बुढापे में भी बच्चा हूं
मुझे ऐसे निहारेगी
कभी लल्ला, कभी राजा मुझे
अम्मा पुकारेगी
मेरी माँ पे असर होता नहीं
है बात का कोई
में घर लौटूं नज़र हर हाल
में मेरी उतारेगी
समझती है अभी भी पांचवीं
में पढ़ रहा हूं मैं
नहा करके जो निकलूँ बाल वो
मेरे संवारेगी
कभी परदेस से लौटूं नहीं घर
देर हो जाए
परेशानी में अम्मा रात
आँखों में गुजारेगी
जहां तुलसी लगाई पेड़ पीपल
का लगाया था
अभी भी अपने हाथों से उस
आँगन को बुहारेगी
उदासी का सबब खामोश रह के
जान लेगी फिर
छुपा के अपने आँचल में वो
होले से दुलारेगी
बुढापे में भी बच्चा हूं मुझे ऐसे निहारेगी
जवाब देंहटाएंकभी लल्ला, कभी राजा मुझे अम्मा पुकारेगी
माँ की नजर में उसकी संतान हमेशा बच्चा ही बनी रहती है सुन्दर रचना नासवा जी,
बहुत सुन्दर रचना .........माँ की यादें हमेशा होती हैं साथ.........
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर . माँ की नजर में संतान में बालपन का ही अक्स दिखता है .
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंनि:शब्द करती रचना !!!
जवाब देंहटाएंहर एक लाइन अपने आप में बेमिसाल.... माँ को परिभाषित करते हुए ....
मेरी माँ पे असर होता नहीं है बात का कोई
जवाब देंहटाएंमें घर लौटूं नज़र हर हाल में मेरी उतारेगी
सचमुच :).
बहुत प्यारी रचना.
माता की सादगी ही यही है कि वह बच्चे को ताउम्र बच्चा ही समझती है. इसे ही ममत्व कहा गया है. ऐसे पलों को बहुत सुंदर तरीके से आपने कविता में ब्यान किया है.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंआज की चर्चा : ज़िन्दगी एक संघर्ष -- हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल चर्चा : अंक-005
हिंदी दुनिया -- शुभारंभ
मां ने फिर याद किया है दिगम्बर को
जवाब देंहटाएंदिगम्बर फिर से बना है प्यारा बेटा
सुभानाल्लाह दिल को छू लेने वाली इस पोस्ट के लिए हैट्स ऑफ आपको |
जवाब देंहटाएंhridaysparshi sunder rachna .
जवाब देंहटाएंI had a smile throughout..
जवाब देंहटाएंsaari mummy aise hi hoti hai :)
नमस्कार आपकी यह रचना कल मंगलवार (17-09-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
जवाब देंहटाएंकभी परदेस से लौटूं नहीं घर देर हो जाए
परेशानी में अम्मा रात आँखों में गुजारेगी
माँ की नजर में उसकी संतान हमेशा बच्चा ही बनी रहती है सुन्दर रचना नासवा जी,सुभानाल्लाह,बहुत सुन्दर प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंअनमोल / बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति..
सुंदर तरीके से आपने कविता में ब्यान किया है.
हमेशा की तरह यह भी भावभरी मार्मिक रचना है । आपकी यादों को सहस्रों प्रणाम ..।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर और मार्मिक रचना.
जवाब देंहटाएंरामराम.
जवाब देंहटाएंमेरी माँ पे असर होता नहीं है बात का कोई
में घर लौटूं नज़र हर हाल में मेरी उतारेगी ,,,
बहुत ही सुंदर दिल को छूती भावपूर्ण गजल !
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मेरा बेटा भी यही सोचता होगा
जवाब देंहटाएंढ़ेरों आशीर्वाद आपको
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार १७/९/१३ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका वहां स्वागत है।
जवाब देंहटाएंहोले से वो दुलार हमें भी सहला गया..आह!
जवाब देंहटाएंआपकी हर ग़ज़ल दिल पर दस्तक देती है अपने बारे में सोचने लगती हूँ की मेरे बच्चे भी क्या ऐसा ही सोचते होंगे बहुत अच्छा लिखते हैं आप दिल से बधाई
जवाब देंहटाएंman men upje bhavo ko utrishtataa se ukera hai aapne.
जवाब देंहटाएंati uttam ghazal .
माँ के मन के भाव बहुत खूबसूरती से लिखे हैं ...
