प्रेम का क्या कोई स्वरुप है? कोई शरीर जिसे महसूस किया जा सके, छुआ जा सके ... या वो एक सम्मोहन है ... गहरी नींद में जाने से ठीक पहले कि एक अवस्था, जहाँ सोते हुवे भी जागृत होता है मन ... क्या सच में प्रेम है, या है एक माया कृष्ण की जहाँ बस गोपियाँ ही गोपियाँ हैं, चिर-आनंद की अवस्था है ... फिर मैं ... मैं क्या हूँ ... तुम्हारी माया में बंधा कृष्ण, या कृष्ण सम्मोहन में बंधी राधा ... पर जब प्रेम है, कृष्ण है, राधा है, गोपियाँ हैं, मैं हूँ, तू है ... तो क्या जरूरी है जानना प्रेम को ...
कई बार करता हूँ कोशिश
कैनवस के बे-रँग परदे पे तुझे नए शेड में उतारने की
चेतन मन बैठा देता है तुझे पास की ही मुंडेर पर
कायनात के चटख रँग लपेटे
शुरू होती है फिर एक जद्दोजहद चेतन और अवचेतन के बीच
गुजरते समय के साथ उतरने लगते हैं समय के रँग
शून्य होने लगता है तेरा अक्स
खुद-ब-खुद घुल जाते हैं रँग
उतर आती है तू साँस लेती कैनवस के बे-रँग परदे पर
गुलाबी साड़ी पे आसमानी शाल ओढ़े
पूजा कि थाली हाथों में लिए
पलकें झुकाए सादगी भरे रूप में
सच बताना जानाँ
क्या रुका हुआ है समय तभी से
या आई है तू सच में मेरे सामने इस रूप में ...?
कई बार करता हूँ कोशिश
कैनवस के बे-रँग परदे पे तुझे नए शेड में उतारने की
चेतन मन बैठा देता है तुझे पास की ही मुंडेर पर
कायनात के चटख रँग लपेटे
शुरू होती है फिर एक जद्दोजहद चेतन और अवचेतन के बीच
गुजरते समय के साथ उतरने लगते हैं समय के रँग
शून्य होने लगता है तेरा अक्स
खुद-ब-खुद घुल जाते हैं रँग
उतर आती है तू साँस लेती कैनवस के बे-रँग परदे पर
गुलाबी साड़ी पे आसमानी शाल ओढ़े
पूजा कि थाली हाथों में लिए
पलकें झुकाए सादगी भरे रूप में
सच बताना जानाँ
क्या रुका हुआ है समय तभी से
या आई है तू सच में मेरे सामने इस रूप में ...?
प्रेम अनन्त, अपरिभाषनीय है.
जवाब देंहटाएंजो भी हो अनछुए अहसास गहरे तक समा जाते है आपके प्रेम को छूकर..
जवाब देंहटाएंखो जाती हूँ आपके रचना में
जवाब देंहटाएंअद्धभूत अभिव्यक्ति
हार्दिक शुभकामनायें
मुसव्विर ख़ुद परेशाँ है कि ये तस्वीर किसकी है...
जवाब देंहटाएंशायर थमे हुये वक़्त का हल ढूँढ रहा है... जनाब आप क्लासिकल होते जा रहे हैं इन दिनों!! इसे वक़्त की नज़ाकत कहूँ या दीवानेपन का इम्क़ान!!
कमाल किया है आपने!!
प्रेम ध्यान से उपजा अनोखा अहसास।
जवाब देंहटाएंक्या बात है। लाजवाब प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंवाह , क्या बात है !!
