मुद्दतों से
कैद हैं कुछ पर्चियां लिक्खी हुई
पूछना ना कौन
से पल में कहां लिक्खी हुई
बंदिशें हैं
तितलियों के खिलखिलाने पे यहाँ
इस हवेली की
बुलंदी पे खिज़ां लिक्खी हुई
पोटली में माँ हमेंशा ढूंढती रहती है कुछ
कतरनें हैं कुछ
पुरानी खत नुमा लिक्खी हुई
आईने में है
हुनर वो देख लेगा दूर से
उम्र की ताज़ा
लकीरों में फ़ना लिक्खी हुई
पढ़ रही है
आसमानी हर्फ़ में बादे सबा
इश्क की कोई
इबारत दरमयां लिक्खी हुई
इस शहर के
पत्थरों को देखना मिल जाएगी
सुरमई रंगों से
अपनी दास्तां लिक्खी हुई
"तितलियों के खिलखिलाने" से "हवेली की बुलंदी पे खिज़ां" तक का सफर एक अलग सी ही सोच जगा गया ......
जवाब देंहटाएंआईने में है हुनर वो देख लेगा दूर से
जवाब देंहटाएंउम्र की ताज़ा लकीरों में फ़ना लिक्खी हुई
बहुत खूबसूरत ख्याल...पूरी गजल ही उम्दा है..
ठिठका मुसाफिर ..मंजिल की ओर!
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें!
आईने में है हुनर वो देख लेगा दूर से
जवाब देंहटाएंउम्र की ताज़ा लकीरों में फ़ना लिक्खी हुई
दिल के पास लगा
बेहतरीन, ख़ूबसूरत
जवाब देंहटाएंपोटली में माँ हमशा ढूंढती रहती है कुछ
जवाब देंहटाएंकतरनें हैं कुछ पुरानी खत नुमा लिक्खी हुई ….
मैंने भी बचा ली हैं कुछ कतरनें यादों की
अकेलेपन में काम आएँगी …
मुद्दतों से कैद हैं कुछ पर्चियां लिक्खी हुई
जवाब देंहटाएंपूछना ना कौन से पल में कहां लिक्खी हुई
bahut hi khubsoorat gazal
अच्छी शायरी है।
जवाब देंहटाएंवाह ...हर शेर लाजबाब ...
जवाब देंहटाएंमुद्दतों से कैद हैं कुछ पर्चियां लिक्खी हुई
जवाब देंहटाएंपूछना ना कौन से पल में कहां लिक्खी हुई
बंदिशें हैं तितलियों के खिलखिलाने पे यहाँ
इस हवेली की बुलंदी पे खिज़ां लिक्खी हुई
बहुत सुन्दर ग़ज़ल |
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इस शहर के पत्थरों को देखना मिल जाएगी
जवाब देंहटाएंसुरमई रंगों से अपनी दास्तां लिक्खी हुई
बहुत सुंदर ग़ज़ल है भाई ...
बधाई !
वाह... सुन्दर ग़ज़ल...बधाई...
जवाब देंहटाएंमुद्दतों से कैद हैं कुछ पर्चियां लिक्खी हुई
जवाब देंहटाएंपूछना ना कौन से पल में कहां लिक्खी हुई
बेहतरीन ग़ज़ल ....हर शेर उम्दा ....
