घर की देहरी से कहां बाहर
गई है
नीव का पत्थर ही बन के माँ
रही है
बचपने में डांट
के रोती थी खुद भी
अब नहीं वो
डांटती मुझको कभी है
घर न लौटूं तो
कभी सोती नहीं थी
अब वो ऐसी सोई की
उठती नहीं है
दुःख के लम्हे छू नहीं पाए
कभी भी
घर में जब तक साथ वो मेरे
रही है
रोक लेता मैं अगर ये बस में
होता
वक़्त के आगे भला किसकी चली
है
वक्त के आगे सभी बेबस हैं.
जवाब देंहटाएंवक्त ही सबसे वालवान है
जवाब देंहटाएंlatest post बे-शरम दरिंदें !
latest post सजा कैसा हो ?
वक़्त के आगे भला किसकी चली है ...सच
जवाब देंहटाएंमार्मिक कविता
वक्त के आगे भला किसकी चली है .....सत्य
जवाब देंहटाएंसही बात है वक़्त बड़ा बलवान ..
जवाब देंहटाएंमार्मिक प्रस्तुति आदरणीय ...
रोक लेता मैं अगर ये बस में होता
जवाब देंहटाएंवक़्त के आगे भला किसकी चली है
वाकई
बहुत सुन्दर श्रद्धा सुमन
बहुत ममतामयी पंक्तियां।
जवाब देंहटाएंदुःख के लम्हे छू नहीं पाए कभी भी
जवाब देंहटाएंघर में जब तक साथ वो मेरे रही है
ये मर्मस्पर्शी है...
मेरी पसन्द
आभार्
बिछोह के बाद, आसरे की याद...
जवाब देंहटाएंवक़्त के हाथों हम सभी मजबूर हैं .....ह्रदयस्पर्शी रचना .
जवाब देंहटाएंवक़्त के हाथों हम सभी मजबूर हैं .....ह्रदयस्पर्शी रचना .
जवाब देंहटाएंवक़्त के हाथों हम सभी मजबूर हैं .....ह्रदयस्पर्शी रचना .
जवाब देंहटाएंघर न लौटूं तो कभी सोती नहीं थी
जवाब देंहटाएंअब वो ऐसी सोई की उठती नहीं है
बहुत मार्मिक .... वक़्त के आगे इंसान बेबस ही हो जाता है ...
बहुत ही हृदय स्पर्शी रचना ,,, मां आखिर माँ होती है ..
जवाब देंहटाएंदिल को झकझोर दिया आपके लफ्जों ने... माँ जैसा इस दुनिया में भला कौन हो सकता है...
जवाब देंहटाएंवक़्त के आगे कब किसकी चली है ? बहुत बड़ा मरहम होता है ये वक़्त अगर जख्म देता है तो कल मरहम बन कर राहत देता है .
जवाब देंहटाएंनितांत मार्मिक और हृदयस्पर्षि रचना, शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
घर न लौटूं तो कभी सोती नहीं थी
जवाब देंहटाएंअब वो ऐसी सोई की उठती नहीं है ………बेहद मर्मस्पर्शी
माँ की यादे हृदय को और संबल दें..वह आत्मीयता भावों में व्यक्त हो।
जवाब देंहटाएंरोक लेता मैं अगर ये बस में होता
जवाब देंहटाएंवक़्त के आगे भला किसकी चली है
यही बेबसी तो खा जाती है भीतर तक..
:-(
सादर
अनु
aaha ha...kya bat hai !!!!! kooch comment ho hi nhi sakti bhetrin....
जवाब देंहटाएंघर न लौटूं तो कभी सोती नहीं थी
जवाब देंहटाएंअब वो ऐसी सोई की उठती नहीं है
दिल को छू गई यह पंक्तियाँ ...सच कहा है
वक्त के आगे कितना मजबूर है इंसान !
रोक लेता मैं अगर ये बस में होता
जवाब देंहटाएंवक़्त के आगे भला किसकी चली है ..
सच वक्त के आगे सभी बेवस हो जाते हैं ...
..माँ की यादों में डूबी सार्थक प्रस्तुति ...
रोक लेता मैं अगर ये बस में होता
जवाब देंहटाएंवक़्त के आगे भला किसकी चली है
....सच कहा है, वरना कौन जाने देता माँ को..बहुत मर्मस्पर्शी रचना..
वाह बहुत खूब.
जवाब देंहटाएंहर बार आँखें नम करती हैं आपकी रचनाएँ .....हृदयस्पर्शी
जवाब देंहटाएंवक्त के आगे किसी की नहीं चलती है ...............सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंघर न लौटूं तो कभी सोती नहीं थी
जवाब देंहटाएंअब वो ऐसी सोई की उठती नहीं है -----
गहन अनुभूति
सुंदर रचना
बधाई
यही तो मुश्किल है कितना भी समर्थ हो कोई वक्त के आगे बेबस हो जाता है.
जवाब देंहटाएंदुःख के लम्हे छू नहीं पाए कभी भी
जवाब देंहटाएंघर में जब तक साथ वो मेरे रही है
----
आह...
अच्छी रचना।
जवाब देंहटाएंहृदयस्पर्शी. बहुत अच्छे से आपने व्यक्त किया है.
जवाब देंहटाएंमन को छूती भावपूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंघर न लौटूं तो कभी सोती नहीं थी
जवाब देंहटाएंअब वो ऐसी सोई की उठती नहीं है बहुत सच्ची अभिव्यक्ति ...
बहुत सुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएंरोक लेता मैं अगर ये बस में होता
वक़्त के आगे भला किसकी चली है
पर
माँ तुम तो अब भी साथ हो इस मन में भले गयी हो तुम कहीं दूर गगन में.....