जवाब देंहटाएंमाँ बस माँ है ……। बिलकुल ऐसा ही भाव है बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंअद्वितीय रचना. सच्चे एहसास से भींगे हुए शब्द ऐसे ही यादगार रचनाएँ दे जाते हैं. बहुत अच्छा लगा पढ़कर.
जवाब देंहटाएंवाह, बहुत अच्छे, महज शाब्दिक और व्यक्तिगत सरोकारों तक महदूद न रहते हुये इस ग़ज़ल में आप ने परिवेश, संवेदना और इंसानी समाज की आवश्यकताओं को भी शब्दांकित किया है, बहुत खूब
जवाब देंहटाएंdil ko choo jane vali rachna ....dil se likha jaye to aisi hi rachna rachi jati hai .aabhar
जवाब देंहटाएंमाँ का हर शब्द लोरी है, दुलार है।
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंमाँ के मन में उठते भावों को बड़ी सुनदरता से चित्रण किया है
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लाजवाब ! बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंसमझती है अभी भी पांचवीं में पढ़ रहा हूं मैं
नहा करके जो निकलूँ बाल वो मेरे संवारेगी ...
मान को समर्पित एक भावपूर्ण ग़ज़ल ... बहुत सुन्दर!
जवाब देंहटाएंबहुत कोमल भावो का सफल चित्रण..माँ की इस ममता को नमन !
जवाब देंहटाएंबहुत ही प्यारी रचना...
जवाब देंहटाएंहृदयस्पर्शी...
:-)
बहुत ही सुंदर और मार्मिक रचना ,माँ की इस ममता को नमन।
जवाब देंहटाएंमेरी माँ पे असर होता नहीं है बात का कोई
जवाब देंहटाएंमें घर लौटूं नज़र हर हाल में मेरी उतारेगी
बेशक संतान बूढी हो जाये माँ की नजरों में तो वह बच्चा ही रहेगी.अबोध बच्चा, सुन्दर भाव्योक्ति
माँ की महता को दर्शाती बहुत ही सुन्दर प्रस्तुती ,हम बूढ़े भी हों जाये पर माँ के लिए एक बच्चा हीं होते है,धन्य है आपकी लेखनी।
जवाब देंहटाएंयह कविता पढ़कर सालों पहले पढ़ी अशोक वाजपेयी की एक कविता याद आ गई जो उन्होंने अपनी स्वर्गीय माँ की स्मृति में लिखी थी कुछ बोल शायद ऐसे थे... अनंत में जहाँ कहीं तुम हो, वहीं अपनी ढीली पेंठ को संभालता मैं.. ऐसे ही कुछ बोल थे शायद अब कुछ भी याद नहीं... अच्छी कविता पढ़ने पर पुरानी बहुत सी सुंदर स्मृतियाँ उभर आती हैं।
जवाब देंहटाएंबढ़िया रचना
जवाब देंहटाएंdownloading sites के प्रीमियम अकाउंट के यूजर नाम और पासवर्ड
behtareen ghazal. undoubtedly you have blessing of mother.
जवाब देंहटाएंउम्दा प्रस्तुति .
जवाब देंहटाएंपापा मेरी भी शादी करवा दो ना
समझती है अभी भी पांचवीं में पढ़ रहा हूं मैं
जवाब देंहटाएंनहा करके जो निकलूँ बाल वो मेरे संवारेगी ।
मां के लिए पुत्र सदैव 'मेरे लाल' ही होता है ।
मां और पुत्र के स्नेह का प्यारा चित्रण
जवाब देंहटाएंमाँ का स्नेह इसीलिए अद्वितीय होता है क्योंकि माँ के लिए उसका बछा हमेशा बछा ही रहता है .. सुन्दर रचना ..
जवाब देंहटाएंमाँ के लिए तो बच्चे हमेशा बच्चे ही रहते है बस बच्चे ही बड़े हो जाते हैं।
जवाब देंहटाएंमाँ तो बस माँ है उसके बराबर इस दुनिया में कोई कहाँ.
