धूप तब भी नहीं चुभी
की साया था तेरी घनी छाँव
का
मेरे आसमान पर
ओर धूप तेरे जाने के बाद भी
नहीं चुभी
की तेरी यादों की धुंध
बादलों की घनी छाँव बन के
डटी रही सूरज के आगे
जानता हूं
समय की बेलगाम रफ़्तार ने
सांसों के प्रवाह से
तुझे मुक्त कर दिया
पर मेरे वजूद में शामिल
तेरा अंश
मेरे रहते
आसान तो न होगा
उसे मुक्त करना ...
बहुत सुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति राजनीतिक सोच :भुनाती दामिनी की मौत आप भी जाने मानवाधिकार व् कानून :क्या अपराधियों के लिए ही बने हैं ?
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया -
जवाब देंहटाएंमाँ रोम रोम में -
असंभव - अंश कभी नहीं मिट सकता
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंजानता हूं
समय की बेलगाम रफ़्तार ने
सांसों के प्रवाह से
तुझे मुक्त कर दिया
पर मेरे वजूद में शामिल तेरा अंश
मेरे रहते
आसान तो न होगा
उसे मुक्त करना
बिलकुल सच कहा अपने - समय को मात देती रचना:
New post बिल पास हो गया
New postअनुभूति : चाल,चलन,चरित्र
...माँ
जवाब देंहटाएंपर मेरे वजूद में शामिल तेरा अंश
जवाब देंहटाएंमेरे रहते
आसान तो न होगा
उसे मुक्त करना ...
वजूद वजूद से कैसे जुदा हो सकता है वो तो साँसें रहते तक साथ ही रहता है
उम्मीद करते है की धुप आगे भे न चुभेगी क्योंकि मा का आशीर्वाद हमेशा साथ जो रहता है !
जवाब देंहटाएंयादें भी क्या चीज है,बहुत ही सुन्दर
जवाब देंहटाएंमाता के ऋण से कोई भी उऋण नहीं हो सकता!
जवाब देंहटाएंसुन्दर और सार्थक लेखन!
जानता हूं
जवाब देंहटाएंसमय की बेलगाम रफ़्तार ने
सांसों के प्रवाह से
तुझे मुक्त कर दिया
पर मेरे वजूद में शामिल तेरा अंश
मेरे रहते
आसान तो न होगा
उसे मुक्त करना ...
अति सुंदर।।।
मुक्त हो ही नहीं सकता.
जवाब देंहटाएंहाँ मैं मानता हूँ और अच्छी तरह से जानता हूँ वही अंश तो तेरा साया है .शुक्रिया आपकी सद्य टिपण्णी के लिए .आपकी टिपण्णी हमारी उत्प्रेरक बनती है .
जवाब देंहटाएंkisi ke liye asan nhi....
जवाब देंहटाएंthanx for sharing....
जवाब देंहटाएंकभी नहीं ! सवाल ही नहीं .....
जवाब देंहटाएं~सादर !!!
Wonderful sir ji!
जवाब देंहटाएंजानती हूँ ये महज कविता नहीं.....
जवाब देंहटाएंभावनाओं पर क्या टिप्पणी करूँ..
सादर
अनु
तभी तो बच्चे माँ के कलेजे के टुकड़े कहलाते हैं... नामुमकिन है, अपने वजूद में शामिल उसके अंश को मुक्त कर पाना..
जवाब देंहटाएंमां तो मां ही है. शब्दों में प्यार उतर आया है.
जवाब देंहटाएंहम जाते कहाँ हैं? पुश्त दर पुश्त अपने में जाते रहते हैं कितनी पीढ़ियाँ धड़क रही हैं हमें। माँ इतनी अभिन्न होती हैं हमसे सदा हमारे साथ रहती हैं हममें भौतिक रूप से और यादों में आत्मा के सूक्ष्म अंश के रूप में
जवाब देंहटाएंमाँ
जवाब देंहटाएंहर पल औलाद के खातिर दुआ करती है माँ,
और माँ होने का हक ऐसे अदा करती है माँ!
जिंदगी की धूप में खुद को खड़ा करती है वो,
और बच्चों के लिये साया घना करती है माँ!
घर में बूढ़े बाप से अक्सर उलझ जाती है वो,
लड़कर भी बेटों के हक् में फैसला कराती माँ!
जब तलक बाहर से बेटा लौट कर आता नही,
आँख चौखट पर लगाए जगा करती है वो माँ!
उम्र काफी हो चली मेरी याद आती है मेंरी माँ,
आज भी नजरें उतारती"धीर"की होती जो माँ!
RECENT POST बदनसीबी,
jo wazood ka hissa ho use kaise bhulaya jaa sakta hai..
