कितना सुकून देता है उन
सड़कों पे लौटना
जहां लिखा करते थे खडिया से
अपना नाम कभी
हाथ बढा के आसमान को छू
लेने का होंसला लिए
गुज़र जाता था वक़्त
समय पे अपने निशान छोड़ता
यही तो थी वो सड़क जहां तूने
चलना सिखाया था
वादियों से वापस आती अपनी
ही आवाज़ें हम सफर होती हैं
कोई साथ न हो तो भी
परछाइयां साथ देती हैं
तूने ही तो कहा था
तभी तो इस तन्हा सफर मे
तन्हाइयों का एहसास
डस नहीं पाया, डरा नहीं
पाया
वैसे भी तेरे कहे के आगे,
मैंने सोचा नहीं
सच पूछो तो उन
ब्रह्म-वाक्यों के सहारे
जीवन कितना सहज हो जाता है,
अब तक महसूस कर रहा हूं
अपने छिले हुए घुटनों को
देख
बढ़ जाती है शिद्दत, उन तमाम
रस्तों पे लौटने की
चाहता हूं वहां उम्र के उस
दौर में जाना
जब फिर से किसी की ऊँगली की
जरूरत हो मुझे
मैं जानता हूं तुम्हारी
ऊँगली नहीं मिलने वाली माँ
पर तेरा अक्स लिए
मेरी बेटी तो है उन सड़कों
पे ले जाने के लिए ...
बिटिया में झलक माँ की मिलने लगी है
जवाब देंहटाएंअब तो हर श्वास ममता में पगी है..
सुंदर भावभीनी कविता..
BETI ME MAA KEE JHALAK DEKHI HAI AAPNE YE AAPKE MAN KEE SAHRIDYATA KA PRATEEK HAI. SUNDAR BHAVABHIVYAKTI.BADHAI
जवाब देंहटाएंबिटिया में माँ की झलक का एहसास,बहुत ही भावपूर्ण रचना,आपका आभार.
जवाब देंहटाएंअत्यंत भावपूर्ण रचना...
जवाब देंहटाएंबीते हुए कल "मा " झलक आने वाला कल "बेटी " में देख लिया आपने ,अब तो जिंदगी त्तेजी सी आगे बढ़ेगी
जवाब देंहटाएंLATEST POSTसपना और तुम
सुन्दर प्रस्तुति-
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें-
माँ कभी कही जाती नहीं हैं.....अपने बच्चों में ही समाहित हो जाती है ....बहुत सुंदर रचना दिगम्बर जी.....धन्यवाद...
जवाब देंहटाएंमैं जानता हूं तुम्हारी ऊँगली नहीं मिलने वाली माँ
जवाब देंहटाएंपर तेरा अक्स लिए
मेरी बेटी तो है उन सड़कों पे ले जाने के लिए
Waah ! bahut sundar !
पर तेरा अक्स लिए
जवाब देंहटाएंमेरी बेटी तो है उन सड़कों पे ले जाने के लिए ...
इस से अधिक बेहतरीन और क्या होगा ..बहुत खूब ...सुन्दर अभिवयक्ति
मैं जानता हूं तुम्हारी ऊँगली नहीं मिलने वाली माँ
जवाब देंहटाएंपर तेरा अक्स लिए
मेरी बेटी तो है उन सड़कों पे ले जाने के लिए .
आप तो माँ पर एक महाकाव्य लिख रहे हैं जो एक धरोहर बनेगा ……………खूबसूरत अहसासों के साथ दर्द का समावेश भिगोता है।
वादियों से वापस आती अपनी ही आवाज़ें हम सफर होती हैं
जवाब देंहटाएंकोई साथ न हो तो भी परछाइयां साथ देती हैं ......अद्भुत। पूरी कविता ही अद्भुत प्रतीत होती है।
bahut sundar bhav abhivyakti ,,sarthak rachna beti me ma ko dekhna
जवाब देंहटाएंअपनी बेटी में माँ की झलक ,,,,, कितना सुन्दर
जवाब देंहटाएंह्रदय तक पहुँचते भाव
सादर !
