गुस्सा तो है पर तू निष्ठुर
नहीं ...
अक्सर ऐसा तुम कहा करती थीं
माँ
पर पता नहीं कैसे एक ही दिन
में इतना बदलाव आ गया
तुम भी चलीं गयीं
और मैंने भी जाने दिया
कर दिया अग्नी के हवाले उस
शरीर को
जिसका कभी मैं हिस्सा था
याद भी न आई वो थपकी
जिसके बिना करवटें बदलता था
वो गोदी, जहाँ घंटों चैन की
नीद लेता था
उस दिन सबके बीच
(जब सब कह रहे थे ये
तुम्हारी अंतिम यात्रा की तैयारी है)
कुछ पल भी तुम्हें रोके ना
रख सका
ज़माने के रस्मों रिवाज़ जो
निभाने थे
कहा तो था सबने पर सच बताना
क्या वो सच में तुम्हारी
अंतिम यात्रा थी ...?
पता है ... उस भीड़ में, मैं
भी शामिल था ...
एक दिन जाना सब को है,अच्छी रचना।
जवाब देंहटाएंक्या वो सच में तुम्हारी अंतिम यात्रा थी ...?
जवाब देंहटाएं***
शायद नहीं, क्यूंकि पुत्र के साथ आज भी भाव रूप में यात्रारत ही तो हैं वे...!
पार्थिव देह की अंतिम यात्रा हो सकती है पर जो मन में बसी है उसको कोई नही छीन सकता.
जवाब देंहटाएंरामराम.
कहते है एक औरत का जीवन माँ बन जाने के बाद ही पूर्ण होता है और यही सच भी है शायद इसलिए एक माँ की यात्रा कभी ख़त्म नहीं होती वह अपने बच्चों के साथ उनके जीवन सफर पर चाहे साथ-साथ चले या अनदेखा साया बनकर मगर माँ साथ रहती है हर पल।
जवाब देंहटाएंतुम को खो दिया तो जाना ....
जवाब देंहटाएंमिट गई जो देह थी वो ....
छब अभी भी मन मे मेरे ...
आत्मा है माँ तुम्हारी साथ मेरे ...
ये मेरी माँ पर लिखी कविता की चार पंक्तियाँ हैं दिगंबर जी ....माँ की आत्मा सदा बच्चों के कल्याण हित ही सोचती है ...बच्चे भले ही भुला दें ....
आप मेरी भावनाओं को शब्द देते हैं
जवाब देंहटाएंशुक्रिया और आभार छोटा लगने लगता है
वें माँ सौभाग्यशाली हैं जिनकी अंतिम यात्रा उनके बेटे के कंधो पर होती है ,बहुत ही सार्थक रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत ही भावपूर्ण अभिव्यक्ति नासवा साहब !
जवाब देंहटाएंबहुत हीभावपूर्ण और माँ के जुदाई वेदना से भरी हुई रचना !!
जवाब देंहटाएंक्या वो सच में तुम्हारी अंतिम यात्रा थी ...?
जवाब देंहटाएंवें माँ सौभाग्यशाली हैं जिनकी अंतिम यात्रा उनके बेटे के कंधो पर होती है ,बहुत ही सार्थक रचना नासवा जी
क्या वो सच में तुम्हारी अंतिम यात्रा थी ...?
जवाब देंहटाएंवें माँ सौभाग्यशाली हैं जिनकी अंतिम यात्रा उनके बेटे के कंधो पर होती है ,बहुत ही सार्थक रचना नासवा जी
बहुत हीभावपूर्ण ....बहुत ही सार्थक रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत हीभावपूर्ण ....बहुत ही सार्थक रचना।
जवाब देंहटाएंप्रभावी प्रस्तुति,आभार आदरणीय दिगम्बर नासवा जी।
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंआपकी और भी कवितायें पढ़ी हैं मैंने...
सारी "माँ" के लिए ही लिखी हैं...
जान के अच्छा लगा...
भाव विभोर कर गई रचना।
जवाब देंहटाएंदिगम्बर जी... ......... :(((((
जवाब देंहटाएंबहुत ही भावपूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंदूर हो कर भी वह इतने पास है कि उसके ना होने पर यकीन नहीं होता..बहुत भावपूर्ण रचना.
