मौका नहीं है देती, ये ज़िंदगी दुबारा
जो चल पड़े सफर पे, उनको मिला किनारा
ज्ञानी हकीम सूफी, सब कह गए हकीकत
सपनों से उम्र भर फिर, होता नहीं गुज़ारा
देती है साथ तब तक, जब तक ये रौशनी है
परछाई कह रही है, समझो ज़रा इशारा
तिनका उछाल देना, जो बस में है तुम्हारे
होता है डूबते को, तिनके का ही सहारा
बापू हैं याद आते, हैरत में हों कभी तो
मुश्किल जो सामने हो, बस माँ को ही पुकारा
बचपन के चंद किस्से, बाकी थे बस ज़हन में
गुज़रे हुए समय को, कागज़ पे जब उतारा
जो चल पड़े सफर पे, उनको मिला किनारा
ज्ञानी हकीम सूफी, सब कह गए हकीकत
सपनों से उम्र भर फिर, होता नहीं गुज़ारा
देती है साथ तब तक, जब तक ये रौशनी है
परछाई कह रही है, समझो ज़रा इशारा
तिनका उछाल देना, जो बस में है तुम्हारे
होता है डूबते को, तिनके का ही सहारा
बापू हैं याद आते, हैरत में हों कभी तो
मुश्किल जो सामने हो, बस माँ को ही पुकारा
बचपन के चंद किस्से, बाकी थे बस ज़हन में
गुज़रे हुए समय को, कागज़ पे जब उतारा
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है