मजबूर वो रहा कभी नहीं
गमले में जो उगा कभी नहीं
मुश्किल यहाँ है खोजना उसे
इंसान जो बिका कभी नहीं
है टूटता रहा तो क्या हुआ
पर्वत है जो झुका कभी नहीं
वो बार बार गिर के उठ गया
नज़रों से जो गिरा कभी नहीं
रोशन चिराग होंसलों से था
आंधी से वो बुझा कभी नहीं
चेहरे ने खुल के राज़ कह दिया
सिल्वट ने जो कहा कभी नहीं
गमले में जो उगा कभी नहीं
मुश्किल यहाँ है खोजना उसे
इंसान जो बिका कभी नहीं
है टूटता रहा तो क्या हुआ
पर्वत है जो झुका कभी नहीं
वो बार बार गिर के उठ गया
नज़रों से जो गिरा कभी नहीं
रोशन चिराग होंसलों से था
आंधी से वो बुझा कभी नहीं
चेहरे ने खुल के राज़ कह दिया
सिल्वट ने जो कहा कभी नहीं
सादा सी, मगर ख़ूबसूरत सी गज़ल!! एक लम्बे समय के बाद आपकी ग़ज़ल पढने को मिली!! मगर एहसास वही हैं!!
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की ८५० वीं बुलेटिन खेल खतम पैसा हजम - 850 वीं ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंलाजवाब
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत
जवाब देंहटाएंसुन्दर ग़ज़ल ..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (13-05-2014) को "मिल-जुलकर हम देश सँवारें" (चर्चा मंच-1611) पर भी होगी!
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
नासवा जी,आप की ग़ज़लों में बहुत दम होता है |हमेशा की तरह लाजवाब और खूबसूरत ग़ज़ल ...बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंनयी पोस्ट@आप की जब थी जरुरत आपने धोखा दिया
दमदार सुंदर गजल ...!
जवाब देंहटाएंRECENT POST आम बस तुम आम हो
Its beautiful
जवाब देंहटाएंजितने छोटे उतने गहरे अर्थ -
जवाब देंहटाएंसार्थक और समर्थ!
बहुत ही खूबसूरत और उम्दा ग़ज़ल !!
जवाब देंहटाएंकभी नही कहकर भी सब कुछ कह रही है, बेजोड़ रचना …
जवाब देंहटाएंBehtreen Panktiyan....
जवाब देंहटाएंवो बार बार गिर के उठ गया
जवाब देंहटाएंनज़रों से जो गिरा कभी नहीं
वाह ! बहुत खूबसूरत।
लाजवाब....
जवाब देंहटाएंमुश्किल यहाँ है खोजना उसे
जवाब देंहटाएंइंसान जो बिका कभी नहीं!
लाजवाब
बेटी बन गई बहू
हमेशा की तरह उम्दा गजल.. वाह!
जवाब देंहटाएंरोशन चिराग होंसलों से था
जवाब देंहटाएंआंधी से वो बुझा कभी नहीं
रोशन हौसलों का चिराग
दुनिया की आँधिया सच मे उसे बुझा नही पाती !
हमेशा की तरह उम्दा , आप गजल मे तो माहिर है ही !
मुश्किल यहाँ है खोजना उसे
जवाब देंहटाएंइंसान जो बिका कभी नहीं
रोशन चिराग होंसलों से था
आंधी से वो बुझा कभी नहीं
बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है… कमाल के शेर कहे हैं… ये दो शेर ख़ास तौर पर पसंद आये...
सुंदर प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंआप ने लिखा...
मैंने भी पढ़ा...
हम चाहते हैं कि इसे सभी पड़ें...
इस लिये आप की ये रचना...
15/05/2013 को http://www.nayi-purani-halchal.blogspot.com
पर लिंक गयी है...
आप भी इस हलचल में अवश्य शामिल होना...
बहुत सुंदर गजल.
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट तो सब कुछ बयाँ कर रही है। ………………
जवाब देंहटाएंरोशन चिराग होंसलों से था
जवाब देंहटाएंआंधी से वो बुझा कभी नहीं
चेहरे ने खुल के राज़ कह दिया
सिल्वट ने जो कहा कभी नहीं
,, सच चेहरा आइना है जिससे कुछ छिपा नहीँ रह सकता
बहुत सुन्दर
वाह बहुत ही लाजवाब, शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
है टूटता रहा तो क्या हुआ
जवाब देंहटाएंपर्वत है जो झुका कभी नहीं
वो बार बार गिर के उठ गया
नज़रों से जो गिरा कभी नहीं
हमेशा की तरह लाजवाब .....
शानदार, जानदार। वक्त की सिलवटों को संवेदना से उकेरती पंक्तियां।
जवाब देंहटाएंआशा का संचार करती प्रेरणादायक गज़ल
जवाब देंहटाएंमुश्किल यहाँ है खोजना उसे
जवाब देंहटाएंइंसान जो बिका कभी नहीं
है टूटता रहा तो क्या हुआ
पर्वत है जो झुका कभी नहीं
एक एक अल्फ़ाज़ एक एक अशआर लगे मोती जैसा
वाह!!! क्या बात है... वक़्त की सिलवटें और उनके राज़...बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंसुन्दर ग़ज़ल प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं