ये सड़कें, घर, फूल-पत्ते,
अड़ोसी-पड़ोसी
सभी तो उदास हैं
तेरे चले जाने के बाद
लगा की इस शहर में लौटने की
वजह खत्म हो गई
बीती उम्र की पक्की डोर ...
झटके में टूट गई
पर ऐसा हो न सका
कुछ ही दिनों में
शहर की हर बात याद आने लगी
यादों का सैलाब
हर वो मुकाम दिखाने लगा
जहाँ की खुली हवा में तूने
सांस लेना सिखाया
ऊँगली पकड़ के चलना सिखाया
लौटने को मजबूर हो गया उन
रास्तों पर
हालांकि जहाँ तुम नहीं हो
उस शहर आना आसान नहीं
पर न आऊं तो जी पाना भी तो
मुमकिन नहीं
क्या करूं ...
अजीब सी प्यास सताती है अब
हर वक़्त
बंजारा मन कहीं टिक नहीं
पाता
सुना है इन तारों में अब
तुम भी शामिल हो
कहाँ हो तुम माँ ...
बहुत भावभीनी ।
जवाब देंहटाएंमाँ का जाना सर से छाया का जाना है ... माँ का जाना इस जहान में अकेला छुट जाना है ..वक़्त लगेगा
जवाब देंहटाएंaah! ek tees si uthi jab ye kavita padhi!
जवाब देंहटाएंमाँ के हर नाम की धड़कन पे
जवाब देंहटाएंयह उम्र भर की भटकन है .....
शुभकामनायें!
भावप्रवण रचना
जवाब देंहटाएंमाँ जो होकर भी अदृश्य ही रहती है..पर न होकर आस-पास लगती है..
जवाब देंहटाएंमाँ का साया हमेशा बेटों के ऊपर रहता है,
जवाब देंहटाएंRECENT POST... नवगीत,
माँ जाकर भी कहीं नहीं जाती
जवाब देंहटाएंगर्भनाल का रिश्ता मृत्यु से भी नहीं टूटता
तारों में शुमार हो के सही लेकिन माँ की अनवरत रौशनी तो मिलनी ही है.
जवाब देंहटाएंबहुत भाव पूर्ण रचना है नासवा जी |
जवाब देंहटाएंआशा
ओह ! ये पुकारती हुई पुकार उद्वेलित कर देती है..
जवाब देंहटाएंमां का विछोह बडी वेदना देता है पर पृकृति का नियम है. वक्त के साथ साथ सामंजस्य बैठ ही जाता है.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बहुत सुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति अफज़ल गुरु आतंकवादी था कश्मीरी या कोई और नहीं ..... आप भी जाने संवैधानिक मर्यादाओं का पालन करें कैग
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंबहुत दिनों से गजल नहीं पढ़ी है-
पढ़ना है आदरणीय -
पाया सबने प्रेम नित, सच्चा आशिर्वाद |
कई पडोसी कष्ट में, करते थे फ़रियाद |
करते थे फ़रियाद, होय माँ दुख में शामिल |
सेवा औषधि प्यार, बना दे उनको काबिल |
ऊँगली उनकी पकड़, राह सच्ची दिखलाया |
मानव मन की छोड़, हँसे पक्षी चौपाया ||
हालांकि जहाँ तुम नहीं हो
जवाब देंहटाएंउस शहर आना आसान नहीं
पर न आऊं तो जी पाना भी तो मुमकिन नहीं
मुमकिन हो भी नहीं सकता कभी...क्यूंकि बस अब एक यही वजह तो रह जाती है यादें बनकर जीने के लिए जो यह एहसास करा सकें की माँ दूर होकर भी कभी पूरी तरह दूर नहीं हो पाती दिल से...बेहद भावपूर्ण अभिव्यक्ति।
Bhavpurna Rachna ... Badhai ..
जवाब देंहटाएंhttp://ehsaasmere.blogspot.in/2013/02/blog-post_11.html
माँ कहीं नहीं जाती, कहीं जा ही नहीं सकती.