यादों के एहसासात को ताज़ा करती सशक्त रागात्मक प्रस्तुति ,आभार आपकी टिप्पणियों का .
जवाब देंहटाएंआपकी कलम मन आर्द्र कर देती है। कुछ कहने को बचता ही नहीं। बहुत सुन्दर!
जवाब देंहटाएंमाँ के याद में डूबी हुई आपकी रचना माँ के याद में आंसू ला देते हैं ,भावभीनी कविता बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंमैं जानता हूं तुम्हारी ऊँगली नहीं मिलने वाली माँ
जवाब देंहटाएंपर तेरा अक्स लिए
मेरी बेटी तो है उन सड़कों पे ले जाने के लिए ..
..सच बेटी भी तो माँ का ही एक रूप है ....बहुत सुन्दर माँ सी प्यारी रचना ..
बहुत ही मर्म स्पर्शी।
जवाब देंहटाएंसादर
सच पूछो तो उन ब्रह्म-वाक्यों के सहारे
जवाब देंहटाएंजीवन कितना सहज हो जाता है, अब तक महसूस कर रहा हूं
--------------------------------
सब तो इसी में रचा-बसा है.... उम्दा पोस्ट ..
so sweet ..
जवाब देंहटाएंबहुत मर्मस्पर्शी , हम कितने भी बड़े हो जाए लेकिन माँ बहुत याद आती है ........
जवाब देंहटाएंप्रभावशाली ,
जवाब देंहटाएंजारी रहें।
शुभकामना !!!
आर्यावर्त
आर्यावर्त में समाचार और आलेख प्रकाशन के लिए सीधे संपादक को editor.aaryaavart@gmail.com पर मेल करें।
आपकी यह प्रस्तुति कल के चर्चा मंच पर है
जवाब देंहटाएंकृपया पधारें
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंसाझा करने के लिए आभार!
मर्म को छूने वाली अभिव्यक्ति..... बहुत ही सुंदर
जवाब देंहटाएंकाव्य की अंतिम पंक्तियां दिल में हिलोरे निर्माण करती है मां कारू बेटी में देखना मां के प्रति अति उच्च प्रेम को दर्शाता है। कोई साथ हो न हो परछाइयां साथ होती है कहना अकेलेपन को दूर भगाना है।
जवाब देंहटाएंबच्चे ही जान सकते हैं क्या होती है मां। एक अक्षर, जिस पर सब निर्भर।
जवाब देंहटाएंकभी रुस के विख्यात लेखक मक्सिम गोर्की की मां नामक कालजयी कृति (उपन्यास) पढ़िएगा। आपके लिए तो अत्यन्त विशेष होगा यह। मुझे मिल नहीं पा रहा अपने आस-पास की दूकानों पर नहीं तो आपके लिए भिजवाता। हिन्दी में अनूदित संस्करण लें। इंग्लिश में मदर नाम से है।
ऐसी ही उम्मीद मेरे दिल ने बांधी अपने बेटे से...पिता को खोने के बाद...
जवाब देंहटाएंआपकी भावनाओं को समझ पा रही हूँ...
सादर
अनु
नारी हर रूप में पुरुष को शक्ति प्रदान करती है।
जवाब देंहटाएंसशक्त प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंमां की परछाईं भी,भाग्यशालियों को मिलती है.
जवाब देंहटाएंमां की परछाईं भी,भाग्यशालियों को मिलती है.
मैं जानता हूं तुम्हारी ऊँगली नहीं मिलने वाली माँ
जवाब देंहटाएंपर तेरा अक्स लिए
मेरी बेटी तो है उन सड़कों पे ले जाने के लिए ...
बहुत ख़ूबसूरत...
