दो जमा दो पाँच जब होने लगे
अंक अपने मायने खोने लगे
कौन रखवाली करेगा घर कि जब
बेच के घोड़े सभी सोने लगे
मुश्किलों का क्या करोगे सामना
चोट से पहले ही जो रोने लगे
फैलती है सत्य की खुशबू सदा
झूठ का फिर बोझ क्यों ढोने लगे
खुद की गर्दन सामने आ जायेगी
खून से ख़ंजर अगर धोने लगे
ये फसल भी तुम ही काटोगे कभी
दुश्मनी के बीज जो बोने लगे
अंक अपने मायने खोने लगे
कौन रखवाली करेगा घर कि जब
बेच के घोड़े सभी सोने लगे
मुश्किलों का क्या करोगे सामना
चोट से पहले ही जो रोने लगे
फैलती है सत्य की खुशबू सदा
झूठ का फिर बोझ क्यों ढोने लगे
खुद की गर्दन सामने आ जायेगी
खून से ख़ंजर अगर धोने लगे
ये फसल भी तुम ही काटोगे कभी
दुश्मनी के बीज जो बोने लगे
बहुत दिनों बाद आप ग़ज़ल के मूड में आये हैं शायर साहब!! बेहत्रीन अशआर से सजी ख़ूबसूरत ग़ज़ल...
जवाब देंहटाएंमतला कमाल का है और यह शे'र
कौन रखवाली करेगा घर कि जब
बेच के घोड़े सभी सोने लगे!!
एक कड़वा सच!!
bahut khoob sir bahut khoob!
जवाब देंहटाएंविषय की मौलिकता में मुहावरों का कौशल देखते ही बन रहा है !
जवाब देंहटाएंहर एक अशआर दमदार है ! उम्दा ग़ज़ल !
जवाब देंहटाएंNew post ऐ जिंदगी !
बेहद उम्दा ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंनमन है आपकी लेखनी को. इस ग़ज़ल के बारे में कुछ नहीं लिख पाऊंगा. यह ग़ज़ल नहीं ज्ञान का गीत है. सबके गाने के लिए.
जवाब देंहटाएंवाह....बेहतरीन पंक्तियाँ हैं
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग के पोस्ट के लिए manojbijnori12.blogspot.com यहाँ आये और अपने कमेंट्स भेजकर कर और फोलोवर बनकर अपने सुझाव दे !
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दो जमा दो पाँच जब होने लगे
अंक अपने मायने खोने लगे
कौन रखवाली करेगा घर कि जब
बेच के घोड़े सभी सोने लगे
वाह ! वाऽह…!
बढ़िया ग़ज़ल कही है आदरणीय दिगंबर नासवा जी
मुबारकबाद !
शुभकामनाओं सहित...
-राजेन्द्र स्वर्णकार
ो जमा दो पाँच जब होने लगे ...
जवाब देंहटाएंद
कौन रखवाली करेगा घर कि जब
बेच के घोड़े सभी सोने लगे
मुश्किलों का क्या करोगे सामना
चोट से पहले ही जो रोने लगे
http://swapnmere.blogspot.in/2014/05/blog-post.html
Bahut hi badhiya likha hai aapne..
जवाब देंहटाएंGreat lines :)
बेहतरीन...... हर शेर एक अलग भाव को समेटे है..... बहुत खूब
जवाब देंहटाएंhttp://bulletinofblog.blogspot.in/2014/05/blog-post_7.html
जवाब देंहटाएंसत्य की खुशबू फ़ैल रही है..
जवाब देंहटाएंवाह-वाह क्या बात है। बहुत ही उम्दा रचना। बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सशक्त रचना.
जवाब देंहटाएंरामराम.
ईश्वर ही मालिक है इन हालात में तो। . बेहद सुन्दर रचना ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर और सशक्त रचना.
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ! हकीकत की पैनी धार पर हर अहसास को रखते परखते हुए लाजवाब रचना ! शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंये फसल भी तुम ही काटोगे कभी
जवाब देंहटाएंदुश्मनी के बीज जो बोने लगे
हमेशा की तरह बेहतरीन गजल।
सच्चे सामाजिक सन्दर्भों के प्रति जमने को प्रेरित करती पंक्तियां।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन,
जवाब देंहटाएंदो और दो पांच इस दौर की सच्चाई बन गयी है
ये वाली पंक्ति भी बहुत अची लगी
.
फैलती है सत्य की खुशबू सदा
झूठ का फिर बोझ क्यों ढोने लगे
जीवन को सत्य का आइना दिखाती गज़ल .
जवाब देंहटाएंफैलती है सत्य की खुशबू सदा
जवाब देंहटाएंझूठ का फिर बोझ क्यों ढोने लगे
खुद की गर्दन सामने आ जायेगी
खून से ख़ंजर अगर धोने लगे
खूबसूरत अलफ़ाज़
सच है...
जवाब देंहटाएंदो जमा दो पाँच जब होने लगे
जवाब देंहटाएंअंक अपने मायने खोने लगे
कौन रखवाली करेगा घर कि जब
बेच के घोड़े सभी सोने लगे
सत्य ...!!