वो
जो पत्थर
चमक नहीं
पाते
बीच
बाज़ार बिक
नहीं पाते
टूट
जाते हैं
वो शजर
अक्सर
आँधियों
में जो
झुक नहीं
पाते
फाइलों
में दबा
दिया उनको
कितने
मज़लूम हक
नहीं पाते
रात
जितनी घनी
हो ये
तारे
धूप
के आगे
टिक नहीं पाते
सिलसिला
कायनात का
ऐसा
रात
हो दिन
ये रुक
नहीं पाते
पांव
उनके निकल
ही आते
हैं
झूठ
चादर से
ढक नहीं
पाते
वाह वाह ! बेहतरीन ग़ज़ल पहला शेर तो कमाल का है । चौथे शेर पे आखिर में "पाता" की जगह "पाते" कर लें |
जवाब देंहटाएंफिर भी वे अपने मुख से न जाने क्या-क्या हैं बताते.. वाह ! अच्छी लगी..
जवाब देंहटाएंzindagi ki sacchai byaan kar di behad khoobsurat
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर .
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट : भारतीय संस्कृति और लक्ष्मी पूजन
नई पोस्ट : कोई बात कहो तुम
सुन्दर रचना -
जवाब देंहटाएंआदरणीय भाई जी-
बहुत बहुत शुभकामनायें-
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति बुधवारीय चर्चा मंच पर ।।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया ग़ज़ल.....
जवाब देंहटाएंहर शेर मन को कचोटता हुआ....
सादर
अनु
दिगम्बर भाई पूरी गज़ल ही हमारे दिल पे छा गयी
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट -: प्रश्न ? उत्तर भाग - ५
बीती पोस्ट --: प्रतिभागी - गीतकार के.के.वर्मा " आज़ाद " ---> A tribute to Damini
चलायमान जीवन की सच्चाई बखूबी बताई ....बहुत सुंदर गजल ....
जवाब देंहटाएंटूट जाते हैं वो शजर अक्सर
जवाब देंहटाएंआँधियों में जो झुक नहीं पाते
एक ठोस और सच्ची बात..
बहुत उम्दा.
पांव उनके निकल ही आते हैं
जवाब देंहटाएंझूठ चादर से ढक नहीं पाते,,,
लाजबाब ! बहुत सुंदर प्रस्तुति ,,,
RECENT POST -: तुलसी बिन सून लगे अंगना
सुन्दर अर्थपूर्ण अश'आर हैं सभी .
जवाब देंहटाएंहकीकत कहती बेहतरीन गजल.....
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढियाँ....
:-)
टूट जाते हैं वो शजर अक्सर
जवाब देंहटाएंआँधियों में जो झुक नहीं पाते
...वाह! बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल...
वाकई
जवाब देंहटाएंवाह! हर मानवीय अनुभूति पर आधारित है |
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट सपना और मैं (नायिका )
टूट जाते हैं वो शजर अक्सर
जवाब देंहटाएंआँधियों में जो झुक नहीं पाते
क्या बात है अहंकार है डुबने को नम्रता है तरने को
एक से एक नायाब शेर है !
लाजवाब
जवाब देंहटाएंसादर
सब शेर सुन्दर और नायाब है...
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन आज का यह विशेष बुलेटिन स्वर्गीय राजेंद्र यादव को श्रद्धा सुमन अर्पित करता है मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन आज का यह विशेष बुलेटिन स्वर्गीय राजेंद्र यादव को श्रद्धा सुमन अर्पित करता है मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंटूट जाते हैं वो शजर अक्सर
जवाब देंहटाएंआँधियों में जो झुक नहीं पाते
........सभी शेर लाजवाब ...अपनी बात कहने में पूरी तरह सफल
बेबाकी से सच को बताती यह रचना.... बहुत ही उम्दा
जवाब देंहटाएंहकीकत बयां करती......
जवाब देंहटाएंबहुत खुबसूरतग़ज़ल !!
शानदार गज़ल, हर शेर मुकम्मल।
जवाब देंहटाएंवो जो पत्थर चमक नहीं पाते
जवाब देंहटाएंबीच बाज़ार बिक नहीं पाते
फाइलों में दबा दिया उनको
कितने मज़लूम हक नहीं पाते
वाह सर बहुत बढ़िया ग़ज़ल
बहुत बढ़िया ग़ज़ल.
जवाब देंहटाएंझूठ चादर से ढक नहीं पाते। बहुत ही सशक्त रचना है।
जवाब देंहटाएंइस पोस्ट की चर्चा, बृहस्पतिवार, दिनांक :-31/10/2013 को "हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच}" चर्चा अंक -37 पर.
जवाब देंहटाएंआप भी पधारें, सादर ....
बेहतरीन गजल
जवाब देंहटाएंहर शेर सुन्दर !
सच्ची और गहरी बातें कहती रचना।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंहर पंक्ति लाजवाब
जवाब देंहटाएंhttp://sowaty.blogspot.in/2013/10/5-choka.html
टूट जाते हैं वो शजर अक्सर
जवाब देंहटाएंआँधियों में जो झुक नहीं पाते
बहुत सुन्दर भाव.. हर शेर लाजवाब .. बहुत खूब..
बेहतरीन गजल ....
जवाब देंहटाएंसुन्दर भाव पूर्ण रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सशक्त अभिव्यंजना रूपक तत्व लिए। आभार आपकी निरंतर उत्साह वर्धक स्नेहिल टिप्पणियों का।
वाह दिगंबर जी!
जवाब देंहटाएंशाश्वत सत्य !
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना।।
जवाब देंहटाएंनई कड़ियाँ : भारत के महान वैज्ञानिक : डॉ. होमी जहाँगीर भाभा
"प्रोजेक्ट लून" जैसे प्रोजेक्ट शुरू होने चाहिए!!
दिगम्बर जी इस कविता के लिए मेरे पास इंग्लिश का एक ही शब्द याद आ रहा है (Awesome)इसके लिए में और कुछ नहीं कह सकता .
जवाब देंहटाएंबेहद सटीक रचना.
जवाब देंहटाएंरामराम.
रात जितनी घनी हो ये तारे
जवाब देंहटाएंधूप के आगे टिक नहीं पाते
वा वाह, वा वाह ...
पांव उनके निकल ही आते हैं
जवाब देंहटाएंझूठ चादर से ढक नहीं पाते
वाह ... बहुत खूब
bahut khoob. maza aaya padh kar!
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंatyant prabhavshali prastuti
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया प्रेरक रचना ..
जवाब देंहटाएंधनतेरस और दीप पर्व की हार्दिक शुभकामना
सादर
बढ़िया ग़ज़ल। आज के दौर में ऐसी ग़ज़लें कम लिखी जा रही हैँ।
जवाब देंहटाएंदिगम्बर भाई , दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ
जवाब देंहटाएंनया प्रकाशन --: दीप दिल से जलाओ तो कोईबात बन
बहुत सुंदर ग़ज़ल.
जवाब देंहटाएंhaqikat ke aine men likhi gayi behtareen ghazal.
जवाब देंहटाएंदीपावली पर्व की हार्दिक बधाई शुभकामनाएं ....
जवाब देंहटाएंअच्छी सामयिक प्रस्तुति...दीपावली की बहुत बहुत शुभकामनाएं...
जवाब देंहटाएंनयी पोस्ट@जब भी जली है बहू जली है
टूट जाते हैं वो शजर अक्सर
जवाब देंहटाएंआँधियों में जो झुक नहीं पाते
waah ....!!
बहुत उम्दा .....शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंपाँव उनके ढक नहीं पाते ,
जवाब देंहटाएंसुन्दर भाव -मतिमंद बालक समझ नहीं पाते ,
चुभती हुई सच्चाइयाँ !
जवाब देंहटाएंपांव उनके निकल ही आते हैं
जवाब देंहटाएंझूठ चादर से ढक नहीं पाते ....बहुत सुन्दर नासवा साहब , सत्य को प्रतिविम्बित करती एक सार्थक रचना.......
पांव उनके निकल ही आते हैं
जवाब देंहटाएंझूठ चादर से ढक नहीं पाते ....बहुत सुन्दर नासवा साहब , सत्य को प्रतिविम्बित करती एक सार्थक रचना.......
पांव उनके निकल ही आते हैं
जवाब देंहटाएंझूठ चादर से ढक नहीं पाते ....बहुत सुन्दर नासवा साहब , सत्य को प्रतिविम्बित करती एक सार्थक रचना.......
.बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंHAPPY DEEPAWALI.
आपको दीपोत्सव की हार्दिक शुभकामनायें
जवाब देंहटाएं