जवाब देंहटाएंमाँ एक सतत प्रेममयी प्रक्रिया है. इसकी कोई अंतिम यात्रा नहीं होती. ममत्व से जुड़ी रचना है.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भावपूर्ण रचना,,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST : जिन्दगी.
ये सब ज़माने के रस्मों रिवाज़ हैं, माँ कहीं नहीं जा सकती वो हमेशा हमारे साथ है और रहेगी….
जवाब देंहटाएंअपने कर्तव्य पूरे कर, वृद्ध शिथिल होते तन में कितना रहतीं माँ? सबको आशीष दे कर तुष्ट, निश्चिन्त मन ले अगली यात्रा पर गईँ -वे शान्ति से रहें!
जवाब देंहटाएंयही नियति है कि कोई ह्रदय के कितना ही करीब हो पर जाना तो है एक दिन ...मर्मस्पर्शी रचना!
जवाब देंहटाएंनमस्कार आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल बुधवार (14 -08-2013) के चर्चा मंच -1337 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ
जवाब देंहटाएंनहीं माँ तो हमारी शिराओं में हमारे संस्कारों में अनवरत यात्रा कर रही है और आने वाली पीढ़ियों में भी यह शाश्वत यात्रा चलती रहेगी
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण ....मर्मस्पर्शी....
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण रचना !!
जवाब देंहटाएंजो बच्चे महरूम हों माँ के साए से
हर आँचल में ममता ढूँढा करते हैं
भावपूर्ण रचना नासवा जी,
जवाब देंहटाएंबहुत मार्मिक लगी !
तन की अंतिम यात्रा थी माँ तो आपके मन में है ।
जवाब देंहटाएंsir
जवाब देंहटाएंaapki rachna man ke antah-sthal ko chhoo gai. maa ki yaadon ke sahare hi to ham jivan paryant aage badhte rahte hain.
maa ka saaya hamesha bachchon ke saath rahta hai----
poonam
दिल को छु जाने वाली रचना है .बहुत सुन्दर शब्द दिए आपने इस को ..
जवाब देंहटाएंवाह बहुत बढ़िया । गहन, सुन्दर , शानदार |
जवाब देंहटाएंमार्मिक रचना
जवाब देंहटाएंएक माँ कहीं नहीं जाती है .. शरीर जाता है ...रूह सदा साथ रहती है
जवाब देंहटाएंतुम न सोचो क्यों है ये तनहाइयाँ
हर पल साथ होंगी मेरी परछाइयाँ
मार्मिक
जवाब देंहटाएंspeechless !!
जवाब देंहटाएंवाह किया बात है , बहुत खूब,
जवाब देंहटाएंमाँ के लिए मदर्स डे पर लिखा था इसे...
जवाब देंहटाएंमाँ सा प्यारा कोई नहीं
वृद्ध हो तो क्या हुआ
तुम अभी भी नही हो बेकार
अनुभवों का हो खज़ाना
जीवन के इस मोड़ पर भी
तुम्हें हमें है सजाना|
जीवन रथ
मंजिल पर आकर
ठहर चुकाहै|
सिर्फ़ प्रस्थान शेष है|
जाना न माँ
इतनी जल्दी भी क्या है|
दुखदायी स्मृति..
जवाब देंहटाएंये आत्मा पहले भी थी बाद में भी रहेगी। नया चोला लिए नए सम्बन्धों में। जो स्नेह के साथ है वह कहीं नहीं जाता है।
जवाब देंहटाएंआपकी प्रेरणादाई माँ को नमन
जवाब देंहटाएंबहुत मार्मिक भावपूर्ण रचना,,,,
जवाब देंहटाएंह्रदय को हिलोर देते है आपके शब्द. दूर होकर भी माँ दूर कहाँ हो पाती है.
जवाब देंहटाएंगहरे कहीं एक अंतर्नाद होता है...जब जब आपको पढ़ती हूँ,,, माँ हर वक्त आपके साथ हैं ...और आपके साथ साथ हम सब भी उन्हें जान रहे हैं पल-पल ,प्रतिपल ..हर शब्दों द्वारा आपके...