जवाब देंहटाएंhar pal /har kshn uske paas hone ka ahsaas rahega.
मर्म को छूती अभिव्यक्ति.....
जवाब देंहटाएंओर धूप तेरे जाने के बाद भी नहीं चुभी
जवाब देंहटाएंकी तेरी यादों की धुंध
बादलों की घनी छाँव बन के
डटी रही सूरज के आगे
बहुत सुन्दर भाव
समय की बेलगाम रफ़्तार ने
सांसों के प्रवाह से
तुझे मुक्त कर दिया
पर मेरे वजूद में शामिल तेरा अंश
मेरे रहते
आसान तो न होगा
उसे मुक्त करना ...
मां हमेशा हमारे साथ ही होती है ...
आपकी रचना भाव-विह्वल कर रही है ...
आदरणीय भाई दिगम्बर नासवा जी
सितंबर-अक्तूबर-नवंबर में आपके ब्लॉग के कई चक्कर लगाता रहा ...
फिर कुछ अव्यवस्थाओं के चलते , नेट की समस्या के कारण आपके यहां बहुत विलंब से पहुंच पाया ...
पिछली तमाम पोस्ट्स पढ़ कर ... आपकी माता जी के स्वर्गवास के बारे में जान कर मन भर आया ... अश्रुपूरित श्रद्धांजलि !
परमपिता परमात्मा आप अब को यह अपूरणीय क्षति और आघात सहने की सामर्थ्य दे ...
भाईजी स्वयं को सम्हालें , सबको एक दिन चले ही जाना है ...
आप इस मनःस्थिति से उबरने का यत्न करें , कृपया !
राजेन्द्र स्वर्णकार
माँ को नमन !
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन: ताकि आपकी गैस न निकले - ब्लॉग बुलेटिन आज की ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
आत्मीय अभिव्यक्ति | आभार
जवाब देंहटाएंTamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
...माँ की जगह कोई नही ले सकता...बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंआँखें नम हो गयी पढ़कर.
जवाब देंहटाएंओर धूप तेरे जाने के बाद भी नहीं चुभी
जवाब देंहटाएंकी तेरी यादों की धुंध
बादलों की घनी छाँव बन के
डटी रही सूरज के आगे
बेहद खूबसूरत
गहन भावात्मक पोस्ट।
जवाब देंहटाएंaakhiri panktiyan achhi lagi.
जवाब देंहटाएंओर धूप तेरे जाने के बाद भी नहीं चुभी
जवाब देंहटाएंकी तेरी यादों की धुंध
बादलों की घनी छाँव बन के
डटी रही सूरज के आगे
मन यादों से कभी मुक्त नहीं होगा ...
हृदयस्पर्शी भाव लिए रचना...
जवाब देंहटाएंहाँ! कुछ ऐसी भी बातें होती है जिसे असंभव कहा जता है ..आखिरी सांस तक..
जवाब देंहटाएंपर मेरे वजूद में शामिल तेरा अंश
जवाब देंहटाएंमेरे रहते
आसान तो न होगा
उसे मुक्त करना ...
बहुत मार्मिक पंक्तियाँ है !
मां से लगाव
जवाब देंहटाएंकी आपकी गति
सचमुच यही जीवन की सद्गति
शुक्रिया आपकी टिपण्णी का .
जवाब देंहटाएंतुझे ढूंढते नैन बाँवरे ,
तू है नैनों की परिभाषा .
ओर धूप तेरे जाने के बाद भी नहीं चुभी
जवाब देंहटाएंकी तेरी यादों की धुंध
बादलों की घनी छाँव बन के
डटी रही सूरज के आगे
बेहद खूबसूरत ....माँ की जगह कोई नही ले सकता....... नासवा जी
ममतामयी आँचल की छाया सी कविता .
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंओर धूप तेरे जाने के बाद भी नहीं चुभी
की तेरी यादों की धुंध
बादलों की घनी छाँव बन के
डटी रही सूरज के आगे khuubsurat panktiya
माघ, मूसलाधार, मैं पोस्ट पर आपकी महत्वपूर्ण टिप्पणी स्पैम में चली गई। ऐसा जुल्म न करें।
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण लेखनी
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण रचना |
जवाब देंहटाएंसतत तारतम्य!
जवाब देंहटाएंगहरे भाव लिए रचना |
जवाब देंहटाएंआशा
पर मेरे वजूद में शामिल तेरा अंश
जवाब देंहटाएंमेरे रहते
आसान तो न होगा
उसे मुक्त करना ...
