स्वप्न मेरे: कहाँ हो तुम ...

मंगलवार, 12 फ़रवरी 2013

कहाँ हो तुम ...


ये सड़कें, घर, फूल-पत्ते, अड़ोसी-पड़ोसी 
सभी तो उदास हैं 

तेरे चले जाने के बाद  
लगा की इस शहर में लौटने की वजह खत्म हो गई   
बीती उम्र की पक्की डोर ... झटके में टूट गई  

पर ऐसा हो न सका 

कुछ ही दिनों में 
शहर की हर बात याद आने लगी 
यादों का सैलाब 
हर वो मुकाम दिखाने लगा 
जहाँ की खुली हवा में तूने सांस लेना सिखाया        
ऊँगली पकड़ के चलना सिखाया   

लौटने को मजबूर हो गया उन रास्तों पर  

हालांकि जहाँ तुम नहीं हो   
उस शहर आना आसान नहीं 

पर न आऊं तो जी पाना भी तो मुमकिन नहीं  

क्या करूं ... 
अजीब सी प्यास सताती है अब हर वक़्त 
बंजारा मन कहीं टिक नहीं पाता 

सुना है इन तारों में अब तुम भी शामिल हो 
कहाँ हो तुम माँ ... 

61 टिप्‍पणियां:

  1. माँ का जाना सर से छाया का जाना है ... माँ का जाना इस जहान में अकेला छुट जाना है ..वक़्त लगेगा

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  2. माँ के हर नाम की धड़कन पे
    यह उम्र भर की भटकन है .....
    शुभकामनायें!

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  3. माँ जो होकर भी अदृश्य ही रहती है..पर न होकर आस-पास लगती है..

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  4. माँ का साया हमेशा बेटों के ऊपर रहता है,

    RECENT POST... नवगीत,

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  5. माँ जाकर भी कहीं नहीं जाती
    गर्भनाल का रिश्ता मृत्यु से भी नहीं टूटता

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  6. तारों में शुमार हो के सही लेकिन माँ की अनवरत रौशनी तो मिलनी ही है.

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  7. बहुत भाव पूर्ण रचना है नासवा जी |
    आशा

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  8. ओह ! ये पुकारती हुई पुकार उद्वेलित कर देती है..

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  9. मां का विछोह बडी वेदना देता है पर पृकृति का नियम है. वक्त के साथ साथ सामंजस्य बैठ ही जाता है.

    रामराम.

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  10. बहुत दिनों से गजल नहीं पढ़ी है-
    पढ़ना है आदरणीय -

    पाया सबने प्रेम नित, सच्चा आशिर्वाद |
    कई पडोसी कष्ट में, करते थे फ़रियाद |
    करते थे फ़रियाद, होय माँ दुख में शामिल |
    सेवा औषधि प्यार, बना दे उनको काबिल |
    ऊँगली उनकी पकड़, राह सच्ची दिखलाया |
    मानव मन की छोड़, हँसे पक्षी चौपाया ||

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  11. हालांकि जहाँ तुम नहीं हो
    उस शहर आना आसान नहीं

    पर न आऊं तो जी पाना भी तो मुमकिन नहीं

    मुमकिन हो भी नहीं सकता कभी...क्यूंकि बस अब एक यही वजह तो रह जाती है यादें बनकर जीने के लिए जो यह एहसास करा सकें की माँ दूर होकर भी कभी पूरी तरह दूर नहीं हो पाती दिल से...बेहद भावपूर्ण अभिव्यक्ति।

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  12. Bhavpurna Rachna ... Badhai ..
    http://ehsaasmere.blogspot.in/2013/02/blog-post_11.html

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  13. माँ कहीं नहीं जाती, कहीं जा ही नहीं सकती.

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  14. माँ की यादों को भुलाना आसान नही है,बहुत ही भावपूर्ण प्रस्तुती,आभार।

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  15. दिवंगत आत्मा को याद करने और नित श्रधांजली का यह अंदाज भी उम्दा है, नासवा साहब !

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  16. सिर्फ सशरीर ही तो नहीं हैं......उनकी आत्मा ...उनका आशीर्वाद तो सदा हमारे साथ है ...और रहेगा

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  17. सच है शहर का वजूद लोगों से होता है .परिवेश लोग खडा करते हैं और जब वह नहीं रहते शहर अक्सर नाकारा हो जाता है .पर ऐसा होते होते वक्त लग जाता है और मामला माँ को हो तो नियम

    अपवाद बन जाता है .मार्मिक प्रसंग .शुक्रिया आपकी टिपण्णी का .

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  18. आपका दुखी रहना माँ को दुखी करेगा...अब बसंत ऋतु पर अच्छी सी रचना डालिए|

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  19. उस शहर में जाना बहुत मुश्किल.... जहाँ माँ नहीं... सिर्फ़ उसकी यादें ही बची हों......
    ~सादर!!!

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  20. माँ की यादें उस शहर में वापस भी लाती हैं जहां आना मुमकिन नहीं लगता .... मार्मिक रचना

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  21. बहुत सुंदर ,एक भावुक कविता .

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  22. apnom ka pyar dil ke raaste se hokar aatma mein utar jata hai.Rooh jab bolti hai toaise hi bolti hai.