आज की ब्लॉग बुलेटिन विश्व होम्योपैथी दिवस और डॉ.सैम्यूल हानेमान - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंमैं जानता हूं तुम्हारी ऊँगली नहीं मिलने वाली माँ
जवाब देंहटाएंपर तेरा अक्स लिए
मेरी बेटी तो है उन सड़कों पे ले जाने के लिए ...
बहुत ख़ूबसूरत...
बहुत ही भावपूर्ण रचना...
जवाब देंहटाएंइश्वर वह सुकून आपको दे जिसे आपको हर जगह तलाशते पाया .....उस दर्द को रहत दे..जो हर रचना से रिसता है .....वह चैन अता करे .....जो शायद किसी के साथ उसकी ऊँगली पकड़कर चला गया है ..आपसे दूर !
जवाब देंहटाएंबेटी में भी माँ के अक्स की तलाश । बिल्कुल सही और भावपूर्ण...
जवाब देंहटाएंमां तो मां ही हो सकती है.
जवाब देंहटाएंबहुत प्रभावी उम्दा प्रस्तुति !!!
जवाब देंहटाएंrecent post : भूल जाते है लोग,
कमाल की कविता और अंतिम पंक्तियों पर तो बस दिल जीत लिया.. मैं तो आज भी बंगाल की उस परम्परा का कायल हूँ जहाँ बेटियों को माँ कहकर पुकारा जाता है!!
जवाब देंहटाएंदिल को छू गई ...बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबेटी में माँ का अक्स ...बहुत सुंदर ॥भाव प्रवण रचना
जवाब देंहटाएंaaha ha aaadbhut..waaaaah
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंनवसम्वत्सर-२०७० की हार्दिक शुभकामनाएँ स्वीकार करें!
माँ का ही रूपान्तरण है बेटी!
जवाब देंहटाएंअपने छिले हुए घुटनों को देख
जवाब देंहटाएंबढ़ जाती है शिद्दत, उन तमाम रस्तों पे लौटने की
चाहता हूं वहां उम्र के उस दौर में जाना
जब फिर से किसी की ऊँगली की जरूरत हो मुझे
....बहुत खूब दिगंबर नासवा जी....मुझे लगता हैं मां के नाम सीरीज की नज्मों का एक मजमुआ़ निकालने पर आपको विचार करना चाहिए.
ज्यों ज्यों बढ़ती हृदय व्यग्रता, पंथ पुराना अच्छा लगता,
जवाब देंहटाएंमन को भाती बिछड़ी राहें, सब बिसराना अच्छा लगता।
हृदयस्पर्शी पंक्तियाँ.
जवाब देंहटाएंमहसूस होती पंक्तियाँ.
जवाब देंहटाएंsundar sahaj kavita...
जवाब देंहटाएंsundar sahaj kavita...Sharda Arora
जवाब देंहटाएंmarmsparshi.
जवाब देंहटाएंसच में कविता तो ऐसी ही होनी चाहिए जिसे पढने के बाद एक भाव तरंग मन में गूंजती रहे ..लाजबाब सादर प्रणाम के साथ
जवाब देंहटाएंbahut bhavpurn kavita , maan ke svaroop ko beti men dekhana kitna sukhad soch hai. jinhen ham kabhi bhoolana nahin chahte ve hamare man men sadaiv rahate hain.
जवाब देंहटाएंउम्र के एक खास पड़ाव की अनुभूति से रु-ब-रु आपकी कविता ने इस दिल को कराया.
जवाब देंहटाएंउम्र के एक खास पड़ाव के एहसास ने दिल को दस्तक दी. सुन्दर रचना.
जवाब देंहटाएंउम्र के एक खास पड़ाव के एहसास ने दिल को दस्तक दी. सुन्दर रचना.
जवाब देंहटाएंसुंदर एवं भावपूर्ण रचना...
जवाब देंहटाएंसाधुवाद.
बहुत सुंदर ...
जवाब देंहटाएंनव संवत्सर की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ!!
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंमाँ के ब्रह्म-वाक्यों के सहारे जीवन कितना आसानी से गुज़र जाता है....
