स्वप्न मेरे: झूठ चादर से ढक नहीं पाते ...

मंगलवार, 29 अक्टूबर 2013

झूठ चादर से ढक नहीं पाते ...

वो जो पत्थर चमक नहीं पाते 
बीच बाज़ार बिक नहीं पाते 

टूट जाते हैं वो शजर अक्सर 
आँधियों में जो झुक नहीं पाते   

फाइलों में दबा दिया उनको 
कितने मज़लूम हक नहीं पाते   

रात जितनी घनी हो ये तारे 
धूप के आगे टिक नहीं पाते  

सिलसिला कायनात का ऐसा 
रात हो दिन ये रुक नहीं पाते 

पांव उनके निकल ही आते हैं 
झूठ चादर से ढक नहीं पाते  

62 टिप्‍पणियां:

  1. वाह वाह ! बेहतरीन ग़ज़ल पहला शेर तो कमाल का है । चौथे शेर पे आखिर में "पाता" की जगह "पाते" कर लें |

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  2. फिर भी वे अपने मुख से न जाने क्या-क्या हैं बताते.. वाह ! अच्छी लगी..

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  3. सुन्दर रचना -
    आदरणीय भाई जी-
    बहुत बहुत शुभकामनायें-

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  4. आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति बुधवारीय चर्चा मंच पर ।।

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  5. बहुत बढ़िया ग़ज़ल.....
    हर शेर मन को कचोटता हुआ....

    सादर
    अनु

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  6. चलायमान जीवन की सच्चाई बखूबी बताई ....बहुत सुंदर गजल ....

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  7. टूट जाते हैं वो शजर अक्सर
    आँधियों में जो झुक नहीं पाते
    एक ठोस और सच्ची बात..
    बहुत उम्दा.

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  8. पांव उनके निकल ही आते हैं
    झूठ चादर से ढक नहीं पाते,,,

    लाजबाब ! बहुत सुंदर प्रस्तुति ,,,

    RECENT POST -: तुलसी बिन सून लगे अंगना

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  9. सुन्दर अर्थपूर्ण अश'आर हैं सभी .

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  10. हकीकत कहती बेहतरीन गजल.....
    बहुत ही बढियाँ....
    :-)

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  11. टूट जाते हैं वो शजर अक्सर
    आँधियों में जो झुक नहीं पाते

    ...वाह! बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल...

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  12. टूट जाते हैं वो शजर अक्सर
    आँधियों में जो झुक नहीं पाते
    क्या बात है अहंकार है डुबने को नम्रता है तरने को
    एक से एक नायाब शेर है !

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  13. सब शेर सुन्दर और नायाब है...

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  14. टूट जाते हैं वो शजर अक्सर
    आँधियों में जो झुक नहीं पाते
    ........सभी शेर लाजवाब ...अपनी बात कहने में पूरी तरह सफल

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  15. बेबाकी से सच को बताती यह रचना.... बहुत ही उम्दा

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  16. हकीकत बयां करती......
    बहुत खुबसूरतग़ज़ल !!

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  17. शानदार गज़ल, हर शेर मुकम्मल।

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  18. वो जो पत्थर चमक नहीं पाते
    बीच बाज़ार बिक नहीं पाते

    फाइलों में दबा दिया उनको
    कितने मज़लूम हक नहीं पाते

    वाह सर बहुत बढ़िया ग़ज़ल

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  19. झूठ चादर से ढक नहीं पाते। बहुत ही सशक्‍त रचना है।

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  20. इस पोस्ट की चर्चा, बृहस्पतिवार, दिनांक :-31/10/2013 को "हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच}" चर्चा अंक -37 पर.
    आप भी पधारें, सादर ....

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  21. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  22. हर पंक्ति लाजवाब
    http://sowaty.blogspot.in/2013/10/5-choka.html

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  23. टूट जाते हैं वो शजर अक्सर
    आँधियों में जो झुक नहीं पाते

    बहुत सुन्दर भाव.. हर शेर लाजवाब .. बहुत खूब..

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  24. सुन्दर भाव पूर्ण रचना।

    बहुत सुन्दर सशक्त अभिव्यंजना रूपक तत्व लिए। आभार आपकी निरंतर उत्साह वर्धक स्नेहिल टिप्पणियों का।

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  25. दिगम्बर जी इस कविता के लिए मेरे पास इंग्लिश का एक ही शब्द याद आ रहा है (Awesome)इसके लिए में और कुछ नहीं कह सकता .

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  26. रात जितनी घनी हो ये तारे
    धूप के आगे टिक नहीं पाते

    वा वाह, वा वाह ...

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  27. पांव उनके निकल ही आते हैं
    झूठ चादर से ढक नहीं पाते
    वाह ... बहुत खूब

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  28. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  29. बहुत बढ़िया प्रेरक रचना ..
    धनतेरस और दीप पर्व की हार्दिक शुभकामना
    सादर

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  30. बढ़िया ग़ज़ल। आज के दौर में ऐसी ग़ज़लें कम लिखी जा रही हैँ।

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  31. दिगम्बर भाई , दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ
    नया प्रकाशन --: दीप दिल से जलाओ तो कोईबात बन

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  32. दीपावली पर्व की हार्दिक बधाई शुभकामनाएं ....

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  33. अच्छी सामयिक प्रस्तुति...दीपावली की बहुत बहुत शुभकामनाएं...
    नयी पोस्ट@जब भी जली है बहू जली है

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  34. टूट जाते हैं वो शजर अक्सर
    आँधियों में जो झुक नहीं पाते

    waah ....!!

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  35. पाँव उनके ढक नहीं पाते ,

    सुन्दर भाव -मतिमंद बालक समझ नहीं पाते ,

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  36. पांव उनके निकल ही आते हैं
    झूठ चादर से ढक नहीं पाते ....बहुत सुन्दर नासवा साहब , सत्य को प्रतिविम्बित करती एक सार्थक रचना.......

    जवाब देंहटाएं
  37. पांव उनके निकल ही आते हैं
    झूठ चादर से ढक नहीं पाते ....बहुत सुन्दर नासवा साहब , सत्य को प्रतिविम्बित करती एक सार्थक रचना.......

    जवाब देंहटाएं
  38. पांव उनके निकल ही आते हैं
    झूठ चादर से ढक नहीं पाते ....बहुत सुन्दर नासवा साहब , सत्य को प्रतिविम्बित करती एक सार्थक रचना.......

    जवाब देंहटाएं
  39. आपको दीपोत्सव की हार्दिक शुभकामनायें

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आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है