बहुत बहुत बहुत ही खूबसूरत एवं भावपूर्ण रचना ! शरीर का रोम रोम माँ का ही अंश तो है उसे अपने से दूर करना कभी संभव ही नहीं ! बहुत उम्दा प्रस्तुति !
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 07-02 -2013 को यहाँ भी है
जवाब देंहटाएं....
आज की हलचल में .... गलतियों को मान लेना चाहिए ..... संगीता स्वरूप
.
मेरे रहते
जवाब देंहटाएंआसान तो न होगा
उसे मुक्त करना ...
भावमय करते शब्द ... मन को छूती पोस्ट
माता के प्रति श्रद्धा सुमन अर्पण करने का बेहतरीन प्रयास ,माँ के मातृत्व का पावन सानिध्य परोक्ष रूप से आज भी आप के साथ है ,अच्छी रचना के लिए साधुवाद
जवाब देंहटाएंsundar shrdha suman..
जवाब देंहटाएंशुक्रिया भाई साहब आपकी जनउपयोगी टिपण्णी का .
जवाब देंहटाएंगहन एवं मर्मस्पर्शी ...बहुत सुंदर रचना ....
जवाब देंहटाएंNice one. Thanks for sharing.
जवाब देंहटाएंधूप तब भी नहीं चुभी
जवाब देंहटाएंकी साया था तेरी घनी छाँव का
मेरे आसमान पर.
गहरे भाव लिए रचना.
माँ की ममता की छांव सदा ऐसे ही रंग दिखलाती है ....
जवाब देंहटाएंबहुत भावपूर्ण गहन शब्द वाह शानदार रचना हार्दिक बधाई
जवाब देंहटाएंbahut sunder prastuti
जवाब देंहटाएंसुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंmaa to bas maa hai!
जवाब देंहटाएंbahut bhavnatmak ..dil se judi ...
जवाब देंहटाएंsahi bat......
जवाब देंहटाएंkya baat hai......
जवाब देंहटाएंमर्मस्पर्शी रचना! हमारे अपने हमें कभी नहीं छोड़ते, अशरीरी रूप मे भी सदा साथ रहते हैं।
जवाब देंहटाएंआज तलक वह मद्धम स्वर
जवाब देंहटाएंकुछ याद दिलाये, कानों में !
मीठी मीठी धुन लोरी की ,
आज भी आये , कानों में !
आज मुझे जब नींद न आये,कौन सुनाये आ के गीत ?
काश कहीं से,मना के लायें,मेरी माँ को, मेरे गीत !
bahot umda, Sir!
जवाब देंहटाएंbahut sunder abhivyakti..
जवाब देंहटाएंपर मेरे वजूद में शामिल तेरा अंश
जवाब देंहटाएंमेरे रहते
आसान तो न होगा.....वाह बहुत शानदार भाव पिरोये हैं आपने रचना मे।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया आपकी टिपण्णी के लिए .हमारी महत्वपूर्ण धरोहर बन जातीं हैं आपकी टिप्पणियाँ .उत्प्रेरक का काम करतीं हैं आपकी टिप्पणियाँ .नव सृजन की आंच बनतीं हैं .
MARMIK ABHIVYAKTI .
जवाब देंहटाएंमाँ पर लिखी सुन्दर कविता |माँ का चरित्र ही किसी अच्छी कविता से भी उपर होता है बहुत उपर |आभार
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत ....
जवाब देंहटाएंhttp://ehsaasmere.blogspot.in/2013/02/blog-post_11.html
लाजवाब अभिव्यक्ति ...
जवाब देंहटाएंहर पंक्ति, हर शब्द बेजोड़
बहुत खूब ..
शुक्रिया भाई जान आपकी सद्य टिपण्णी का .
जवाब देंहटाएंबहुत ही खूबसूरत लिखा है बॉस....सांसों की डोर टूट सकती है पर जो अंदर रक्त मज्जा में बसा है उसे कौन अलग कर सकता है हमसे। मां पिता इसी तरह होते हैं आप उन्हें नश्वर संसार में देख नहीं सकते पर अपने अंदर अपनी रगों में हर वक्त हर अच्छे बुरे काम को करते वक्त महसूस जरुर करत हैं।
जवाब देंहटाएंभावुक कर गये...
जवाब देंहटाएंbahut sundar rachna hai, maa ka sath duniya ka sabse behtar aur surakshit saath hai, maa ki jagah koi nahi le sakta...aap pi kavitaon me maa ke liye itna sthaan dekhkar achhchha lagta hai!
जवाब देंहटाएंमुबारक बाद. ऐसे ही लिखते रहें .
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और मर्मिक.
माँ पर आपकी रचनाएँ यूं ही पढने को मिलती रहे ..यही शुभकामनाएं हैं
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