जाड़ों की कुनमुनाती दोपहर
तंदूर से निकलती गरमा-गरम
रोटी
याद है अक्सर तुझे छेड़ता
था
ये कह कर की तेरे हाथों में
वो बात नहीं
ओर माँ तुम्हारी तरफदारी
करते करते
हमेशा प्यार से डांट देती
थी मुझे
कई दिन बाद आज फिर
वही तंदूर तप रहा है
देख रहा हूं तेरे माथे पे
उभरी पसीने की बूँद
ताज़ा रोटी की महक में घुलती
तेरे हाथों की खुशबू
पता है ...
आज तुम कुछ कुछ माँ जैसी लग
रही हो
बहुत ही भावपूर्ण कविता,दिल से निकले शब्द.
जवाब देंहटाएंप्रभावशाली ,
जवाब देंहटाएंजारी रहें।
शुभकामना !!!
आर्यावर्त
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हर बेटा...हर नारी में कहीं न कहीं अपनी माँ की छवि देखता है .....
जवाब देंहटाएंनमन उस माँ को !
हर चीज़ से माँ जुड़ी होती है और खासकर खाने की बात हो, तब तो बात ही क्या.....माँ हर जगह है बस उसे देखने और महसूस करने की जरूरत एवं नज़र होनी चाहिए...
जवाब देंहटाएंतंदूर की रोटी की बात पढकर बचपन याद आ गया...माँ भी अड़ोस-पड़ोस की रोटियां पकातीं थी अपने तंदूर पर..
जवाब देंहटाएंदिल को छूने वाली उम्दा रचना !
जवाब देंहटाएंबेहद भावप्रबल एहसास ......
जवाब देंहटाएंantar ke bhavon ko spasht abhivyakti dekar sundar rachna rachi. aabhar !
जवाब देंहटाएंदेख रहा हूं तेरे माथे पे उभरी पसीने की बूँद
जवाब देंहटाएंताज़ा रोटी की महक में घुलती
तेरे हाथों की खुशबू
पता है ...
आज तुम कुछ कुछ माँ जैसी लग रही हो
ओह!! बहुत ही मार्मिक
भावप्रवण और उम्दा रचना है नासवा जी |
जवाब देंहटाएंआशा
वाह बहुत बढ़िया भाव है ...माँ जैसी लगना वाकई उम्दा भाव है ...बेहतरीन
जवाब देंहटाएंअति भावगर्भित रचना. माँ तो ऐसे ही कण कण में समायी रहती है और हमारे अस्तित्व का हिस्सा बनी रहती है.
जवाब देंहटाएंबहुत दमदार चित्रण किया है, माँ का आशीर्वाद है वे बूँदें
जवाब देंहटाएंअंतिम पंक्तियों में चमत्कार-
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया-
जय जय माँ-
शुभकामनायें आदरणीय-
नारी सब रूपों में मौजूद है, बस आपकी तरह देखने महसूस करने वाला दिल चाहिये. बहुत शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
नारी के रूप अनेक -- सब रूपों में , माँ का स्थान विशेष।
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना।
माथे का पसीना अपने उस तरफदार को ढूढता होगा, जो अब बहुत दूर चला गया !
जवाब देंहटाएंप्रेम बरसाती कविता
जवाब देंहटाएंसार्थक प्रस्तुतीकरण.
जवाब देंहटाएंबहुत खूब लाज़वाब कर दिया इस रचना ने .माँ रसोई में और पत्नी रसोई में एक ही तरह से अन्नपूर्णा होती हैं .
जवाब देंहटाएंपता है ...
जवाब देंहटाएंआज तुम कुछ कुछ माँ जैसी लग रही हो
सार्थक बढ़िया भाव...
शब्दों और भावों की तपिस अंतर्मन को झंझोड़ देती है - सादर
जवाब देंहटाएंदेख रहा हूं तेरे माथे पे उभरी पसीने की बूँद
जवाब देंहटाएंताज़ा रोटी की महक में घुलती
तेरे हाथों की खुशबू
पता है ...
आज तुम कुछ कुछ माँ जैसी लग रही हो
माँ की याद ताज़ा करती सुन्दर भाव समेटे रचना
बहुत भावपूर्ण. शीघ्र ही मैं ऐसे ही विषय पर एक कविता प्रस्तुत करूँगा..
