खौफ़ की चादर तले बुलबुल कहेगी क्या
काट दोगे पंख तो चिड़िया उड़ेगी क्या
बीज, मिट्टी, खाद सब कुछ है मगर फिर भी
खून से सींचोगे तो सरसों उगेगी क्या
दिन तो निकलेगा अँधेरी रात हो जितनी
बादलों से रोशनी यूँ रुक सकेगी क्या
बोलनी होगी तुम्हें ये दास्ताँ अपनी
तुम नहीं बोलोगे तो दुनिया सुनेगी क्या
सामने चुप पीठ पीछे जहर सी बातें
यूँ हवा दोगे तो चिंगारी बुझेगी क्या
जुस्तजू को यूँ न परखो हर कदम पर तुम
कटने को तैयार जो गर्दन झुकेगी क्या
काट दोगे पंख तो चिड़िया उड़ेगी क्या
बीज, मिट्टी, खाद सब कुछ है मगर फिर भी
खून से सींचोगे तो सरसों उगेगी क्या
दिन तो निकलेगा अँधेरी रात हो जितनी
बादलों से रोशनी यूँ रुक सकेगी क्या
बोलनी होगी तुम्हें ये दास्ताँ अपनी
तुम नहीं बोलोगे तो दुनिया सुनेगी क्या
सामने चुप पीठ पीछे जहर सी बातें
यूँ हवा दोगे तो चिंगारी बुझेगी क्या
जुस्तजू को यूँ न परखो हर कदम पर तुम
कटने को तैयार जो गर्दन झुकेगी क्या
सच है जैसा बोयेंगे वैसा ही मिलेगा ... अच्छी और सच्ची गज़ल
जवाब देंहटाएंबीज, मिट्टी, खाद सब कुछ है मगर फिर भी
जवाब देंहटाएंखून से सींचोगे तो सरसों उगेगी क्या.. laajawaab sher ... umda gazal!
दिन तो निकलेगा अँधेरी रात हो जितनी
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा ।
खौफ़ की चादर तले बुलबुल कहेगी क्या
जवाब देंहटाएंकाट दोगे पंख तो चिड़िया उड़ेगी क्या
बीज, मिट्टी, खाद सब कुछ है मगर फिर भी
खून से सींचोगे तो सरसों उगेगी क्या
गज़ब का मिसरा है श्री दिगंबर साब
बोलनी होगी तुम्हें ये दास्ताँ अपनी
जवाब देंहटाएंतुम नहीं बोलोगे तो दुनिया सुनेगी क्या
...लाज़वाब...हरेक शेर एक सार्थक सन्देश देता हुआ...
बहुत खूब ...
जवाब देंहटाएंज़बरदस्त!
जवाब देंहटाएंवाह ....... बहुत खूब
जवाब देंहटाएंशानदार,पुख्ता।
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना.
जवाब देंहटाएंhar ek sher lawajaab hai .....
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