जवाब देंहटाएंमाँ की यादों को भुलाना आसान नही है,बहुत ही भावपूर्ण प्रस्तुती,आभार।
जवाब देंहटाएंबहुत मार्मिक लगी रचना !
जवाब देंहटाएंदिवंगत आत्मा को याद करने और नित श्रधांजली का यह अंदाज भी उम्दा है, नासवा साहब !
जवाब देंहटाएंसिर्फ सशरीर ही तो नहीं हैं......उनकी आत्मा ...उनका आशीर्वाद तो सदा हमारे साथ है ...और रहेगा
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया
जवाब देंहटाएंसादर
सच है शहर का वजूद लोगों से होता है .परिवेश लोग खडा करते हैं और जब वह नहीं रहते शहर अक्सर नाकारा हो जाता है .पर ऐसा होते होते वक्त लग जाता है और मामला माँ को हो तो नियम
जवाब देंहटाएंअपवाद बन जाता है .मार्मिक प्रसंग .शुक्रिया आपकी टिपण्णी का .
आपका दुखी रहना माँ को दुखी करेगा...अब बसंत ऋतु पर अच्छी सी रचना डालिए|
जवाब देंहटाएंउस शहर में जाना बहुत मुश्किल.... जहाँ माँ नहीं... सिर्फ़ उसकी यादें ही बची हों......
जवाब देंहटाएं~सादर!!!
माँ की यादें उस शहर में वापस भी लाती हैं जहां आना मुमकिन नहीं लगता .... मार्मिक रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ,एक भावुक कविता .
जवाब देंहटाएंममतामयी माँ को नमन!
जवाब देंहटाएंapnom ka pyar dil ke raaste se hokar aatma mein utar jata hai.Rooh jab bolti hai toaise hi bolti hai.
जवाब देंहटाएंभावभीनी रचना।
जवाब देंहटाएंलेकिन जिंदगी चलते रहने का ही नाम है।
शुभकामनायें नास्वा जी।
bahut bhaavuk hai
जवाब देंहटाएंसुना है इन तारों में अब तुम भी शामिल हो
जवाब देंहटाएंहृदयस्पर्शी ....
कहीं नहीं गईं वे-आचार-विचार,संस्कार सभी में अदृष्य व्याप्ति और किसकी हो सकती है!
जवाब देंहटाएंहालांकि जहाँ तुम नहीं हो
जवाब देंहटाएंउस शहर आना आसान नहीं
पर न आऊं तो जी पाना भी तो मुमकिन नहीं
क्या करूं ...
अजीब सी प्यास सताती है अब हर वक़्त
बंजारा मन कहीं टिक नहीं पाता
सुना है इन तारों में अब तुम भी शामिल हो
कहाँ हो तुम माँ ...
बहुत मार्मिक रचना !
भावपूर्ण रचना.
जवाब देंहटाएंमन के कोने में बसी है वो आप के अंतर में मुस्कुराती हुई हर रोज आप को आशीष देती हुई हर जगह किसी न किसी रूप में नज़र आएगी..बस देखने का प्रयास करें.
हृदयस्पर्शी ....!!
जवाब देंहटाएंमौन
जवाब देंहटाएंकहाँ हैं माँ???
जवाब देंहटाएंयहीं तो हैं...उंगली थामे हैं अब भी....
:-(
सादर
अनु
बच्चे की मां कहां हो?
जवाब देंहटाएंमार्मिक और ह्रदय स्पर्शी ,माँ के प्रेम का और सहचर्य की याद को शब्दों में ढालने का सार्थक प्रयास ,शुभकामनाये
जवाब देंहटाएं.शुक्रिया आपकी टिपण्णी का .
जवाब देंहटाएंकहाँ हो तुम ...
ये सड़कें, घर, फूल-पत्ते, अड़ोसी-पड़ोसी
सभी तो उदास हैं
तेरे चले जाने के बाद
लगा की इस शहर में लौटने की वजह खत्म हो गई
बीती उम्र की पक्की डोर ... झटके में टूट गई
सच है : शहर और गीतों से व्यक्ति और गुज़रे वक्त की यादें बा -वास्ता होतीं हैं .लागी छूटे न ...लगन ,अपनों के कर्म
सुना है इन तारों में अब तुम भी शामिल हो
जवाब देंहटाएंकहाँ हो तुम माँ ...
....वहां से भी माँ देखती होगी ...
,माँ की यादों से लिपटी मन उदेलित करती प्रस्तुति ..
माँ की ममता, उनका आशीर्वाद
जवाब देंहटाएंसे कोई भी वंचित न हो ....बहुत ही
मार्मिक रचना ......आभार
waah ! Awesome !
जवाब देंहटाएंमाँ के प्रति समर्पित भाव
जवाब देंहटाएंये ही एक रिश्ता है जो हर हाल में आपके साथ जुड़ा होता है..मां-पिता हर हाल में आपेके साथ होते है ..कुछ भी करिए अच्छा या बुरा..वो एक बार सामने आ ही जाते हैं..
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति बहुत ही अच्छा लिखा आपने
जवाब देंहटाएंसुना है इन तारों में अब तुम भी शामिल हो
जवाब देंहटाएंकहाँ हो तुम माँ ...
माँ तो कहीं गई ही नहीं ... पहले भी साथ थीं ..
अब भी ...
सादर
जवाब देंहटाएंतेरे चले जाने के बाद
लगा की इस शहर में लौटने की वजह खत्म हो गई
बीती उम्र की पक्की डोर ... झटके में टूट गई-------
अतीत के गहन अनुभूति/मन से निकली बात
बहुत बहुत बधाई
बहुत ही मार्मिक रचना .....
जवाब देंहटाएंआज तो माँ शारदे साथ हैं .....!!
हर हफ्ते हम सरोज स्मृति का एक छोटा अंश यहाँ पढ़ते हैं और हमारे मन में न जाने माँ के कितने बिंब प्रगट हो जाते हैं।
जवाब देंहटाएंनि:शब्द करते भाव ......
जवाब देंहटाएंमाँ..होतीं तो क्या नहीं होता..
जवाब देंहटाएंमाँ नहीं..तो कुछ भी नहीं..
बहुत सुन्दर रचना..!!!
जवाब देंहटाएंप्रकृति कितना साथ देती है हम अपने अन्दर की उदासी उस पर आरोपित कर देते हैं -खामोश पेड़ पत्ते ,जड़ पवन ....शुक्रिया आपकी टिपण्णी का .गहरी नदी का मौन .....मेरे अन्दर भी एक नदी थी ...अब मौन है ....
आज तलक वह मद्धम स्वर
जवाब देंहटाएंकुछ याद दिलाये, कानों में !
मीठी मीठी धुन लोरी की ,
आज भी आये , कानों में !
आज मुझे जब नींद न आये, कौन सुनाये आ के गीत ?
काश कहीं से, मना के लायें , मेरी माँ को , मेरे गीत !
क्या खूब कहा आपने वहा वहा क्या शब्द दिए है आपकी उम्दा प्रस्तुती
जवाब देंहटाएंमेरी नई रचना
प्रेमविरह
एक स्वतंत्र स्त्री बनने मैं इतनी देर क्यूँ
दिगंबर जी आप शब्दों के जादूगर हैं या कहें कि जज्बातों को ब्यक्त करने बाले कलाकार . आप की कबिता में जो कशिश होती है उसके खातिर कबिता काफी समय तक जहन में रहती है. मुबारक बाद. ऐसे ही लिखते रहें .
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और मर्मिक.
दुनयावी रिश्ते टुटा करते है , रूहानी नहीं !!
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट
रूहानी प्यार का अटूट विश्वास
Maa ki ek muskurahat ke sahare,har mumkin koshish khush rahne ki aaj me...ab unki yaad hai aur jite jaana hai aaj me...
जवाब देंहटाएंbahut hi pyari rachna
जवाब देंहटाएंshubhkamnayen
माँ तो दिल की धडकनों में है सितारों में कहाँ ढूंढ रहे हैं ..दिलकश
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