तेरी चीज़ें सब आपस में बाँट
रहे थे
किसी ने साड़ी उठाई
किसी ने सूट
किसी ने बुँदे, किसी ने
चूड़ी
किसी ने रूमाल, किसी ने चेन
तेरी छोटी छोटी चीज़ों का
भण्डार
मानो खत्म ही नहीं होना
चाहता था
तुमसे बेहतर कौन जानता है
ये चीज़ों की चाह से ज़्यादा
तुझे अपने पास रखने की होड़
थी माँ
तू चुपचाप
दूर खड़ी मुस्कुरा रही थी
फिर धीरे से पास आकार कान
में बोली
तू कुछ नहीं लेगा ...
मैंने लपक कर तेरी किताबों
का ढेर उठा लिया
अब सोचता हूं तो लगता है
हमेशा से कुछ न कुछ देने की
तेरी आदत
तेरे चले जाने के बाद भी
वैसी ही है ...
माँ देना ही जानती है ..... किताबों से आप हमेशा माँ से जुड़े रहेंगे .... बहुत संवेदनशील रचना
जवाब देंहटाएंकुछ कहने को शब्द नहीं मिलते हैं.. बस भाव..भाव..भाव..
जवाब देंहटाएंभाव आलोड़ न भाव उदगार अनूभूति शब्दों में आ बसे हैं इस पोस्ट के .शुक्रिया आपकी टिप्पणियों का जो हमारे लिए बेशकीमती हैं .
जवाब देंहटाएंमाँ सभी का ख़याल रखती है!...जी ते जी और मृत्यु के पश्चाद भी वह देने की भावना से ओतप्रोत रहती है!..बहुत सुन्दर दिल को छू लेन वाली रचना!
जवाब देंहटाएंनिशब्द हूँ. अन्तःकरण छू जाते है आपके शब्द.
जवाब देंहटाएंबढ़िया है आदरणीय-
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें आपको-
निशब्द संवेदनशील रचना
जवाब देंहटाएंहर ओर बसा माँ का प्यार
जवाब देंहटाएंलिए यादों का संसार ...
नमन !
जवाब देंहटाएंमैंने लपक कर तेरी किताबों का ढेर उठा लिया
aur ise hi maa bana liya... Aaj aapke maa bhi hai aur Maa ka diya gyan ka prakash bhi.... Bhagyshali hain aap jo yh saanidhy milaa. Bhawnaon se parpoorn kar dene waali rachna... Aabhar..
ख़ूबसूरत भाव समेटे है कविता में !
जवाब देंहटाएंspeechless
जवाब देंहटाएंबहुत शानदार और प्रेरक रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत ही प्रेरक रचना,माँ होती ही हैं बच्चों की ख़ुशी के लिए.
जवाब देंहटाएंmaa bas maa hai
जवाब देंहटाएंमां को कोई नहीं बाँट सकता..
जवाब देंहटाएंमन को छू लेने वाला है माँ को समर्पित यह काव्य पुष्प भी.
जवाब देंहटाएंमाँ तो सिर्फ माँ है, उसके दिए का कोई हिसाब नहीं... ह्रदय स्पर्शी भाव...
जवाब देंहटाएंनिशब्द हूँ
जवाब देंहटाएंसुंदर स्मृतियाँ
जवाब देंहटाएंसच कहा आपने अच्छी आदत हमेशा जीती हैं हमारे साथ-साथ ......सबका अपना अपना मोह है इस निस्सार संसार में ..
जवाब देंहटाएंमाँ के लिए जितना कहा जाये कम है ......बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंबेहतरीन सर!
जवाब देंहटाएंसादर
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जवाब देंहटाएंधन्यवाद
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माँ तो बनी ही है देने के लिये. खूबसूरत अहसास.
जवाब देंहटाएंबंटवारा.....
जवाब देंहटाएंलेकिन प्यार......!!
वो कैसे बंटेगा....!!!
हमेशा से कुछ न कुछ देने की तेरी आदत
जवाब देंहटाएंतेरे चले जाने के बाद भी वैसी ही है ...
अत्यन्त खूबसूरत! कुछ पंक्तियों में आपने वह कह दिया जो एक ग्रन्थ भी शायद न कह पाता!
माँ की बाते तो कभी ख़त्म ही नहीं होती..
जवाब देंहटाएंमाँ की याद में हृदयस्पर्शी भाव लिए रचना...
ओह!! अन्दर तक असर करती हैं , आपकी ये कवितायें
जवाब देंहटाएंमाँ की भावनाएं जो कानों में फुसफुसाई - वह तो धरोहर है,माँ जानती थी तो एक याद दे गई - होड़ से परे
जवाब देंहटाएंमां कभी नही जाती, आजीवन यादों में बसी रहती है.