हर शेर एक पर एक...संवेदनाओं से भरे...विषय एक आयाम कई....ऐसी गजलें कम कही गयी हैं जिनके सारे शेर स्वतंत्र भी हों और एक दूसरे के अर्थ को विस्तार भी देते हों. मुबारक हो...
जवाब देंहटाएंवक्त के आगे किसी की नहीं चलती...समय अपने साथ सब कुछ बहा के ले जाता है बस एक को छोड़कर..और वह है पावन स्मृति...
जवाब देंहटाएंवक्त के हाथों हम सभी मजबूर होते है,काश वक्त हमारे हाथों में होता.बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंsunder prastuti.
जवाब देंहटाएंwaqt ke anusaar maa bhi badal gayee .......
जवाब देंहटाएंअभी तक यादे ...आ आ कर सताती हैं
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंजिसका स्वमान हनू हो वह हनू -मान होता है .जो मान(अहंकार ,अभिमान का मर्दन कर चुका है सदैव ही आज्ञा कारी है वह हनू -मान है .जो हर काम राम से पूँछ के करे इसीलिए पूंछ लिए है वह हनू -मान है .बढ़िया प्रस्तुति हनुमान जयंती पर . शुक्रिया अनिता जी .हनुमान जयंती मुबारक .
हकीकत यही है एक दिन हम सभी बिन माँ के हो आ जाते हैं .यही शाश्वत सत्य है .शिरोधार्य है .स्वीकृत है .
माँ की एहमियत ...
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह शानदार गजल। बधाई।
जवाब देंहटाएं............
एक विनम्र निवेदन: प्लीज़ वोट करें, सपोर्ट करें!
वक्त ही इतना सबल और सक्षम है कि उसको कोइ रोक भी नहीं सकता जाने से भी और मरहम लगाने से भी .....
जवाब देंहटाएंदुःख के लम्हे छू नहीं पाए कभी भी
जवाब देंहटाएंघर में जब तक साथ वो मेरे रही है
सच ... माँ के साये में हर पल महफूज़ लगता है
सादर
baavpuran
जवाब देंहटाएंbaavpuran
जवाब देंहटाएंbaavpuran
जवाब देंहटाएंमाँ कि जगह कोई नहीं ले सकता ...
जवाब देंहटाएंसच कह रहे हो रोक लेते....मगर वक्त!!
जवाब देंहटाएंशानदार गजल। बधाई।
जवाब देंहटाएंदिल को छू लेनेवाली रचना
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
रोक लेता मैं अगर ये बस में होता
जवाब देंहटाएंवक़्त के आगे भला किसकी चली है
वक्त के आगे किसकी चली है.
जवाब देंहटाएंअब भी पलता हूँ मैं उसकी याद में ,
वह युगों से साथ मेरे ही रही है .इसीलिए वह ईश्वर का ही रूप है .
वाह!
जवाब देंहटाएंदर्द चाहे जिसने दिया हो
दवा तो माँ ही देती है।
आपकी लेखनी में कुछ यूँ खो जाता हूँ मैं
जवाब देंहटाएंमाँ याद आती है दिगम्बर हो जाता हूँ मैं।
दिल को छू लेनेवाली शानदार गजल।
जवाब देंहटाएंमार्मिक भावपूर्ण
जवाब देंहटाएंमाँ तो माँ ही है
सादर!
दुःख के लम्हे छू नहीं पाए कभी भी
जवाब देंहटाएंघर में जब तक साथ वो मेरे रही है
भावविह्वल कर गई यह रचना !
बस आह..बेबस हम..
जवाब देंहटाएंशुक्रिया !
जवाब देंहटाएंmaarmik rachna. sadhuwaad! :)
जवाब देंहटाएंChali to gaee hai wah lagta hia lekin
जवाब देंहटाएंRooh usaki aas pass rahati yaheen hai.
दुःख के लम्हे छू नहीं पाए कभी भी
जवाब देंहटाएंघर में जब तक साथ वो मेरे रही है
बहुत ही कोमल भाव.........
वक़्त का पहिया ऐसे चलता
जवाब देंहटाएंजुगनू जैसे जलता बुझता
इस जुगनू को पकड़ जो पाए
वक़्त उसी के संग हो जाये
आपके दिल में बना है आपकी माँ के प्यार का आशियाना !!
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तेरे मेरे प्यार का अपना आशियाना !!
time's never enough for the people we love.. we tend to crave more n more
जवाब देंहटाएंबहुत ही हृदय स्पर्शी रचना ,
जवाब देंहटाएंघर न लौटूं तो कभी सोती नहीं थी
जवाब देंहटाएंअब वो ऐसी सोई की उठती नहीं है
उफ़्फ़…माँ पर एक और खूबसूरत रचना ....
माँ पर एक पूरी किताब का रिकोर्ड बना डालेंगे आप। ...:))
ह्रदयस्पर्शी रचना
जवाब देंहटाएंअत्यंत भाव प्रबल ....सीधे ह्रदय तक पहुंचती बात ...बहुत सुन्दर रचना ...आँख नाम कर गई ...!!
जवाब देंहटाएंमाँ के लिए लिखी गई आपकी सभी रचनाएं बेहद भावुक और मार्मिक हैं, शुभकामनाएँ.
जवाब देंहटाएंno words to say .....
जवाब देंहटाएंघर न लौटू तो..........
जवाब देंहटाएंछू गया दिल को
May her soul RIP!
जवाब देंहटाएंMay she continue to be your strength!
Warm regards,
D
यही तो सबसे बड़ी विडम्बना है जीवन की,कि वक्त के आगे किसी की चलती नहीं है।
जवाब देंहटाएंKaash...!
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना .
जवाब देंहटाएं