कोशिश में लगी रहती है ये कायनात, तमाम प्रेम करने वालों को उस जगह धकेलने की ... जहां बदलता रहता है सब कुछ, सिवाए प्रेम के ... गिने-चुने से इन ज़र्रों में बस प्रेम ही होता है और होती है बंसी कि धुन ... इसकी राह में जाने वाला हर पथिक बस होता है कृष्ण या राधा और होती है एक धुन आलोकिक प्रेम की ...
समुन्दर के उस कोने पे
टुकड़े टुकड़े उतरता है जहां नीला आसमां
सूरज भी सो जाता है थक के
नीली लहरों कि आगोश में जहां
कायनात के उसी ज़र्रे पे
छोड़ आया हूँ कुछ कच्चे शब्द
पढ़ आना उन्हें फुर्सत के लम्हों में
ढाल आना उसी सांचे में
जो तुमको हो क़ुबूल
कि हमने तो कसम खाई है
हर हाल में तुम्हें पाने की ...
समुन्दर के उस कोने पे
टुकड़े टुकड़े उतरता है जहां नीला आसमां
सूरज भी सो जाता है थक के
नीली लहरों कि आगोश में जहां
कायनात के उसी ज़र्रे पे
छोड़ आया हूँ कुछ कच्चे शब्द
पढ़ आना उन्हें फुर्सत के लम्हों में
ढाल आना उसी सांचे में
जो तुमको हो क़ुबूल
कि हमने तो कसम खाई है
हर हाल में तुम्हें पाने की ...
behtar soch
जवाब देंहटाएंकोशिश में लगी रहती है ये कायनात, तमाम प्रेम करने वालों को उस जगह धकेलने की ... जहां बदलता रहता है सब कुछ, सिवाए प्रेम के
nahi ye कच्चे शब्द nahin hain, pakke hain
ये कच्चे शब्द पढ़ते ही तो पक गए .... खूबसूरत नज़्म
जवाब देंहटाएंसच है... किन्तु ऐसा आलोकिक प्रेम अब ढूँढने से भी कहाँ मिलता है।
जवाब देंहटाएं