स्वप्न मेरे: एक बात ... ज़रूरी है जो ...

सोमवार, 3 मार्च 2014

एक बात ... ज़रूरी है जो ...

पचपन डिग्री पारे में रेत के रेगिस्तान पे चलते हुए अगर मरीचिका न मिले तो क्या चलना आसान होगा ... तुम भी न हो और हो सपने देखने पे पाबंदी ... ऐसे तो नहीं चलती साँसें ... जरूरी होता है एक हल्का सा झटका कभी कभी, रुकी हुई सूइयाँ चलाने के लिए ...


वो मेरे इंतज़ार का दरख़्त था
सर्दियों में भी फूल नहीं खिले उस पर
हालाँकि उसकी घनी छाँव में पनपने वाली झाड़ी
लदी रहती थी लाल फूलों से

सुनो सफ़ेद पँखों वाली चिड़िया
बसंत से पहले  
उनकी चिट्ठी जरूर लाना

आने वाले पतझड़ के मौसम में
जरूरी है पलाश का खिलना  

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