जवाब देंहटाएंरामराम.
और माँ का व्यक्तित्व घुलमिल गया ....
जवाब देंहटाएंdigambar ji maa ko n bhool sakta hai koi n bhoolna chahiye kintu lagta hai ki aapke man mastishk par maa ko khone ka asar bahut jyada hai kyonki aapki pichhli aur ye nayi post maa ke prati aapke bharpoor pyar se rangi hai .digambar ji ye sab achchha hai kintu ye jeevan bahut kroor hai jo ki hamare apnon ke bichhadne ke bad bhi chalta rahta hai aap meri baton ko anyatha n len kintu is dukh se ubarne kee koshish karen .
जवाब देंहटाएं.बहुत सुन्दर भावनात्मक प्रस्तुति आभार सौतेली माँ की ही बुराई :सौतेले बाप का जिक्र नहीं आज की मांग यही मोहपाश को छोड़ सही रास्ता दिखाएँ .
माँ तो बस प्यार लुटाती है।
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना।
ऐसा ख़ज़ाना...जो कभी ख़त्म नहीं होता...
जवाब देंहटाएं~सादर!!!
लाजवाब रचना...बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंमाँ देना ही जानती है,,,
जवाब देंहटाएंनिःस्वार्थ प्रेम की प्रतिमूर्ति होती है माँ
सुन्दर रचना
सादर !
माँ के गुण मिल जायें तो जीवन धन्य हो जाये।
जवाब देंहटाएंमाँ ...नाम ही देने का है..जिंदगी देती है..जिंदगी भर देती है... मृत्यु उपरांत भी देती है..अपना आशीष!...हृदयस्पर्शी रचना!
जवाब देंहटाएंमाँ के लिए आपके मन में कितनी श्रद्धा है,उन्ही भावनाओं से परिपूर्ण सुंदर रचना,,,
जवाब देंहटाएंRecent post: रंग,
माँ पर आपके लिखे भाव हर बार आँखें नम कर देते है.... निशब्द हूँ
जवाब देंहटाएंआज की ब्लॉग बुलेटिन ज्ञान + पोस्ट लिंक्स = आज का ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंमाँ- उसकी बस एक ही निशानी है मेरे पास...बाकी तो उसकी यादें हैं.
जवाब देंहटाएंदिल के तार को छूती एक सुन्दर कविता |
जवाब देंहटाएंफिर धीरे से पास आकार कान में बोली
जवाब देंहटाएंतू कुछ नहीं लेगा ...
मैंने लपक कर तेरी किताबों का ढेर उठा लिया
अब सोचता हूं तो लगता है
हमेशा से कुछ न कुछ देने की तेरी आदत
तेरे चले जाने के बाद भी वैसी ही है ...
beautiful lines with great emotions and feelings so nice .
सुन्दर व दिल को छू लेने वाली रचना...
जवाब देंहटाएंमाँ पर आपकी अनेकों रचनायें पढ़ी ...हर रचना ने आँखें नम कर दीं ...माँ की कमी ......
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंअब सोचता हूं तो लगता है
हमेशा से कुछ न कुछ देने की तेरी आदत
तेरे चले जाने के बाद भी वैसी ही है ...
बहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी ...बेह्तरीन अभिव्यक्ति ...!!शुभकामनायें.
जवाब देंहटाएंदिनांक 07/03/2013 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
धन्यवाद!
माँ की तो हर चीज़ हर दिल आजिज़ होती है क्यूंकि कहीं न कहीं वो माँ से ही जुड़ी होती है।
जवाब देंहटाएंअनुपम रचना।
जवाब देंहटाएंमाँ का अमूल्य धरोहर स्मृति को ताजा रखता है
जवाब देंहटाएंlatest post होली
मित्र,दिगंबर नासवा जी!आपसे डॉ.पूर्णिमा जी के आवास[ शारजाह] पर मुलाकात हुयी पकौड़ियाँ खाते, बातें करते ढली शाम का मंजर मुझे याद आता है | आप खैरियत से होंगें|शुभकामनाओं के साथ ईश्वर से यशश्वी जीवन की प्रार्थना है|आप बहुत अच्छा लिखते हैं .....यूँ ही लिखते रहें,समयाभाव के कारन टिपण्णी देने में विलम्ब हुआ ....माफ़ी चाहते हैं | आपका शहर बहुत याद आता है -
जवाब देंहटाएं-- उदय वीर सिंह
digamber ji harek rachna behtareen hein...
