तू साथ खड़ी
मुस्कुरा रही थी
तेरा अस्थि-कलश जब
घर न रख के
मंदिर रखवाया
गया
यकीन जानना
वो तुझे घर से
बाहर करने की साजिश नहीं थी
बरसों पुराने इस घर से
जहाँ की हर शै में तू ही तू
है
तुझे दूर भी कैसे कर सकता
था कोई
देख ...
मुस्कुरा तो तू अब
भी रही है
देख रही है अपनी चीज़ों
को झपट लेने का खेल
तुझसे बेहतर ये
कौन समझ सकता है
ये तेरे वजूद को
मिटा देने की योजना नही
सब जानते हैं अपने होते हुए
कमी रहने ही नहीं दी तूने किसी
भी चीज़ की
ये तो तेरे एहसास
को समेट लेने की एक कोशिश है
तुझसे जुड़े रहने
का एक बहाना
तभी तो तेरी संजीवनी
को सब रखना चाहते है अपने करीब
ताकि तू रह सके
... हमेशा उनके पास, उनके साथ ...
माँ सदा आस पास ही रहती..... उसका अस्तित्व सदैव हमारे जीवन में रचा बसा रहता है
जवाब देंहटाएंनमन इन कोशिशों की गरिमा को!
जवाब देंहटाएंहर बार एक भाव-घाटी अपने में समेट लेती है... आपको पढ़ते हुए..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर.. माँ तो हमेशा हमारे वजूद में शामिल होती है, हमारी हर आदत में, हमारे पुरे अस्तित्व में ...............
जवाब देंहटाएंमाँ के प्यार से सराबोर भावपूर्ण रचना !!
जवाब देंहटाएंमाँ तो हमारे रूह में बसी होती हैं कोई उनसे भला कैसे दूर जा सकता है .....
किस लाइन को कॉपी करके पेस्ट करुं और तब अपनी प्रतिक्रिया दूं, ये समझ नहीं आया। क्यूंकि हरेक पंक्त्िा अपने आप में पढ़नेवालों की आंखें खोलने का कार्य कर रही है। आपकी कविता के वे अहसास जो लिखने से पहले आप ही तक थे और कितने अच्छे रुप में बाहर आ सकें इस हेतु व्यग्र थे, वे इतने समानान्तर अनुभव लिए होते हैं कि इन्हें पढ़ कर शून्यविलीन हो जाना पड़ता है और शून्यता से वापसी होते ही ये प्रेरणास्तम्भ की मानिंद सम्मुख खड़े होते हैं।
जवाब देंहटाएं"माँ " को लेकर एक और उत्कृष्ट रचना.... बहुत सुन्दर |
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया सर!
जवाब देंहटाएंसादर
माँ तो सिर्फ माँ होती है,कोई भी कभी भी उनसे दूर
जवाब देंहटाएंनहीं होंना चाहता है..
उत्तम-
जवाब देंहटाएंबधाई स्वीकारें आदरणीय-
गणेश चतुर्थी की शुभकामनायें-
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. हिंदी लेखक मंच पर आप को सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपके लिए यह हिंदी लेखक मंच तैयार है। हम आपका सह्य दिल से स्वागत करते है। कृपया आप भी पधारें, आपका योगदान हमारे लिए "अमोल" होगा |
जवाब देंहटाएंमैं रह गया अकेला ..... - हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल - अंकः003
मां हम सब के दिलों में हैं...
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट रचना।
जवाब देंहटाएंमाँ सदा आस पास ही रहती है,उत्कृष्ट रचना.
जवाब देंहटाएंअच्छी प्रगतिवादी शैली जिस में छांदस समावेश भी है!
जवाब देंहटाएंहर बार की तरह दिव्य.....माँ के रूह की तरह
जवाब देंहटाएंमाँ हमारी यादों में बस्ती है ,,माँ की तरह यादें भी हमेशा साथ रहती हैं ....
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंमाँ हमेशा साथ रहती है चाहे वह अदृश्य हों
latest post: यादें
...समेटना संभव नहीं …… सुन्दर भावुक ....
जवाब देंहटाएंवो कब दूर होती है हमसे.
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंअस्थि मज़ा सब है तेरी …….
तू माँ है मेरी। ....
तुझसे जुडे रहने का एक बहाना.........।
जवाब देंहटाएंये तो तेरे एहसास को समेट लेने की एक कोशिश है
जवाब देंहटाएंतुझसे जुड़े रहने का एक बहाना
माँ से जुडी सभी रचनाएं हार्दिक प्रेम का संकेत दे रही हैं ....शुद्ध भावनात्मक रचनाएं
सुबह सुबह पलकों को नम कर दिया यार
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंमुझे याद है ,थपकी देकर,
माँ कुछ याद दिलाती थी !
सिर्फ गुनगुनाहट सुनकर
ही, आँख बंद हो जाती थी !
आज वह लोरी ,उनके स्वर में,कैसे गायें ,मेरे गीत
कहाँ से लाऊं,उस बंधन को,माँ की याद दिलाते गीत
माँ हो या पिता वे चाह कर भी सन्तान से विलग नही हो सकते अंश कभी अंशी से दूर हुआ है क्या..
जवाब देंहटाएंइस रंग बदलती दुनिया में, इंसान की कीमत कोई नहीं। संवेदनशील रचना है।
जवाब देंहटाएंमाँ को समेट लेने की एक कोशिश .... भावपूर्ण अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंतू साथ खड़ी मुस्कुरा रही थी
जवाब देंहटाएंतेरा अस्थि-कलश जब घर न रख के
मंदिर रखवाया गया...
