सब कहते हैं
भूलने की कोशिश करो
पर किसे … ?
यादों से बाहर निकलो,
पर किसकी ...?
खुश रहो
खुश तो हूं ... अब भी
तू तब भी साथ थी
अब भी साथ है
यादों में थी हमेशा
यादों में है
तब बातें करता था तुझसे
बातें अब भी करता हूं
हां ... अब ये नहीं मालुम
क्यों कम्बख्त आंसू
अपने आप निकल आते हैं
पर वो तो आँखों का कसूर है
न माँ ...
अनायास, खैर , Time is a great healer.
जवाब देंहटाएंउफ्फ कितना खरा सच कह दिया आपने आदरणीय
जवाब देंहटाएंहां ... अब ये नहीं मालुम
क्यों कम्बख्त आंसू
अपने आप निकल आते हैं
पर वो तो आँखों का कसूर है न माँ ...
आँखें नम कर दी आपने, बेहद सुन्दर आदरणीय
गहरे भाव लिए ,उत्तम रचना बधाई आप को
जवाब देंहटाएंsundar rachana . holi ki hardik badhai shubhakamanayen ...
जवाब देंहटाएंsundar rachna... yaaden jiwan ka abhinn hissa hoti hain
जवाब देंहटाएंआपकी यह बेहतरीन रचना शनिवार 30/03/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!
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जवाब देंहटाएंआपकी कलम हर बार दिल के जख्म कुरेद जाती है। बहुत सुन्दर लिखा आपने!
जवाब देंहटाएंकुसूर तो दिल दिमाग का भी है...आँखें तो सिर्फ इज़हार करतीं हैं...
जवाब देंहटाएंकुसूर तो दिल दिमाग का भी है...आँखें तो सिर्फ इज़हार करतीं हैं...
जवाब देंहटाएंकुसूर तो दिल दिमाग का भी है...आँखें तो सिर्फ इज़हार करतीं हैं...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शुक्रवार के चर्चा मंच-1198 पर भी होगी!
सूचनार्थ...सादर!
--
होली तो अब हो ली...! लेकिन शुभकामनाएँ तो बनती ही हैं।
इसलिए होली की हार्दिक शुभकामनाएँ!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
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आदरणीय नासवा जी
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
हां ... अब ये नहीं मालुम
क्यों कम्बख्त आंसू
अपने आप निकल आते हैं
पर वो तो आँखों का कसूर है न माँ ...
.........खासकर इन पंक्तियों ने रचना को एक अलग ही ऊँचाइयों पर पहुंचा दिया है शब्द नहीं हैं इनकी तारीफ के लिए मेरे पास...बहुत सुन्दर
बहुत ही भावपूर्ण प्रस्तुति,कुछ यादें को चाह कर भी भूल नहीं पातें है,वो भी माँ की यादें.
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंहम हिंदी चिट्ठाकार हैं
भावनात्मक प्रस्तुति मोदी संस्कृति:न भारतीय न भाजपाई . .महिला ब्लोगर्स के लिए एक नयी सौगात आज ही जुड़ें WOMAN ABOUT MAN
जवाब देंहटाएंaankhon aur aansu ka ivn bhar ka sath hai apnon ki yaaden pichha kahan chhodti hai .....marmik prastuti....
जवाब देंहटाएंभूला तो जा ही नहीं सकता.
जवाब देंहटाएंमां का विछोह तेरह साल पहले झेला था जब भी उसकी याद आती है आंसू निकल आते हैं.
जवाब देंहटाएंदुनिया दारी चल रही है, सब कुछ है पर पता नही, जीवन में एक अजीब सा सूनापन खालीपन है जो अभी तक भर नही पाया है, शायद सभी के साथ ऐसा ही होता होगा.
रामराम.
हां ... अब ये नहीं मालुम
जवाब देंहटाएंक्यों कम्बख्त आंसू
अपने आप निकल आते हैं
पर वो तो आँखों का कसूर है न माँ ...