बंदिशें हैं तितलियों के खिलखिलाने पे यहाँ
जवाब देंहटाएंइस हवेली की बुलंदी पे खिज़ां लिक्खी हुई
बेहद उम्दा गज़ल
आईने में है हुनर वो देख लेगा दूर से
जवाब देंहटाएंउम्र की ताज़ा लकीरों में फ़ना लिक्खी हुई
बहुत खूबसूरत ....pichhli gazlo se kuchh hat kar....behtareen gazal
जबरदस्त खूबसूरती से तराशा है आपने हर शेर.....नासवा जी।
जवाब देंहटाएंमुद्दतों से कैद हैं कुछ पर्चियां लिक्खी हुई
जवाब देंहटाएंपूछना ना कौन से पल में कहां लिक्खी हुई
.... khubsoorat gazal Naswa ji
@ Raj
http://rajkumarchuhan.blogspot.in
पोटली में माँ हमेंशा ढूंढती रहती है कुछ
जवाब देंहटाएंकतरनें हैं कुछ पुरानी खत नुमा लिक्खी हुई
बहुत सुंदर आपकी प्रत्येक कविता माँ के प्रति गहरे अटैचमेंट को दर्शाती है..आज के समय में यह बहुत ही कम देखने को मिलता है।।।
आईने में है हुनर वो देख लेगा दूर से
जवाब देंहटाएंउम्र की ताज़ा लकीरों में फ़ना लिक्खी हुई
बहुत सुन्दर .
नई पोस्ट : लुंगगोम : रहस्यमयी तिब्बती साधना
पढ़ रही है आसमानी हर्फ़ में बादे सबा
जवाब देंहटाएंइश्क की कोई इबारत दरमयां लिक्खी हुई
क्या बात है!
उत्कृष्ट ...हर बार की तरह....
जवाब देंहटाएंउम्र की ताज़ा लकीरों में फ़ना लिक्खी हुई ...
जवाब देंहटाएंवाह...
बेहतरीन ग़ज़ल...
हर शेर उम्दा!!
सादर
अनु
बहुत ही बेहतरीन गजल..
जवाब देंहटाएं:-)
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शुक्रवार (18-10-2013) "मैं तो यूँ ही बुनता हूँ (चर्चा मंचःअंक-1402) पर भी होगी!
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत खुबसूरत ...:)
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत ग़ज़ल ! बधाई .
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति..
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आप की इस प्रविष्टि की चर्चा शनिवार 19/10/2013 को प्यार और वक्त...( हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल : 028 )
- पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें, सादर ....
आईने में है हुनर वो देख लेगा दूर से
जवाब देंहटाएंउम्र की ताज़ा लकीरों में फ़ना लिक्खी हुई
इस शहर के पत्थरों को देखना मिल जाएगी
सुरमई रंगों से अपनी दास्तां लिक्खी हुई
कल मिला था शहर में गिरते हुए ,
देख लेना एक दिन मिल जायेगी उसकी, व्यथा लिख्खी हुई।
बहुत सुन्दर अशआर।
आईने में है हुनर वो देख लेगा दूर से
जवाब देंहटाएंउम्र की ताज़ा लकीरों में फ़ना लिक्खी हुई
हाये................मार डाला
खूबसूरत गज़ल है आदरणीय..........
जवाब देंहटाएंपोटली में माँ हमेंशा ढूंढती रहती है कुछ
कतरनें हैं कुछ पुरानी खत नुमा लिक्खी हुई
आईने में है हुनर वो देख लेगा दूर से
उम्र की ताज़ा लकीरों में फ़ना लिक्खी हुई
गज़ब के अशआर हैं सर ...बेहतरीन संग्रहणीय गज़ल बहुत बहुत बधाई आदरणीय
बंदिशें हैं तितलियों के खिलखिलाने पे यहाँ
जवाब देंहटाएंइस हवेली की बुलंदी पे खिज़ां लिक्खी हुई
वाह क्या शेर कहा है. सुन्दर कृति.
दिल को छूनेवाली रचना।
जवाब देंहटाएंrang ...birange .......dil ko chhuti rachna .....
जवाब देंहटाएंबंदिशें हैं तितलियों के खिलखिलाने पे यहाँ
जवाब देंहटाएंइस हवेली की बुलंदी पे खिज़ां लिक्खी हुई
वाह वाह क्या कहने एक से एक शेर है बहुत बढ़िया !
अलग तरह की एक खूबसूरत रचना ।
जवाब देंहटाएं.बेहतरीन अंदाज़.....
