने का अंदाज़
हालात से जूझने का संकल्प
nice lines.
माँ शब्द ही पढने को प्रेरित करता है... और सच ही तो है...
जवाब देंहटाएंतुम सा कोई पूज्य नहीं माँ
तुम सब देवों से बढ़ कर हो माँ
सादर...