जवाब देंहटाएंबेटी के रूप में फिर से उन्हें पाकर कितना सुक़ून और खुशी मिली होगी आपको....
बिटिया को स्नेहाशीष!:)
~सादर!!!
माँ का दिया विश्वास सारे रास्ते तय कर देता है ...
जवाब देंहटाएंमैं जानता हूं तुम्हारी ऊँगली नहीं मिलने वाली माँ
जवाब देंहटाएंपर तेरा अक्स लिए
मेरी बेटी तो है उन सड़कों पे ले जाने के लिए ...
...बिल्कुल सच कहा है..जब बेटी माँ की तरह ध्यान रखती है तो उसमें माँ का प्रतिरूप ही दिखाई देता है...बहुत सुन्दर भावमयी रचना...
मैं जानता हूं तुम्हारी ऊँगली नहीं मिलने वाली माँ
जवाब देंहटाएंपर तेरा अक्स लिए
मेरी बेटी तो है उन सड़कों पे ले जाने के लिए ...सुंदर भाव लिए कविता
भावपूर्ण
जवाब देंहटाएंमाँ का प्रेमिल अंश आप स्वयं हैं उसका प्रक्षेपण और जीवन खंड भी .बढ़िया प्रस्तुति .
जवाब देंहटाएंमेरी बेटी तो है उन सड़कों पे ले जाने के लिए ... माँ की झलक का एहसास,.........सुंदर भाव
जवाब देंहटाएंअपने छिले हुए घुटनों को देख
जवाब देंहटाएंबढ़ जाती है शिद्दत, उन तमाम रस्तों पे लौटने की....
सुंदर भावपूर्ण कविता
bahut jameenee kavita likhi hai.....Maa ko aapki kavitayen har aksh me dhoondh hi leti hain, vo kabhi beti me to kabhi patni me!Maa ko samarpit aapka ye blog, achchhi anubhooti deta hai.
जवाब देंहटाएंमैं जानता हूं तुम्हारी ऊँगली नहीं मिलने वाली माँ
जवाब देंहटाएंपर तेरा अक्स लिए
मेरी बेटी तो है उन सड़कों पे ले जाने के लिए ... ........
शब्द नहीं है और इस के आगे.......हैट्स ऑफ।
Bahut khub...
जवाब देंहटाएंthe feel of nostalgia.. and the whole setting of childhood memories was lovely to read../
जवाब देंहटाएंand those concluding lines.. made it much more beautiful :)
बचपन के वो दिन और ..माँ..कब भूल सकता है कोई?
जवाब देंहटाएंमन को भेदती रचना .
मन की गहरी अनुभूतियोँ, वाह !!!!
जवाब देंहटाएंमाँ की ममता -मृत्यु के समय तक साथ रहती है |यह असीम है
जवाब देंहटाएंअंतिम पंक्तिया भाव विभोर करती हैं
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत रचना
बेटी में माँ का प्रतिरूप दिखना स्वाभाविक है.
जवाब देंहटाएंनवसंवत्सर की शुभकामनाएँ.
सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंशुक्रिया आपकी अमूल्य टिप्पणियों का .
जवाब देंहटाएंVery nostalgic. B'ful description.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया भाव ...
जवाब देंहटाएंbhut bhav purn rachna.
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा .अर्थपूर्ण,सुन्दर अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंबहुत खूब...
जवाब देंहटाएंसूंदर प्रस्तुति।।।
माँ का प्यार जीवन भर का सहारा है. जब भी डगमगाएँ उनके कहे हर शब्द ब्रह्म वाक्यों-से जीवन को थामते हैं. पुत्री में माँ का अक्स... ओह... मन में जैसे कुछ पिघल गया... हार्दिक शुभकामनाएँ.
जवाब देंहटाएंमेरी बेटी तो है उन सड़कों पे ले जाने के लिए ...
जवाब देंहटाएं...बिल्कुल सच कहा है