जवाब देंहटाएंbahut sacchi sundar rachna
जवाब देंहटाएंउदासी का सबब खामोश रह के जान लेगी फिर
जवाब देंहटाएंछुपा के अपने आँचल में वो होले से दुलारेगी
....बिल्कुल सच...माँ सचमुच ऐसे ही होती है...
bahut sundar aur sahi abhivyakti. kaas sabhi logo ke maname ese vichar ho. to vo shayad apani maa ki kisi bhi baat ka bura na mane. aur hakikat bhi yahi hai ki maa jo bhi kahati hai apani santan ki bhalai ke liye hi kahati hai apani samajh me bhale samay ke sath usaki samajh se bhala na ho raha ho. atah hame maa ki koi bhi baat kabhi buri to lagana hi nahi chahiye kyonki usake liye ham hamesha hi chhote rahate hai.
जवाब देंहटाएंउदासी का सबब खामोश रह के जान लेगी फिर
जवाब देंहटाएंछुपा के अपने आँचल में वो होले से दुलारेगी
बहुत सुन्दर प्रस्तुति माँ की स्नेहिल छाया आवाहन करती।
बढ़ो तुम हौसले से तुम कभी हिम्मत न हारोगे ,
हमारी शख्शियत औ साख को अम्मा निखारेगी।
अद्भुत ...पढ़कर निशब्द हूँ.....
जवाब देंहटाएंमाँ पर कविताओं का रिकार्ड बनाना है क्या ....?
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर नासवा साहब, माँ के प्रति आपका अनुराग अद्वितीय एवं अतुलनीय है....एक सुन्दर रचना के लिए बधाई......
जवाब देंहटाएंमैं भी हरकीरत जी की बात से सहमत हूँ ...बेशक कविता बहुत अच्छी है ...माँ से बढ़ कर आज तक ना कोई हुआ है और ना होगा
जवाब देंहटाएंफिर भी अब लेखनी का रुख बदलिए ...सादर
प्यारी मां पर प्यारी रचना । मां के लिये बेटा हमेशा बच्चा ही रहता है— बस हम अपने आप को बडा समझते रहते है।
जवाब देंहटाएंउदासी का सबब खामोश रह के जान लेगी फिर
जवाब देंहटाएंछुपा के अपने आँचल में वो होले से दुलारेगी
yakinn
aesi maa hi hoti hai ,tabhi aadarniye hai .bahut bahut badhiyaan .aap ki tippani bhi utni hi shaandar hoti hai .shukriyaan.
उनको गए बहुत दिन हो गए यार ..
जवाब देंहटाएंजितना याद करोगे वे अधिक याद आएँगी !!
kya likhun samajh nahi aata bs dil bhar aaya ...mere mn ki bat kah di ...
जवाब देंहटाएंमाँ होती ही ऐसी है. सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंमेरी माँ पे असर होता नहीं है बात का कोई
जवाब देंहटाएंमें घर लौटूं नज़र हर हाल में मेरी उतारेगी ,,,
..... सुंदर दिल को छूती गजल !
माँ शब्द ही बहुत ताकतवर है -कभी शीतल कर देता है ,कभी हौसला देता है ...
जवाब देंहटाएंमाँ तुझे प्रणाम ......
आपकी गज़ल दिल को छू गयी
man to man hoti hai uske liya beta hamesa bachha rahata hai. par mamta aapne bhut hi achha varnan kiya hai
जवाब देंहटाएंमाँ...ही असल में इश्वर का रूप है
जवाब देंहटाएंमाँ के प्रति श्रद्धा और सम्मान में समर्पित आपकी रचनाओं के बारे मैं जितना कहा जाय उतना ही कम होगा
जवाब देंहटाएंमाँ की नज़र में उसका बच्चा सदैव बच्चा ही रहता है. बहुत भावपूर्ण रचना, शुभकामनाएँ.
जवाब देंहटाएंभावमय करते शब्द एवं अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंमेरी माँ पे असर होता नहीं है बात का कोई
जवाब देंहटाएंमें घर लौटूं नज़र हर हाल में मेरी उतारेगी
बुढापे में भी बच्चा हूं मुझे ऐसे निहारेगी
कभी लल्ला, कभी राजा मुझे अम्मा पुकारेगी
बहुत सुन्दर ....दिल से निकले भाव माँ तो होती ही अनमोल है पर बच्चों को भी माँ की बातें उतनी ही शिद्दत से महसूस हों यह भी बड़ी बात है
बधाई ब्लॉगर मित्र ..सर्वश्रेष्ठ ब्लॉगों की सूची में आपका ब्लॉग भी शामिल है |
जवाब देंहटाएंhttp://www.indiantopblogs.com/p/hindi-blog-directory.html
माँ को समर्पित रक बेहतरीन गज़ल।
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