जवाब देंहटाएंवाह बहुत ही खुबसूरत । हर शेर उम्दा है बस एक बात की मुझे लगता है की यहाँ "हुई" की जगह "है" और 'लिक्खी' की जगह 'लिखी' ज्यादा बेहतर लगता |
जवाब देंहटाएंपोटली में माँ हमेंशा ढूंढती रहती है कुछ
जवाब देंहटाएंकतरनें हैं कुछ पुरानी खत नुमा लिक्खी हुई,
वाह ! बहुत बेहतरीन सुंदर गजल !
RECENT POST : - एक जबाब माँगा था.
बेहतरीन ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंबंदिशें हैं तितलियों के खिलखिलाने पे यहाँ
जवाब देंहटाएंइस हवेली की बुलंदी पे खिज़ां लिक्खी हुई
chintanpoorna panktiyan, achha lekhan
shubhkamnayen
अलहदा !!!
जवाब देंहटाएंमुद्दतों से कैद हैं कुछ पर्चियां लिक्खी हुई
जवाब देंहटाएंपूछना ना कौन से पल में कहां लिक्खी हुई ।
पूरी ग़ज़ल क़ाबिले-गौर है।
अद्भुत ही लगता है आपके ब्लॉग पर आना....आकर माँ को जो होता है पाना....
जवाब देंहटाएंपढ़ रही है आसमानी हर्फ़ में बादे सबा
जवाब देंहटाएंइश्क की कोई इबारत दरमयां लिक्खी हुई
इस शहर के पत्थरों को देखना मिल जाएगी
सुरमई रंगों से अपनी दास्तां लिक्खी हुई
==========================बहुत सुन्दर रचना अनेक भावो से सजी अनुपम कृति
surmai rang.........sundar :)
जवाब देंहटाएंआज यहाँ आकर पता चला कि पिछले दिनों की गैरहाजिरी में मैंने क्या खोया है.. एक बेहतरीन गज़ल!!
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंइस शहर के पत्थरों को देखना मिल जाएगी
सुरमई रंगों से अपनी दास्तां लिक्खी हुई-----
जीवन और प्रेम का शाश्वत सच तो यही है---
वाह मन को छूती हुई बात---
उत्कृष्ट
सादर
वाह वह क्या खूब लिखा है.. बहुत खूब
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंबारहा पढने लायक गजल। शुक्रिया आपकी सद्य टिप्पणियों का।
मुद्दतों से कैद हैं कुछ पर्चियां लिक्खी हुई
पूछना ना कौन से पल में कहां लिक्खी हुई
उम्दा रचना
जवाब देंहटाएंलाजबाब *****
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत गज़ल .... हर लम्हों को जैसे याद कर लिया हो ।
जवाब देंहटाएंसर शानदार
जवाब देंहटाएंप्रश्न ? उत्तर भाग - ४
हर शेर मुकम्मल है , हर लफ्ज़ में कशिश है।
जवाब देंहटाएंआईने में है हुनर वो देख लेगा दूर से
जवाब देंहटाएंउम्र की ताज़ा लकीरों में फ़ना लिक्खी हुई
.......
इस शहर के पत्थरों को देखना मिल जाएगी
सुरमई रंगों से अपनी दास्तां लिक्खी हुई
खूबसूरत शैली में कही गई ग़ज़ल मन पर छा गई. बहुत बढ़िया.
bahut khoob ,laazwaab
जवाब देंहटाएंशुक्रिया शुक्रिया शुक्रिया !
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत ग़ज़ल !
जवाब देंहटाएंआज नेटवर्क की सुविधा उपलब्ध होने पर उपस्थित
जवाब देंहटाएंहूँ |प्रब्य्हावी ममता का समावेश करने वाली इस रचना हेतु साधुवाद !
वाह!!! क्या बात है बहुत खूब हर एक शेर जैसे दिल को छू गया।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ग़ज़ल.
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