इन्हें भुलाया कैसे और क्यों ?
जबकि यही यादें सहारा हैं जीने का
आँखें कह ही देती हैं मन की उन्हें कौन रोक सका है भला ...
जवाब देंहटाएंगहरी अभिव्यक्ति ..लाजवाब
जवाब देंहटाएंहर बार आपकी कविता पढ़कर माँ से अनुराग और बढ़ जाता है। मैं अपनी छोटी सी बेटी से कहता हूँ कि तेरी मम्मी से मेरी मम्मी ज्यादा अच्छी है। मजाक से
जवाब देंहटाएंबेहद भावपूर्ण रचना.
जवाब देंहटाएंमन की तड़प को आँखे बयां कर ही देती है
जवाब देंहटाएंमाँ की याद में कोमल भावपूर्ण रचना..
सुख हो या दुख हो या फिर समय का लम्बा अन्तराल हो एक माँ ही तो है जिसकी याद कभी भूला पाना संभव ही नहीं होता.
जवाब देंहटाएंनिकल जाने दो इन आंसुओं को।
जवाब देंहटाएंमां के आँचल सी राहत मिलती है।
हां ... अब ये नहीं मालुम
जवाब देंहटाएंक्यों कम्बख्त आंसू
अपने आप निकल आते हैं-----
वाह भावुक रचना
बहुत बहुत बधाई
आग्रह है मेरे ब्लॉग jyoti-khare.blogspot.in
में सम्मलित हों ख़ुशी होगी
दर्द स्वयं ही बरस गया
जवाब देंहटाएंआँखों का दोष नहीं था !
गीत स्वयं ही भीग गया
शब्दों का दोष नहीं था !
मार्मिक ....
बहुत ही सुन्दर रचना सीधे दिल तक पहुची बधाई
जवाब देंहटाएंमाँ के प्रेम में समर्पित भाव पूर्ण रचना,,,,
जवाब देंहटाएंRecent post: होली की हुडदंग काव्यान्जलि के संग,
रहिमन अँसुआ नयन ढरि जिय दुख प्रकट करेइ,
जवाब देंहटाएंजाहि निकारो गेह से कस न भेद कहि देइ!
मनव्वर राना का एक शे'र है ..कुछ इस तरह !
जवाब देंहटाएंकिसी के हिस्से में मकान,किसी के हिस्से में दूकान आई ,मैं घर में सबसे छोटा था .मेरे हिस्से में माँ आई ... यादें हमेशा साथ होती हैं !
स्वस्थ रहें !
इधर आपकी जितनी कवितायेँ पढ़ीं.....सब में वह दुःख समाहित था ...जिससे हम सब डरते हैं...अपनों को खोने का दुःख....और माँ....वह तो जैसे ही भगवन ही रूठ गया हो .....आपका दुख कम तो नहीं कर सकती ...पर उस दर्द को महसूस ज़रूर कर सकती हूँ...माँ को गए १२ साल हो गए .....लेकिन अभी भी दर्द में ....माँ को ही पुकारती हूँ....
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण नज़्म...दिल से दिल तक का सफर करती हुयी
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण.
जवाब देंहटाएंउसे भूलना कहाँ संभव होता है जो खून के हर कतरे में बसा हो.
शब्द इतने दूर तक गए की आँखें मेरी भी नम हो गयीं.
जवाब देंहटाएंभावभीनी रचना..
जवाब देंहटाएंTouchy...
जवाब देंहटाएंAntim panktiyon k bhaav behad karib dil k...
अद्भुत.....
जवाब देंहटाएंतू तब भी साथ थी
जवाब देंहटाएंअब भी साथ है ....
---------------
मार्मिक ...
maaa ki pyari si yaad.. superb:)
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया
जवाब देंहटाएंसादर
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण रचना
माँ की स्मृति मन नम करे, वह नमी भी सहारा देती है।
जवाब देंहटाएंबहुत भाव प्रवण रचना ....