माँ तो हमारे हर धड़कन में होती है ...
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंमाँ तो रग-रग में बह रही है,, उसे दूर कहाँ किया जा सकता...शरीर तो बस क्षणभंगुर है पर रिश्ते गुंथे रहते हैं सांसों में..
जवाब देंहटाएंमाँ के लिए एक और अद्वितीय रचना के लिए बहुत बहुत बधाई आपको !
...समेटना संभव नहीं …… सुन्दर भावुक ....
जवाब देंहटाएंमाँ कहाँ कभी छोड़कर जा पाती है?
जवाब देंहटाएंमाँ साथ ना होकर भी ...हमेशा ही साथ है ..आपकी यादों में ...आपकी लेखनी में
जवाब देंहटाएंमां का अस्तित्व कभी नही जुदा होता, बहुत ही हृदय स्पर्शी रचना.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंतभी तो तेरी संजीवनी को सब रखना चाहते है अपने करीब
जवाब देंहटाएंताकि तू रह सके ... हमेशा उनके पास, उनके साथ ...
मां का सच
मार्मिक,भावुक, आंखे नम हो गयीं
अदभुत रचना
साधुवाद
सादर
ज्योति
इतना डूब जाता हूँ आपकी पंक्तियाँ पढ़कर कि मन ठहर जाता है, हाथ रुक जाता है. कुछ लिख नहीं पाता हूँ.
जवाब देंहटाएंमाँ से जुड़े रहने का अहसास.माँ की यादें कभी जुदा नहीं होतीं.
जवाब देंहटाएंस्वार्थ कुछ भी क्यों न हो, माँ को सहेजने की हर कोशिश की जाती है. ऐसे लम्हों को आपने कविता में भर दिया है.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट "हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच}" में शामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल {बृहस्पतिवार} 12/09/2013 को क्या बतलाऊँ अपना परिचय - हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल - अंकः004 पर लिंक की गयी है ,
जवाब देंहटाएंताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें. कृपया आप भी पधारें, सादर ....राजीव कुमार झा
तभी तो तेरी संजीवनी को सब रखना चाहते है अपने करीब
जवाब देंहटाएंताकि तू रह सके ... हमेशा उनके पास, उनके साथ ...
भावनाओं की गंगा में
माँ अक्षर-अक्षर
लहरों सी
हर पल आभास लिये अपना
दूर नहीं जा पाती है
sundar ehsaas ma ki smritiyon ke
जवाब देंहटाएंसंवेदनशील रचना, माँ की यादें कभी जुदा नहीं होतीं।
जवाब देंहटाएंसंवेदनाएँ भी अजीब होती हैं आज एक ऐसी माँ से मिला जिसकी बहु ने उसे पुत्र के गुजरने के दसवें दिन ही निकाल दिया। पुत्र की कलश यात्रा के साथ माँ की भी घर से विदाई हो गई। बेहद बुजुर्ग हो चुकी वो महिला इतना ऊँचा सुनती थीं कि दूसरों से मिली सलाह भी नहीं सुन पा रही थी।
जवाब देंहटाएंओह / जिस रचना को बार-2 पढ़ने को जी चाहे !
जवाब देंहटाएंsr comments ka satting direct kar dijiyena plllllllllllllllz
आपकी भावनाओं को समझ सकती हूँ
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना है !
सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंsahaj bhav ,sundar sarthak hridaysparshi rachana .
जवाब देंहटाएंमाँ की छुअन को महसूसते रहने की एक और सफल कोशिश
जवाब देंहटाएंसुन्दर उदगार
जवाब देंहटाएंमन को छूती सदैव की तरह उत्कृष्ट भावाभिव्यक्ति....
जवाब देंहटाएंadbhut ,shukriyaan bahut bahut is khoobsurat rachna ko padhwane ke liye aur sundar tippani ke liye .
जवाब देंहटाएंadbhut ,shukriyaan bahut bahut is khoobsurat rachna ko padhwane ke liye aur sundar tippani ke liye .
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा - रविवार - 15/09/2013 को
जवाब देंहटाएंभारत की पहचान है हिंदी - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः18 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें, सादर .... Darshan jangra
मुबारक हिंदी दिवस
पहर वसन अंगरेजिया ,हिंदी करे विलाप ,
अब अंग्रेजी सिमरनी जपिए प्रभुजी आप।
पहर वसन अंगरेजिया उछले हिंदी गात ,
नांच बलिए नांच ,देदे सबकू मात।
अब अंग्रेजी हो गया हिंदी का सब गात ,
अपनी हद कू भूलता देखो मानुस जात।
माँ की याद को सहेजना उनका हमेशा साथ होना सा लगता है..भावपूर्ण..
जवाब देंहटाएंशुक्रिया आपकी स्नेह पूर्ण टिप्पणियों का। आप लोगों के लिए ही लिखा जा रहा है गीता भावार्थ।
जवाब देंहटाएंbeautiful..
जवाब देंहटाएंmother's love is divine.
jitna yaad karo kam hai ....par maine aaj ik aisee ma dekhi jo maa ke nam par kalank lagi .....mere blog dhundh ke us paar par apni is wayatha ka warnan karungi ....
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