जवाब देंहटाएंमाँ को नमन...
प्यारी मां न्यारी मां
जवाब देंहटाएंसशरीर न सही स्मृतियों में सदैव रहेंगी। निश्चय ही उस अन्तिम यात्रा में भीड़ के बीच होते हुए भी असहाय थे आप। क्यूंकि जो नहीं होना चाहिए वो दुख घटा था उस दिन।
भावपूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया.. स्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें...
जवाब देंहटाएंअंतर्मन को बेधती आपकी रचनाएँ हमेशा प्रभावशाली होती हैं - आजादी के पर्व पर हार्दिक बधाई
जवाब देंहटाएंमाँ की यादें और उससे जुडी भावनाएं ये कभी अंतिम यात्रा होती है?
जवाब देंहटाएंकहा तो था सबने पर सच बताना
जवाब देंहटाएंक्या वो सच में तुम्हारी अंतिम यात्रा थी ...?
पता है ... उस भीड़ में, मैं भी शामिल था ...
.....................................
व्यक्ति पैदा होते ही मरना शुरू कर देता है फिर भी ये राग ये अनुराग भूले नहीं भूलता। माँ पहले भी थी बाद में भी रहेगी सिर्फ हमारे साथ उसके सम्बन्ध का स्वरूप ही तो बदलेगा। माँ की आत्मा जहां रहेगी प्रसन्न बदन रहेगी ऐसे ही पालना देगी सपूतों को।
जवाब देंहटाएंमाँ कभी नहीं जातीं। वे सदा आपके साथ हैं।
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें!
सच में माँ से अलग होना कौन चाहता है
जवाब देंहटाएंबहुत ही मार्मिक
सादर!
हर बार की तरह ... माँ से जुड़े ये अहसास
जवाब देंहटाएंभावनाओं का सिंचन करती यादें
मन को छूते शब्द
...
सच में ’माँ’ शरीर कब होती है! ’माँ’ तो वह उष्मा,ऊर्जा, शक्ति है, जो जीवन को संचालित करती है। मूर्त,सूक्ष्म या स्थूल रूप में!माँ, तुझे सलाम!
जवाब देंहटाएंकर दिया अग्नी के हवाले उस शरीर को
जवाब देंहटाएंजिसका कभी मैं हिस्सा था....
बहुत खूब नासवा साहब,माँ के प्रति प्रेम और उसके विछोह की पीड़ा को प्रतिविम्बित करते मार्मिक शब्द....साधुवाद........
शुक्रिया !इस भाव वाचक रचना को सांझा करने एवं आपकी टिपण्णी का।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भावपूर्ण रचना,,,,
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भावपूर्ण रचना,,,,
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण व संवेदनायुक्त रचना....
जवाब देंहटाएंशुक्रिया टिपण्णी का। श्रृद्धा सुमन उस माँ के प्रति जो सबकी यकसां होती है।
जवाब देंहटाएंबहुत ही मार्मिक रचना लगी.……. माँ जैसा स्नेह देने वाला इस पृथ्वी पर दूसरा कोई प्राणी हो ही नहीं सकता। . माँ के प्रति सच्चे उदगार को प्रदर्शित करती यह रचना रोंगटे खड़ी कर देती है। … बिलकुल चिरकाल तक के लिए संग्रहनीय रचना लिखी है आपने ……. माँ के लिए ह्रदय से सच्ची श्रधांजलि मेरी और से भी।
जवाब देंहटाएंमार्मिक, सुंदर रचना...
जवाब देंहटाएंसदैव की तरह माँ की स्मृति को समर्पित एक उत्कृष्ट अभिव्यक्ति...बहुत मर्मस्पर्शी..
जवाब देंहटाएंमां पर एक स्नेही पुत्र कितना ही लिखे कम है ..
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंभाव पूर्ण, मार्मिक रचना,माँ को मेरी विन्रम श्रधांजलि
जवाब देंहटाएंभाव पूर्ण, मार्मिक रचना,माँ को मेरी विन्रम श्रधांजलि
जवाब देंहटाएंभाव पूर्ण, मार्मिक रचना,माँ को मेरी विन्रम श्रधांजलि
जवाब देंहटाएंwah.........bethareen..
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