जवाब देंहटाएंमन में बाँधे भाव सच्चे हों तो मूर्त रूप दिख जाता है। सुन्दर पंक्तियाँ।
जवाब देंहटाएंशून्य होने लगता है तेरा अक्स
जवाब देंहटाएंखुद-ब-खुद घुल जाते हैं रँग
उतर आती है तू साँस लेती कैनवस के बे-रँग परदे पर
गुलाबी साड़ी पे आसमानी शाल ओढ़े
पूजा कि थाली हाथों में लिए
पलकें झुकाए सादगी भरे रूप में
sadgi men hi sundarta hai ....bahut sundar bhaw ukere hain shabd chitra ke madhayam se ...
वाह ... अद्भुत भाव
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (25-03-2014) को "स्वप्न का संसार बन कर क्या करूँ" (चर्चा मंच-1562) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
कामना करता हूँ कि हमेशा हमारे देश में
परस्पर प्रेम और सौहार्द्र बना रहे।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत ही सुन्दर....उतर आती है तू साँस लेती कैनवस के बे-रँग परदे पर...
जवाब देंहटाएंप्रेममय करते भाव ...ईश्वरीय अनुभूति ......!!अद्भुत रचना ......!!
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन युद्ध की शुरुआत - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
शुरू होती है फिर एक जद्दोजहद चेतन और अवचेतन के बीच
जवाब देंहटाएं(गुजारते )
गुज़रते समय के साथ उतरने लगते हैं समय के रँग
सुन्दर भाव बोध और तसव्वुर के इंद्रधनुष
KHOOB KAHAA HAI AAPNE !
जवाब देंहटाएंज्यों-ज्यों डूबे प्रेम-रँग त्यो-त्यों उज्ज्वल होइ!
जवाब देंहटाएंप्रेम का अद्भुत संसार है जहां सब कुछ आभासी एवं अस्पष्ट है लेकिन फिर भी हाथ आये किसी भी छोर को मन छूटने देना नहीं चाहता ! बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंहरि अनंत हरि कथा अनन्ता ...
जवाब देंहटाएंशानदार जज़्बाती प्रस्तुति। सुन्दर शब्दों का चयन और संयोजन
जवाब देंहटाएंप्रेम तो मन का एक भाव है, जो किसी एक के लिए नहीं होता अपितु सम्पूर्ण जगत के लिए होता है। केवल एक के लिए होना वाला प्रेम प्रेम नहीं है आसक्ति है। इसलिए सम्पूर्ण जीव-जगत के लिए मन में प्रेम उमड़ या संवेदना जागृत हो उसी इंसान के अन्दर प्रेम होता है और प्रेम तभी जीवित रहता है।
जवाब देंहटाएंजब कान में बजती बन्सी की धुन
जवाब देंहटाएंघर आ जाता कोई मनचाहा पाहून
तब ऐसे ही लगता है जैसे जूही खिल कर महका गयी है मन प्राणों को, समझो तो प्रेम न समझो तो दिवानापन :)
प्रेम और भक्ति की साधना में संशय नहीं होता...सुंदर मनोभाव लिये रचना...
जवाब देंहटाएंप्रेम के इस एहसास का जवाब नहीं
जवाब देंहटाएंसच बताना जानाँ
जवाब देंहटाएंक्या रुका हुआ है समय तभी से
या आई है तू सच में मेरे सामने इस रूप में ...?
बहुत ही कोमल भाव संजोए बहुत सुन्दर रचना ...
प्रेम ही ऐसा है जो आज भी अगर विशुद्ध है तो निश्छल और निष्पाप है, चाहे उसका रूप कुछ भी हो। बहुत सुन्दर भाव !
जवाब देंहटाएंवाह ! प्रेम की बारिश कर दी ! बहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंअवचेतन में बसा पवित्र प्रेम. सुंदर रचना .
जवाब देंहटाएंयूं तो प्रेम खुद एक एहसास है। लिकिन फिर भी उसे महसूस करने के लिए भी केवल एक एहसास एक भाव की ही जरूरत होती है...जैसे वो गीत है न
जवाब देंहटाएं"सिर्फ एहसास है यह रूह से महसूस करो।
प्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम न दो"...