उदासी जब कभी बाहों में
मुझको घेरती है
तू बन के राग खुशियों के
सुरों को छेड़ती है
तेरे एहसास को
महसूस करता हूं हमेशा
हवा बालों में मेरे
उंगलियां जब फेरती है
चहल कदमी सी होती है यकायक
नींद में फिर
निकल के तू मुझे तस्वीर से
जब देखती है
तू यादों में चली आती है जब
बूढी पड़ोसन
कभी सर्दी में फिर काढा बना
के भेजती है
“खड़ी है धूप छत पे कब तलक
सोता रहेगा”
ये बातें बोल के अब धूप
मुझसे खेलती है
तेरे हाथों की खुशबू की महक
आती है अम्मा
बड़ी बेटी जो फिर मक्की की
रोटी बेलती है
नहीं देखा खुदा को पर तुझे
देखा है मैंने
मेरी हर सांस इन क़दमों पे
माथा टेकती है
सुन्दर भाव-
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय-
निशब्द हूँ एहसास भरे इन शब्दों को पढ़कर.
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंदिगंबर जी,
बहुत सुंदर अहसास हैं ये...बिल्कुल जिंदा...यह कविता आज बेंगलूर से प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र "दक्षिण भारत' में प्रकाशित करने की अनुमति चाहता हूं। इन पंक्तियों के सम्मानार्थ इनका गैर-वाणिज्यिक प्रयोग होगा। पूर्वानुमति की अपेक्षा सहित चाहूंगा कि कृपया कल (27 जून 2013) का दक्षिण भारत का ई-अखबार (http://www.dakshinbharat.com/e-paper/) देखें।
सधन्यवाद
राजकुमार भट्टाचार्य
आय हाय वाह वाह वाह आदरणीय दिगम्बर सर जी लूट लिया आपने ग़ज़ल केवल ह्रदय को स्पर्श ही नहीं अपितु नस नस में समा गई, कथ्य शिल्प और भाव का ऐसा सुन्दर सरोवर जिसमे डुबकी लगाकर आत्मा तृप्त हो गई. दिल से ढेरों दाद के साथ साथ भूरि भूरि बधाई स्वीकारें.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंतेरे एहसास को महसूस करता हूं हमेशा
जवाब देंहटाएंहवा बालों में मेरे उंगलियां जब फेरती है
सुंदर अहसास
बहुत खुबसूरत अहसास की खुबसूरत अभिव्यक्ति ,बधाई स्वीकारें
जवाब देंहटाएंlatest post जिज्ञासा ! जिज्ञासा !! जिज्ञासा !!!
मातृ वन्दना!! स्मृति वेदना का अहसास!! शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंमाँ पर बेहतरीन लिखा आपने !!
जवाब देंहटाएंवाह...बहुत खूब अनुपम भाव संयोजन।
जवाब देंहटाएंचहल कदमी सी होती है यकायक नींद में फिर
जवाब देंहटाएंनिलक के तू मुझे तस्वीर से जब देखती है
@ digambar ji ye shayad ''nilak''main janti nahi ki iska koi arth hai ya fir trutivash ye yahan ''nikal ''ka ''nilak''ho gaya hai yedi meri koi galti hui ho to maf kijiyega .
बहुत सुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति आभार संजय जी -कुमुद और सरस को अब तो मिलाइए. आप भी जानें संपत्ति का अधिकार -४.नारी ब्लोगर्स के लिए एक नयी शुरुआत आप भी जुड़ें WOMAN ABOUT MAN
Pata nahi kin,kin ahsasone mujhe ghera aur aankh bhar aayi!
जवाब देंहटाएंhar paknti hrdy ko khankjhor deti hai aapki .
जवाब देंहटाएंआदरणीय राज कुमार जी ...
जवाब देंहटाएंआप चाहें तो इस रचना को अपने पत्र में प्रकाशित कर सकते हैं ... मुझे अच्छा लगेगा ...
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 27/06/2013 को चर्चा मंच पर होगा
जवाब देंहटाएंकृपया पधारें
धन्यवाद
बहुत बहुत खूब।
जवाब देंहटाएंतेरे हाथों की खुशबू की महक आती है अम्मा
जवाब देंहटाएंबड़ी बेटी जो फिर मक्की की रोटी बेलती है
...निशब्द कर दिया हरेक शेर ने...अद्भुत प्रस्तुति..आपके मातृ प्रेम को नमन...
marmsparshi gazal ! bahut badhiya
जवाब देंहटाएंतेरे हाथों की खुशबू की महक आती है अम्मा ,
जवाब देंहटाएंबड़ी बेटी जो फिर मक्की की रोटी बेलती है ।
बेटियां मां का प्रतिरूप होती हैं और पोतियां दादी-नानी का,
मां का अस्तित्व अनश्वर है।
तेरे एहसास को महसूस करता हूं हमेशा
जवाब देंहटाएंहवा बालों में मेरे उंगलियां जब फेरती है
बहुत खुबसूरत अहसास की खुबसूरत अभिव्यक्ति,नमन....
दिगंबर जी , निशब्द कर दिया आपकी इस रचना ने .. माँ पर रचित आपकी सभी रचनाएँ बहुत सुन्दर व भावपूर्ण होती हैं पर यह गज़ल तो अंतर्मन तक भावों को उद्द्वेलित कर गई
जवाब देंहटाएंनमन माँ के हर ख्याल को भी
जवाब देंहटाएंजीवन सारा न्योछावर माँ पर!
कुँवर जी,
“खड़ी है धूप छत पे कब तलक सोता रहेगा”
जवाब देंहटाएंये बातें बोल के अब धूप मुझसे खेलती है
तेरे हाथों की खुशबू की महक आती है अम्मा
बड़ी बेटी जो फिर मक्की की रोटी बेलती है
खूबसूरत अहसासों से सजी रचना
सजीव चित्रण
जवाब देंहटाएंनहीं देखा खुदा को पर तुझे देखा है मैंने
मेरी हर सांस इन क़दमों पे माथा टेकती है
यह ही सत्य हैं ....
हार्दिक शुभकामनायें
सजीव चित्रण
जवाब देंहटाएंनहीं देखा खुदा को पर तुझे देखा है मैंने
मेरी हर सांस इन क़दमों पे माथा टेकती है
यह ही सत्य हैं ....
हार्दिक शुभकामनायें
स्मृति और एहसास दोनों गूंथे हैं एक दूसरे से
जवाब देंहटाएंबहुत भावपूर्ण.
तेरे हाथों की खुशबू की महक आती है अम्मा
जवाब देंहटाएंबड़ी बेटी जो फिर मक्की की रोटी बेलती है
बहुत खूब ...
माँ सर्वव्यापक ..। हमेशा की तरह भावपूर्ण रचना ।
जवाब देंहटाएंवाह वाह वाह बहुत खूब ...खूबसूरत अहसासों से सजी रचना
जवाब देंहटाएंनहीं देखा खुदा को पर तुझे देखा है मैंने
जवाब देंहटाएंमेरी हर सांस इन क़दमों पे माथा टेकती है
बेहद खुबसूरत
गहरे अनुभव से सराबोर पंक्तियां।
जवाब देंहटाएंआखिर की दो पंक्तियों का भावार्थ शायद कहीं खटक रहा है कृपया देख लें।
स्वगत कथन से आगे निकलके किसी को(माँ को ) बहुत करीब अपने में देखने का एहसास कराती है यह रचना .
जवाब देंहटाएं“खड़ी है धूप छत पे कब तलक सोता रहेगा”
ये बातें बोल के अब धूप मुझसे खेलती है
तेरे हाथों की खुशबू की महक आती है अम्मा
बड़ी बेटी जो फिर मक्की की रोटी बेलती है
तेरे हाथों की खुशबू की महक आती है अम्मा
जवाब देंहटाएंबड़ी बेटी जो फिर मक्की की रोटी बेलती है
lajbab prastuti Gajal ka hr sher mn ko prbhavit kr gya Naswa ji .
माँ की व्याप्ति चारों ओर है -बस अनुभव करने की देर है !
जवाब देंहटाएंतेरे एहसास को महसूस करता हूं हमेशा
जवाब देंहटाएंहवा बालों में मेरे उंगलियां जब फेरती है
बहुत ही खूबसूरत एहसास.
रामराम.
माँ के स्प्रश को और उनके एहसास को बहुत खूबसूरती से शब्दों में उकेर दिया है .... भाव मयी रचना ।
जवाब देंहटाएंतू यादों में चली आती है जब बूढी पड़ोसन
जवाब देंहटाएंकभी सर्दी में फिर काढा बना के भेजती है
हमेशा की तरह बेमिसाल
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंbahut sundar paawan bhav .....
जवाब देंहटाएंmamtamayi rachna ....bhawon se sarabore ......
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंएक एहसास जो कभी मिटता नहीं ताउम्र साथ रहता है किसी कोने में छुपा सा ....
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंकिसी के दूर होने पर ताउम्र उनका एहसास ही तो साथ रह जाता है,किसी कोने में छुपा सा...
जवाब देंहटाएंनहीं देखा खुदा को पर तुझे देखा है मैंने
जवाब देंहटाएंमेरी हर सांस इन क़दमों पे माथा टेकती है
काश हर संतान ऐसे विचारों से पूर्ण हो तो फिर झुर्रियों से भरे चेहरों पर ढलकते हुए आंसू कभी देखने को न मिले . लोग कहते हैं की पता नहीं कब इनको मौत आएगी ? हाँ ऐसा भी मैने माँ के लिए कहते सुना है .
माँ पर बेहतरीन लिखा आपने दिगंबर जी,आपका आभार।
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंचहल कदमी सी होती है यकायक नींद में फिर
निकल के तू मुझे तस्वीर से जब देखती है
“खड़ी है धूप छत पे कब तलक सोता रहेगा”
ये बातें बोल के अब धूप मुझसे खेलती है
तेरे हाथों की खुशबू की महक आती है अम्मा
बड़ी बेटी जो फिर मक्की की रोटी बेलती है
अद्भुत लिखा है ...
खड़ी है धूप छत पे कब तलक सोता रहेगा”
जवाब देंहटाएंये बातें बोल के अब धूप मुझसे खेलती है
तेरे हाथों की खुशबू की महक आती है अम्मा
बड़ी बेटी जो फिर मक्की की रोटी बेलती है
BEAUTIFUL LINES WITH EMOTIONS
खड़ी है धूप छत पे कब तलक सोता रहेगा”
जवाब देंहटाएंये बातें बोल के अब धूप मुझसे खेलती है
तेरे हाथों की खुशबू की महक आती है अम्मा
बड़ी बेटी जो फिर मक्की की रोटी बेलती है
बेहतरीन
बड़े सशक्त बिम्ब संजोये हैं भाव और अर्थ की शानदार लयकारी समस्वरता .क्या कहने हैं इस भाव अभिव्यक्ति के . .ॐ शान्ति .
जवाब देंहटाएंआपकी टिप्पणियाँ हमारी शान हैं शुक्रिया .बेहतरीन प्रस्तुतियों के लिए मुबारक बाद और बधाई क्या बढाया .ॐ शान्ति .
तू यादों में चली आती है जब बूढी पड़ोसन
कभी सर्दी में फिर काढा बना के भेजती है
एक और बेहतरीन रचना के लिए बधाई।
जवाब देंहटाएंमैं देर से हाज़िर हुआ हूँ पोस्ट पर, दोस्तों ने सब कुछ कह दिया है। मेरे नज़दीक, अगर शॉर्ट में कहूँ तो, यह ग़ज़ल सतही और टू मच इमोशनल बातों के बीच है, जिसे सीधे-सीधे आत्मा की आवाज़ कहा जा सकता है। प्रयोग भी बहुत अच्छे हुए हैं, हवा के द्वारा बालों में उँगलियाँ घुमाना, तस्वीर से निकाल कर नींद में चहलकदमी, बूढ़ी पड़ोसन का काढ़ा ले कर आना, धूप खेलती है [ये बहुत स्पेशल है], बड़ी बेटी के द्वारा मकके की रोटी का बेलना............ बोले तो बॉस एक दम झकास ग़ज़ल है। तबीयत हरी हो गयी। दिगम्बर भाई ज़िन्दाबाद..............
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन हर बार सेना के योगदान पर ही सवाल क्यों - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर गजल
जवाब देंहटाएंबड़े नाज़ुक और खुबसूरत अहसास ....
जवाब देंहटाएंमाता जी को नमन !
तू यादों में चली आती है जब बूढी पड़ोसन
जवाब देंहटाएंकभी सर्दी में फिर काढा बना के भेजती है
बहुत ही खूबसूरत एहसास.
माँ तो माँ ही है ...जय श्री राधे ..बधाई
भ्रमर ५
माँ को मूर्त करती हैं इन दिनों आपकी लेखनी .एक भाव शान्ति सब की होती रहती है चुपके चुपके .शुक्रिया आपकी टिप्पणियों का ॐ शान्ति .
जवाब देंहटाएंExpand
Virendra Sharma @Veerubhai194727m
ram ram bhai मुखपृष्ठ शुक्रवार, 28 जून 2013 आपदाओं के प्रबंधक
ram ram bhai मुखपृष्ठ शुक्रवार, 28 जून 2013 आपदाओं के प्रबंधक
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bahut hi bhaavpoorn abhivyakti sundar shabdo se saji aur suro mei bandhi :-) badhai
जवाब देंहटाएंमेरी नयी रचना Os ki boond: लव लैटर ...
बहुत ही सुन्दर अहसासों से बुनी हुई रचना .
जवाब देंहटाएंगुलजार साहब की वो कविता याद आ रही है माँ का दिल बनके कभी सीने से लग जाता है तू और कभी नन्ही सी बेटी बन के याद आता है तू, जितना याद आता है उतना तड़पाता है तू
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना के लिए बधाई स्वीकारें.
जवाब देंहटाएंमाँ के प्रति स्नेहिल भाव..
जवाब देंहटाएंlajawab-***
जवाब देंहटाएंशुक्रिया आपकी टिपण्णी का इस बेहतरीन रचना के लिए ....
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
क्या कहने
तू यादों में चली आती है जब बूढी पड़ोसन
जवाब देंहटाएंकभी सर्दी में फिर काढा बना के भेजती है
वाह ! बहुत खूब ! लाजवाब
कविता पढ़ने के बाद मेरी आंखें नम हो गईं.. इतनी सुन्दर पंक्तियों के लिए शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंबार बार पढने को दिल करता है ..
जवाब देंहटाएंआभार आपको !
Ye sach hai ki dharti par bhagwan har jagah nahi pahunch sakta isliye usne "MA" banaya tha. Behatarin shabdon me apne ma ki mahima ka bayan kiya hai..Bahut Bahut dhanyawad.
जवाब देंहटाएंnice lines.
जवाब देंहटाएंमाँ की रचनाओं पर एक किताब तो बन ही गई आपकी । हर रचना सुंदर ।
जवाब देंहटाएंमाँ पर लिखी आपकी हर रचना अद्भुत है...मन की महिमा ही निराली है, इस एक शब्द में सागर छिपे हैं...उनकी लहरों को आप बखूबी पृष्ठों पर उतारते हैं...पढने वालों का मन भींग जाता है...
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएँ....
सादर/सप्रेम
सारिका मुकेश
बहुत ही खूबसूरत अहसासों से सजी रचना !
जवाब देंहटाएंnice lines
जवाब देंहटाएंGood article if you want to know about software click here - Software क्या है ?
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