जवाब देंहटाएंसादर
नीरज 'नीर'
मेरी नयी कविता
KAVYA SUDHA (काव्य सुधा):
क्या बात है ....!!
जवाब देंहटाएंशायद ही किसी ने इस विषय पर कविता लिखी हो .....
बहुत खूब ....!!
बहुत ही सुन्दर
जवाब देंहटाएंगरमा गरम रोटी की खुशबू यहाँ तक भी पहुंची :)
सादर !
दिगम्बर जी ,
जवाब देंहटाएंपुरुष स्त्री को विवाह के बाद न जाने कितने रूपों में प्यार करता है। रचना की अंतिम पंक्ति बहुत बेहतर बन गयी। जीवन में एक समय ऐसा भी आता है कि वो आप की तरह भी देखता है आपकी इस नज़र को नमन। बधाई!
भावपूर्ण कविता .
जवाब देंहटाएंघर की अन्नपूर्णा में रोटी की महक के ज़रिए माँ की झलक मिली.
अद्भुत!
भावपूर्ण...मन को छूती रचना
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण..मन को छूती रचना ...
जवाब देंहटाएंमाँ का चेहरा घुल गया - इसे मैं शब्दों में नहीं कह सकती , रूह से महसूस कर रही हूँ
जवाब देंहटाएंदेख रहा हूं तेरे माथे पे उभरी पसीने की बूँद
जवाब देंहटाएंताज़ा रोटी की महक में घुलती
तेरे हाथों की खुशबू
पता है ...
आज तुम कुछ कुछ माँ जैसी लग रही हो
यही है संस्कारों की खुशबू का पीढी दर पीढ़ी प्रसरण
ओह ...अद्भुत भाव....
जवाब देंहटाएंभोजन के अवसर पर नारी का मातृ-भाव प्रधान हो जाता है- उसे अनुभव कर लिया आपने!
जवाब देंहटाएंसादर जन सधारण सुचना आपके सहयोग की जरुरत
जवाब देंहटाएंसाहित्य के नाम की लड़ाई (क्या आप हमारे साथ हैं )साहित्य के नाम की लड़ाई (क्या आप हमारे साथ हैं )
माँ के सबसे यादगार बिंब रसोई में ही बनते हैं। बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंवाह क्या बात! बहुत बेहतरीन!
जवाब देंहटाएंपता है ...
जवाब देंहटाएंआज तुम कुछ कुछ माँ जैसी लग रही हो
माँ का रूप अलग ही होता है ,बेहद भावना पूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंदिनांक 14/03/2013 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
धन्यवाद!
भावपूर्ण एहसास.....
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर .शुभकामनायें.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर मार्मिक चित्रण ..बधाई ऐसी सुन्दर रचना के लिए :-)
जवाब देंहटाएंमां और पत्नी के लिए ह्रदयादर की बरसात।
जवाब देंहटाएंस्त्री के हर रूप में माँ बसती है !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना...अंतस को छू गयी..
जवाब देंहटाएंadutiy-***
जवाब देंहटाएंसटीक और सार्थक ...
जवाब देंहटाएंये सफर यूँ ही ज़ारी रहें ....शून्य को भरना भी जरुरी है
जवाब देंहटाएंBAHUT DINON KE BAAD UMDAA KAVITA PADHNE KO MILEE HAI .
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट रचना .हाँ पत्नी में पति सबसे पहले पति अपनी माँ को ही ढूंढता है और पत्नी पिता के अंश को .
जवाब देंहटाएंbahut hi..badiya digamberji.
जवाब देंहटाएंsidhe dil pe jake chot krti hein kavita...
बस स्थिति बदल जाती है.
जवाब देंहटाएंबस स्थिति बदल जाती है.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर संवेदनशील रचना ...
जवाब देंहटाएंवाह ...वाह ..बहुत खूब
जवाब देंहटाएं-नित्यानंद गायेन
bahut achchhhi lagti hai, aapki kavitayen kyunki unme aksar maa ke prati sneh-aadar aur maa ka smaran bhaav chhipa milta hai.....!
जवाब देंहटाएंsach hai, ek samay baad patni me maa ka aksh nazar aane lagta hai!
aakhir rachnaon ka janm hamari bhavnaon ki kokh se hi to hota hai....!
भावपूर्ण प्रस्तुति आदरणीय
जवाब देंहटाएंलाजवाब अहसास..