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  23. भावभीनी रचना।
    लेकिन जिंदगी चलते रहने का ही नाम है।

    शुभकामनायें नास्वा जी।

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  24. सुना है इन तारों में अब तुम भी शामिल हो

    हृदयस्पर्शी ....

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  25. कहीं नहीं गईं वे-आचार-विचार,संस्कार सभी में अदृष्य व्याप्ति और किसकी हो सकती है!

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  26. हालांकि जहाँ तुम नहीं हो
    उस शहर आना आसान नहीं

    पर न आऊं तो जी पाना भी तो मुमकिन नहीं

    क्या करूं ...
    अजीब सी प्यास सताती है अब हर वक़्त
    बंजारा मन कहीं टिक नहीं पाता

    सुना है इन तारों में अब तुम भी शामिल हो
    कहाँ हो तुम माँ ...
    बहुत मार्मिक रचना !

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  27. भावपूर्ण रचना.
    मन के कोने में बसी है वो आप के अंतर में मुस्कुराती हुई हर रोज आप को आशीष देती हुई हर जगह किसी न किसी रूप में नज़र आएगी..बस देखने का प्रयास करें.

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  28. कहाँ हैं माँ???
    यहीं तो हैं...उंगली थामे हैं अब भी....
    :-(

    सादर
    अनु

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  29. मार्मिक और ह्रदय स्पर्शी ,माँ के प्रेम का और सहचर्य की याद को शब्दों में ढालने का सार्थक प्रयास ,शुभकामनाये

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  30. .शुक्रिया आपकी टिपण्णी का .

    कहाँ हो तुम ...

    ये सड़कें, घर, फूल-पत्ते, अड़ोसी-पड़ोसी
    सभी तो उदास हैं

    तेरे चले जाने के बाद
    लगा की इस शहर में लौटने की वजह खत्म हो गई
    बीती उम्र की पक्की डोर ... झटके में टूट गई


    सच है : शहर और गीतों से व्यक्ति और गुज़रे वक्त की यादें बा -वास्ता होतीं हैं .लागी छूटे न ...लगन ,अपनों के कर्म



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  31. सुना है इन तारों में अब तुम भी शामिल हो
    कहाँ हो तुम माँ ...
    ....वहां से भी माँ देखती होगी ...
    ,माँ की यादों से लिपटी मन उदेलित करती प्रस्तुति ..

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  32. माँ की ममता, उनका आशीर्वाद

    से कोई भी वंचित न हो ....बहुत ही

    मार्मिक रचना ......आभार

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  33. ये ही एक रिश्ता है जो हर हाल में आपके साथ जुड़ा होता है..मां-पिता हर हाल में आपेके साथ होते है ..कुछ भी करिए अच्छा या बुरा..वो एक बार सामने आ ही जाते हैं..

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  34. सुन्दर प्रस्तुति बहुत ही अच्छा लिखा आपने

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  35. सुना है इन तारों में अब तुम भी शामिल हो
    कहाँ हो तुम माँ ...
    माँ तो कहीं गई ही नहीं ... पहले भी साथ थीं ..
    अब भी ...
    सादर

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  36. तेरे चले जाने के बाद
    लगा की इस शहर में लौटने की वजह खत्म हो गई
    बीती उम्र की पक्की डोर ... झटके में टूट गई-------
    अतीत के गहन अनुभूति/मन से निकली बात
    बहुत बहुत बधाई



















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  37. बहुत ही मार्मिक रचना .....

    आज तो माँ शारदे साथ हैं .....!!

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  38. हर हफ्ते हम सरोज स्मृति का एक छोटा अंश यहाँ पढ़ते हैं और हमारे मन में न जाने माँ के कितने बिंब प्रगट हो जाते हैं।

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  39. माँ..होतीं तो क्या नहीं होता..
    माँ नहीं..तो कुछ भी नहीं..

    बहुत सुन्दर रचना..!!!

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  40. प्रकृति कितना साथ देती है हम अपने अन्दर की उदासी उस पर आरोपित कर देते हैं -खामोश पेड़ पत्ते ,जड़ पवन ....शुक्रिया आपकी टिपण्णी का .गहरी नदी का मौन .....मेरे अन्दर भी एक नदी थी ...अब मौन है ....

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  41. आज तलक वह मद्धम स्वर
    कुछ याद दिलाये, कानों में !
    मीठी मीठी धुन लोरी की ,
    आज भी आये , कानों में !
    आज मुझे जब नींद न आये, कौन सुनाये आ के गीत ?
    काश कहीं से, मना के लायें , मेरी माँ को , मेरे गीत !

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  42. क्या खूब कहा आपने वहा वहा क्या शब्द दिए है आपकी उम्दा प्रस्तुती
    मेरी नई रचना
    प्रेमविरह
    एक स्वतंत्र स्त्री बनने मैं इतनी देर क्यूँ

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  43. दिगंबर जी आप शब्दों के जादूगर हैं या कहें कि जज्बातों को ब्यक्त करने बाले कलाकार . आप की कबिता में जो कशिश होती है उसके खातिर कबिता काफी समय तक जहन में रहती है. मुबारक बाद. ऐसे ही लिखते रहें .

    बहुत सुन्दर और मर्मिक.

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  44. दुनयावी रिश्ते टुटा करते है , रूहानी नहीं !!


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  46. माँ तो दिल की धडकनों में है सितारों में कहाँ ढूंढ रहे हैं ..दिलकश

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आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है