जवाब देंहटाएंभावमयी
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही कहा आपने....भूलने की कोशिश तो तब करें जब वो यादों में न हो.....और आंसूओं का क्या है..उन्हें तो आंखें देश निकाला दे देती हैं...
जवाब देंहटाएंहोली की हार्दिक शुभकामनाएं ...बहुत सुन्दर।।
जवाब देंहटाएंपधारें कैसे खेलूं तुम बिन होली पिया...
Koi bas kahne ko hi bahut dur chala jata h pr rahta humare behad karib hai..
जवाब देंहटाएंGahre bhao...
koi sach to hai, jise hum jaan ke bhi maante nahi......!
जवाब देंहटाएंममता के आंचल में ढला, मैं तेरी यादों में चला हो मां ओ मेरी मां मैं तेरा नासवा।
जवाब देंहटाएंकहां भूल पाते हैं ... ये जो लम्हे जिंदगी के साथ चलते हैं
जवाब देंहटाएं... मन को छूती पोस्ट
सादर
तसव्वुरात को शब्द देना आसान नहीं है .कभी उस दिवंगत आत्मा के लिए दीपक जलाये,शिव बाबा का ध्यान करें ,माँ के आत्म स्वरूप को शिव बाबा से आध्यात्मिक ऊर्जा लेकर अनुप्राणित ,ऊर्जित करें .
जवाब देंहटाएंतसव्वुरात को शब्द देना आसान नहीं है .कभी उस दिवंगत आत्मा के लिए दीपक जलाये,शिव बाबा का ध्यान करें ,माँ के आत्म स्वरूप को शिव बाबा से आध्यात्मिक ऊर्जा लेकर अनुप्राणित ,ऊर्जित करें .
जवाब देंहटाएंक्या कहूँ नि:शब्द हूँ जीवन की कितनी बड़ी सच्चाई को कितनी खूबसूरती से शब्दों का जामा पहना कर प्रस्तुत किया माँ की यादों से बाहर आना पर क्यूँ?? वो तब भी दिल में थी वो आज भी है लगता है मेरे ही शब्द हैं बहुत बहुत बधाई इस प्रस्तुति हेतु.|
जवाब देंहटाएंमार्मिक..
जवाब देंहटाएंबहुत ही मार्मिक अभिव्यक्ति । माँ के लिये आपके भाव द्रवित करते हैं । इन्हें हमेशा पास रखिये ।
जवाब देंहटाएंभावमयी ...
जवाब देंहटाएंसब कहते हैं, क्योंकि कहना आसान है और पराई पीर जानना बहुत कठिन! जो बहते हैं बहने दीजिये ...
जवाब देंहटाएंOh!!
जवाब देंहटाएंwaah bahit khoob sundar rachna .badhai
जवाब देंहटाएंआपकी रचना पढ़कर हृदय द्रवित हो गया माँ की यादें इतनी सुहानी हैं की भुलाये नहीं भूलती ... अब यादें ही तो हैं जिनमे माँ का साथ मिल जाता है ...
जवाब देंहटाएंRachna dil ko choo gaee.
जवाब देंहटाएंबेहद मार्मिक.....इतना आसान कहाँ होता है भूल जाना ।
जवाब देंहटाएंvery very touchy.....
जवाब देंहटाएंapki shakhsiyat aur kalam mein,
mujhe MUNNAWAR RANA dikhayi dete hein...
माँ पर आपकी सभी रचनाएँ भावुक कर देती हैं मैं तो
जवाब देंहटाएंएक के बाद एक पढता ही जा रहा हूँ ..वाकई शानदार
नमस्ते.....
जवाब देंहटाएंआप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की ये रचना लिंक की गयी है......
दिनांक 24/04/2022 को.......
पांच लिंकों का आनंद पर....
आप भी अवश्य पधारें....
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएं