पता होता है उन्हें
की रौशनी का एक जलता चिराग
जरूर होता है अंधेरे के उस छोर पे
जहां बदलने लगती है जीवन की
आशा, घोर निराशा में
की मुश्किलों की आंच से
जलने वाला चराग
उस काया ने ही तो रक्खा
होता है दिल के किसी सुनसान कोने में
पता होता है उन्हें
की नहीं मिलते खुशियों के
खजाने उस तिलिस्मी दुनिया से
जिसका दरवाज़ा बस, बस में है
अलीबाबा के
उन चालिस चोरों के अलावा
की जिंदगी की हर शै मैं बिखरी
खुशियां ढूँढने का फन
चुपचाप उस काया ने ही उतारा
होता है गहरे कहीं
पता होता है उन्हें
की कट जाएंगे जिंदगी के
तमाम ऊबड़ खाबड़ रस्ते, सहज ही
की उस खुरदरी सतह पे चलने
का हुनर भी सिखाया होता है उसी काया ने
ओर फिर साथ होता है एहसास,
उस काया का
जो कभी अकेला नहीं होने
देता
पंछी जब छोड के जाते हैं
घोंसला, लौटने के लिए
तो पता होता है उन्हें की
खड़ी होगी झुर्रियों से लदी वत्सल काया
असीसों से लदे दो हाथ
उठाये, उनके इंतज़ार में
तैयार तो मैं भी था, (या
शायद नहीं था) लौटने को उस घरोंदे में
पर देर तो हो ही गई थी मुझसे
उस वत्सल काय की जगह, अब
तेरी तस्वीर टंगी है माँ
एक चिराग की भाँति जीवन में प्रकाश फैलाती हुई- स्वयं माँ !
जवाब देंहटाएंचलने का जो भी रूप जाना है, माँ ने ही सिखाया है। भावभरी ममता।
जवाब देंहटाएंपंछी जब छोड के जाते हैं घोंसला, लौटने के लिए
जवाब देंहटाएंतो पता होता है उन्हें की खड़ी होगी झुर्रियों से लदी वत्सल काया
असीसों से लदे दो हाथ उठाये, उनके इंतज़ार में...
बेहद भावुक एवं सुंदर रचना..
Excellent
जवाब देंहटाएंpaulinaSi bb4arg48
सुंदर रचना..
जवाब देंहटाएंbahut shandar aur prabhav shali...mamta mayi rachna
जवाब देंहटाएंममतामयी माँ!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज बृहस्पतिवार (25-07-2013) को हौवा तो वामन है ( चर्चा - 1317 ) पर "मयंक का कोना" में भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
हर शब्द के पीछे खड़ी हो जाती है मां.....बढ़िया पोस्ट...
जवाब देंहटाएं!!
जवाब देंहटाएंKabhi Kabhi maun
Shabd saath nahi dete mere
कवि विगत कई माहों से माँ पर ही केन्द्रित साहित्य रचना कर रहा है जो निश्चित बेजोड़ है और रचनाकार का अपना अधिकार और स्वरुचि है मगर यह सृजनशीलता को एकांगी और सीमित कर देना भी है -अन्य विषयों को भी लें -पाठकों की रुचियों पर भी ध्यान दें!स्वप्न मेरे का एक व्यापक फलक होना चाहिए !
जवाब देंहटाएंमाँ के असीम वात्सल्य से भरी यह एक और लेकिन नई तरह की कविता ।
जवाब देंहटाएंनिश्चित ही जैसा कि श्री अरविन्द जी ने लिखा है आप केवल माँ की स्मृतियों में रची कविताएं लिख रहे हैं लेकिन यह भी सच है कि एक ही कथ्य पर लगातार लिखना ही अपनेआप में विशिष्ट है । खास तौर पर माँ को लेकर । तीव्र अनुभूतियों से उपजी कविता ही वास्तविक कविता होती है । आपकी ये रचनाएं वास्तविक हैं और माँ के लिये आपके गहन स्नेह और उनके वियोग की पीडा को दर्शा रही हैं । जब यह पीडा शान्त हो जाएगी तब निश्चित ही दूसरी कविताएं भी आएंगी ।
पता होता है उन्हें
जवाब देंहटाएंकी कट जाएंगे जिंदगी के तमाम ऊबड़ खाबड़ रस्ते, सहज ही
की उस खुरदरी सतह पे चलने का हुनर भी सिखाया होता है उसी काया ने
Yes, bahut sundar Naswa Ji
ओर फिर साथ होता है एहसास, उस काया का
जवाब देंहटाएंजो कभी अकेला नहीं होने देता
यही अहसास सबसे बड़ी बात है..कोई पास होकर भी दूर हो सकता है और कोई दूर होकर भी सबसे पास होता है
बहुत भावपूर्ण .... माँ कहाँ नहीं , किस रूप में नहीं ?
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!बहुत सुंदर ....
जवाब देंहटाएंबच्चा हर बात माँ से ही सीखता है बहुत खूबसूरती से लिखा है .... तस्वीर में भी माँ की वत्सलता ही दृष्टिगोचर होती है ।
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह मार्मिक लगी यह रचना भी !
जवाब देंहटाएंममतामयी माँ का हर रुप निराला है..
जवाब देंहटाएंनि:शब्द...
जवाब देंहटाएंइतने दिनों में आज पहली बार मेरी भी आँखें भिगो गयी आपकी यह रचना...अत्यंत मार्मिक प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंमाँ की याद में डुबी हुई एक और ममतामयी रचना बहुत सुंदर......
जवाब देंहटाएंमाँ की याद में डुबी हुई एक और ममतामयी रचना बहुत सुंदर......
जवाब देंहटाएंद्रवित करती पोस्ट.......हैट्स ऑफ इसके लिए।
जवाब देंहटाएंबहुत ही मार्मिक किन्तु सत्य उजागर करती रचना बधाई
जवाब देंहटाएं"तैयार तो मैं भी था,(या शायद नहीं था) लौटने को उस घरोंदे में
जवाब देंहटाएंपर देर तो हो ही गई थी मुझसे"
मार्मिक प्रस्तुति
पंछी जब छोड के जाते हैं घोंसला, लौटने के लिए
जवाब देंहटाएंतो पता होता है उन्हें की खड़ी होगी झुर्रियों से लदी वत्सल काया
सुंदर रचना...
बेहद भावुक एवं सुंदर रचना सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंवाह ! बहुत सुन्दर अहसास।
जवाब देंहटाएंबहुत ही खुबसूरत एहसास ...मर्मस्पर्शी रचना.
जवाब देंहटाएंअरविंद जी ने एक बात लिखी है मैं उस पर अक्सर सोचता हूँ और निष्कर्ष पर पहुँचता हूँ कि कोई कवि अपने सृजन कर्म के केंद्रीय भाव से हट नहीं पाता। माँ का प्रेम संभवतः आपके लिए ऐसा ही है और कविता के इतिहास में एक मिसाल भी।
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएं"तैयार तो मैं भी था,(या शायद नहीं था) लौटने को उस घरोंदे में
पर देर तो हो ही गई थी मुझसे"
आ ह ।
भावना के स्तर से उठ कर व्यवहार और कर्म के स्तर पर देखें तो माँ संतान को जन्म से स्नेह-यत्न से पोस, सबविध संस्कारशील और समर्थ बना कर अशेष आशीष सहित अन्य भूमिकाओं के निर्वाह हेतु जीवन-धारा को सौंप कर ,अपनी अन्य भूमिकाओं की ओर बढ़ती है.इस संबंध की तुष्टि और आनन्द माता एवं संतति दोनो के लिए चिरकालीन संबल बन जाता है.
जवाब देंहटाएंउसे सहज मन से ग्रहण करें!
पंछी जब छोड के जाते हैं घोंसला, लौटने के लिए
जवाब देंहटाएंतो पता होता है उन्हें की खड़ी होगी झुर्रियों से लदी वत्सल काया
असीसों से लदे दो हाथ उठाये, उनके इंतज़ार में
जीवन की सूक्ष्मतर अनुभूतियों का विस्तार है इस पोस्ट में उस ममतामय माँ का चित्र उभरता है .
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति शुक्रवारीय चर्चा मंच पर ।।
जवाब देंहटाएंआप पर माँ की असीम कृपा है। शायद किसी कवि ने इतनी कविताएं नहीं लिखीं होंगी माँ पर!
जवाब देंहटाएंयह तो लाज़वाब है। बहुत बधाई।
सुन्दर
जवाब देंहटाएंमाँ तो हमेशा ही साए की तरह साथ ही रहती है....
जवाब देंहटाएंभावुक करती रचना... हमेशा की तरह...
~सादर!!!
माँ तो हमेशा ही साए की तरह साथ ही रहती है....
जवाब देंहटाएंभावुक करती रचना... हमेशा की तरह...
~सादर!!!
मां अपार
जवाब देंहटाएंबारम्बार
उसका प्यार
ही है संसार.......
बहुत मर्मस्पर्शी रचना...
जवाब देंहटाएंपंछी जब छोड के जाते हैं घोंसला, लौटने के लिए
जवाब देंहटाएंतो पता होता है उन्हें की खड़ी होगी झुर्रियों से लदी वत्सल काया
असीसों से लदे दो हाथ उठाये, उनके इंतज़ार में
...हमेशा की तरह बहुत सुन्दर अहसास...
जब तक हम हैं माँ भी रहेगी हमारे साथ हमेशा - हमेशा...
जवाब देंहटाएंवियोग की पीड़ा से बाहर निकलने का प्रयास कीजिये... शुभकामनायें
KAIYON KE JIVAN KA SACH AAPNE BAKHAN KAR DIYA APNI BHAWNAAON DWARA ....
जवाब देंहटाएंपंछी जब छोड के जाते हैं घोंसला, लौटने के लिए
जवाब देंहटाएंतो पता होता है उन्हें की खड़ी होगी झुर्रियों से लदी वत्सल काया
असीसों से लदे दो हाथ उठाये, उनके इंतज़ार में
तैयार तो मैं भी था, (या शायद नहीं था) लौटने को उस घरोंदे में
पर देर तो हो ही गई थी मुझसे
उस वत्सल काय की जगह, अब तेरी तस्वीर टंगी है माँ
कितना बड़ा दुखांत है ये??
बहुत भावभीनी कविता...सच में दिल भर आया;-((
माँ पर एक महा-काव्य की ओर आपकी लेखनी अग्रसर है
जवाब देंहटाएंयूँ ही लिखते रहिए
anukarneey rchna.
जवाब देंहटाएंmtatrittv ki koyee upma nhi.
anukarneey rchna.
जवाब देंहटाएंmtatrittv ki koyee upma nhi.
anukarneey rchna.
जवाब देंहटाएंmtatrittv ki koyee upma nhi.
जवाब देंहटाएंकितने बिम्ब सजा लो उतार लो उस वत्सल काया को शब्द चित्रों में उतार लो उसे अपने आचरण में उसके स्नेह को। प्रतिदान दो व्यवहार से शब्दों से आगे निकलो। ॐ शान्ति
तैयार तो मैं भी था, (या शायद नहीं था) लौटने को उस घरोंदे में
जवाब देंहटाएंपर देर तो हो ही गई थी मुझसे
उस वत्सल काय की जगह, अब तेरी तस्वीर टंगी है माँ
uf sunder bhav dil ko chhuti kavita
rachana
सुंदर रचना.....
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंमहोदय..
अत्यंत सुंदर रचना..
पंछी जब छोड के जाते हैं घोंसला, लौटने के लिए
जवाब देंहटाएंतो पता होता है उन्हें की खड़ी होगी झुर्रियों से लदी वत्सल काया
असीसों से लदे दो हाथ उठाये, उनके इंतज़ार में
.....atayant bhavpoorn abhivyakti
पंछी जब छोड के जाते हैं घोंसला, लौटने के लिए
जवाब देंहटाएंतो पता होता है उन्हें की खड़ी होगी झुर्रियों से लदी वत्सल काया
असीसों से लदे दो हाथ उठाये, उनके इंतज़ार में
.....atayant bhavpoorn abhivyakti
माँ जैसा कोई नही,
जवाब देंहटाएंमाँ असीम हैं ,अनंत हैं ,जीवन दायनी हैं |
आपकी रचना मन छू गयी ...
माँ की याद उनकी तस्वीर दिलाती ही है साथ ही अपने आस- पास होने का अहसास भी दिलाती रहती है.
जवाब देंहटाएंमन को छू जाते हैं कविता के भाव..माँ को समर्पित अनूठा काव्य संग्रह बना रही हैं है ये सभी कविताएँ.
पंछी जब छोड के जाते हैं घोंसला, लौटने के लिए
जवाब देंहटाएंतो पता होता है उन्हें की खड़ी होगी झुर्रियों से लदी वत्सल काया
असीसों से लदे दो हाथ उठाये, उनके इंतज़ार में
तैयार तो मैं भी था, (या शायद नहीं था) लौटने को उस घरोंदे में
पर देर तो हो ही गई थी मुझसे
उस वत्सल काय की जगह, अब तेरी तस्वीर टंगी है माँ
मार्मिक !!!!
आज 29/07/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक है http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
खुबसूरत अभिवयक्ति......
जवाब देंहटाएंshe's always there.. :)
जवाब देंहटाएंawesome expressions..
heart wrenching concluding lines..
माँ जो चिराग जल जाती है वो अमर ज्योति की तरह जिंदगी भर जलती रहती है
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण , बहुत ही सुन्दर
सादर!
पंछी जब छोड के जाते हैं घोंसला, लौटने के लिए
जवाब देंहटाएंतो पता होता है उन्हें की खड़ी होगी झुर्रियों से लदी वत्सल काया
असीसों से लदे दो हाथ उठाये, उनके इंतज़ार में
तैयार तो मैं भी था, (या शायद नहीं था) लौटने को उस घरोंदे में
पर देर तो हो ही गई थी मुझसे
उस वत्सल काय की जगह, अब तेरी तस्वीर टंगी है माँ
मार्मिक !!!
पंछी जब छोड के जाते हैं घोंसला, लौटने के लिए
जवाब देंहटाएंतो पता होता है उन्हें की खड़ी होगी झुर्रियों से लदी वत्सल काया
असीसों से लदे दो हाथ उठाये, उनके इंतज़ार में
वाह ! बहुत मार्मिकता पिरोई है आपने अपनी इस रचना मे। लाजवाब
sarthak kavita,Maa yesi hi hoti hai,jindgi ke har pahlu me to wo hai.....har kadmon ke sath unka wish hai..
जवाब देंहटाएंभावभरी!
जवाब देंहटाएंसशक्त अभिव्यक्ति ...!!
जवाब देंहटाएंऐसी देरी सालती है. सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंमाँ के प्रति भावमयी रचना ..
जवाब देंहटाएंबधाई !
http://www.youtube.com/watch?v=pCuvuVKDwCM
जवाब देंहटाएंom shanti
जवाब देंहटाएंतैयार तो मैं भी था, (या शायद नहीं था) लौटने को उस घरोंदे में
जवाब देंहटाएंपर देर तो हो ही गई थी मुझसे
उस वत्सल काय की जगह, अब तेरी तस्वीर टंगी है माँ
बहुत उम्दा
माँ की यादों में बहती सुन्दर भावभीनी अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंLAAJWAAB KAVITA . BHAVABHIVYAKTI HO
जवाब देंहटाएंTO AESEE HO . SHUBH KAMNAAYEN .
Bahut hi sashakt abhivyakti, sachmuch maa se upar kuchh bhi nahin.
जवाब देंहटाएंह्रदय को छूते शब्द. शब्दहीन हूँ फिर से.
जवाब देंहटाएंदिल को कचोटती है कविता. माँ तस्वीर सी हो कर भी तस्वीर नहीं होती.
जवाब देंहटाएं