जवाब देंहटाएंमाँ आसपास ही रहेगी ..
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अभिव्यक्ति , बधाई आपको !
कुछ बातें याद आ गई..पता नहीं किस सिरे की है...इस सिरे की या उस सिरे की...पर हां कहीं न कहीं जुड़ी रहती है। कहते हैं कि एक समय के बाद पत्नी औऱ पति एक जैसे लगने लगते हैं। कई दंपत्ति ऐसे देखे। ये भी सच है कि पत्नी पुरुष के लिए उसकी सच्ची साथी.कभी मां..समेत हर रुप निभाती है। बस शर्त इतनी है कि अपने प्यार का इजहार कभी शब्दों में भी करना पड़े तो बेझिक करें...
जवाब देंहटाएंwaah! bahut hi achchi rachna hai
जवाब देंहटाएंआज तुम कुछ कुछ माँ जैसी लग रही हो
जवाब देंहटाएंमर्मस्पर्शी भावपूर्ण.
पत्नी बहुरूपा होती है माँ -बहन -प्रेमिका उसमें निहित रहतीं हैं ममत्व और आशीष भी .
जवाब देंहटाएंमाँ आसपास ही होती है ....
जवाब देंहटाएंलाजवाब..भावपूर्ण..
वाह बहुत बढ़िया भाव, मर्मस्पर्शी
जवाब देंहटाएंमाँ की स्मृति जीवन के हर पल में, हर शै में...
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएँ.
बहुत ही सुन्दर मार्मिक चित्रण
जवाब देंहटाएंबहुत सुद्नर आभार आपने अपने अंतर मन भाव को शब्दों में ढाल दिया
जवाब देंहटाएंआज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
एक शाम तो उधार दो
आप भी मेरे ब्लाग का अनुसरण करे
जाड़ों की कुनमुनाती दोपहर
जवाब देंहटाएंतंदूर से निकलती गरमा-गरम रोटी ...
बहुत बढ़िया भाव!
शुक्रिया नास वा साहब आपकी टिपण्णी का .कोमल भावनाओं की सौगात है अनेकरूपा नारी .
जवाब देंहटाएंअति भावगर्भित रचना.
जवाब देंहटाएंbahut hi sunder rachna
जवाब देंहटाएंshubhkamnayen
Naswa ji ......behad prabhavshali rachana lgi apki lekhni ko naman hai .....
जवाब देंहटाएंबहुत कम लोग अनुभव का पते है ये अहसास ।और कर भी पते है तो कितने प्रकट क्र सकते है
जवाब देंहटाएंआभार
बेहतरीन...भावपूर्ण अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंSatik chitran...bhaopurn rachna...
जवाब देंहटाएंशुक्रिया भाई साहब इस दरियादिली के लिए हौसला अफजाई और बहुत भावप्रवण लेखन के लिए .
जवाब देंहटाएंआँखें वही देखना जो चाहती है..और आँखें वही हमेशा देखती भी रहे..
जवाब देंहटाएंआपकी रचना निर्झर टाइम्स पर लिंक की गयी है। कृपया इसे देखें http://nirjhar-times.blogspot.com और अपने सुझाव दें।
जवाब देंहटाएंबहुत भावप्रधान रचना .... भोजन के समय माँ की झलक मिलना खास अनुभव है ।
जवाब देंहटाएंकुछ कमियाँ जीवन में सदा बनी रहती हैं.....लेकिन मन फिर भी अपने आप को बहला लेता है .....अत्यंत सुखद अनुभूति हुई यह रचना पढ़कर
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंपता है ...
आज तुम कुछ कुछ माँ जैसी लग रही हो
bilkul dil ki bat juba pr aa gyee .....akhir vh bhi to hamara palan hi karati hai ......bs janm dene ka hi fark rh jata hai .......badhai sir bahut achchhi rachana lagi
शुक्रिया आपकी शानदार टिप्पणियों के लिए शुभकामनाओं के लिए .फाग मुबारक .जीवन का राग रंग मुबारक .
जवाब देंहटाएंबहुत भावपूर्ण रचना दिल तक पहुँचती हुई बहुत- बहुत बधाई आपको
जवाब देंहटाएंमैं ब्लॉग के सबसे ऊपर की रचना से शुरू करके नीचे जाने के साथ साथ डूबता जा रहा हूँ ...और डूबने में मुझे मजा भी आ रहा है ...
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