जवाब देंहटाएंaap kalam se dil tak kitni asani se pahuch jate hein...
maa to sabkuch hi de deti hein hamare liye..
हमेशा से कुछ न कुछ देने की तेरी आदत
तेरे चले जाने के बाद भी वैसी ही है ...
.shandar...
माँ को समर्पित आपके ये भावपुष्प कितने हृदयों को छू जाते हैं..आभार!
जवाब देंहटाएंबहुत खूब आपके भावो का एक दम सटीक आकलन करती रचना
जवाब देंहटाएंआज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
तुम मुझ पर ऐतबार करो ।
उन किताबों के पृष्ठों में बहुत-कुछ समाया होगा कुछ ,जो उन्हें आभासित करता रहेगा !
जवाब देंहटाएंमाँ की परछाईयां हर तरफ ... मन को भावमय करती पोस्ट
जवाब देंहटाएंyaadon kaa यादों का भाव संसिक्त झरोखा .माँ की घर से लिपटी हुई यादों की भाव राग धुंध न जाने कब तक बनी रहती है .
जवाब देंहटाएं2005 में माँ के जाने के बाद यही कुछ तो हुआ था...एकदम हू ब हू!
जवाब देंहटाएंnishabd kar gayee aapki ye rachna...
जवाब देंहटाएंसार्थक लेखन
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारी और मन को छूने वाली रचना..
जवाब देंहटाएंबहुत मार्मिक, अर्थपूर्ण और प्यारी रचना.
जवाब देंहटाएंसादर
नीरज 'नीर'
KAVYA SUDHA (काव्य सुधा)
माँ की यादें... माँ की निशानी... सब साथ होता. मन को छू गई रचना, शुभकामनाएँ.
जवाब देंहटाएंअद्भुत मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंMAA KO SAMARPIT KAVITA MAN KO
जवाब देंहटाएंBHARPOOR CHHOOTEE HAI .
माँ जैसी ही मर्मस्पर्शी रचना ....
जवाब देंहटाएंफिर धीरे से पास आकार कान में बोली
जवाब देंहटाएंतू कुछ नहीं लेगा ...| दिल को भावभिन कर गयी |
अभी मुन्नवर राणा की माँ पर कही गज़लें सुन के उठा हूँ ...
जवाब देंहटाएंकिसी के हिस्से में मकाँ आया किसी के हिस्से में दुकाँ आई
मै घर में सबसे छोटा था मेरे हिस्से में माँ आई...
किताबें आपको एक विचार से जोड़तीं हैं...
speechless :|
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंमहाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ !
सादर
आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
अर्ज सुनिये
wah.. aur kya chahiye..
जवाब देंहटाएंmaa ka roop hi le liya...
behtareen..
मैंने लपक कर तेरी किताबों का ढेर उठा लिया
जवाब देंहटाएंबहुत भावपूर्ण लगी यह रचना
माँ के साथ रागात्मक सम्बन्धों की सशक्त अभिव्यक्ति .शुक्रिया आपकी टिपण्णी का .
जवाब देंहटाएंसुंदर अभिव्यक्ति....
जवाब देंहटाएंspeechless
जवाब देंहटाएंनिःशब्द कर दिया आपकी इस रचना ने .
जवाब देंहटाएंसंवेदनशील रचना
जवाब देंहटाएंma ka sach yahi roop hota hai apne bachchon ko dete rehnne ka. sunder bhaavpoorna rachna
जवाब देंहटाएंshubhkamnayen
Bhaauk rachna.
जवाब देंहटाएंAksar duriyan hume kisi ke bahut karib laake khada kar deti hai...
मैंने लपक कर तेरी किताबों का ढेर उठा लिया
जवाब देंहटाएंsabse keemti saamaan to aapne hi chun liyaa :-)
behad sundar prastuti
उफ्फ कितनी सम्वेद्नाये हैं आपकी रचनाओं में कितनी भाग्य शाली होगी वो माँ
जवाब देंहटाएंआह
जवाब देंहटाएंनिरंतर माँ को समर्पित आपकी एक से बढ़कर एक शब्दांजलि पढ़कर अभिभूत हूँ..
आह
जवाब देंहटाएंनिरंतर माँ को समर्पित आपकी एक से बढ़कर एक शब्दांजलि पढ़कर अभिभूत हूँ..
मैंने बचपन में किसी से पूछा था गाय को माता क्यों कहते हैं ..जवाब मिला जीवन पर्यंत देती ही रहती है कुछ लेती नहीं ...लेकिन माँ के ना होने के बाद माँ की उस दान् वृत्ति का अहशास ...बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएं