अँधेरों को यही एहसासे-ज़िल्लत हो रही है
शहर में क्यों चराग़ों की मरम्मत हो रही है
कभी शर्मा के छुप जाना कभी हौले से छूना
न ना ना ना यकीनन ही मुहब्बत हो रही है
मेरी आवारगी की गुफ्तगू में नाम तेरा
अदब से ही लिया था पर मज़म्मत हो रही है
चुना है रास्ता कैसा, पड़ी है क्या किसी को
बुलंदी पर जो हैं उनकी ही इज्ज़त हो रही है
यहाँ पर कहकहों का शोर है लेकिन अदब से
ये कैसा घर है पहरे में मसर्रत हो रही है
उकूबत है हिमाकत या बगावत है दिये की
हवा के सामने आने की ज़ुर्रत हो रही है
झुकी पलकें, खुले गेसू, दुपट्टा आसमानी
ये दुनिया तो तेरे आने से जन्नत हो रही है
शहर में क्यों चराग़ों की मरम्मत हो रही है
कभी शर्मा के छुप जाना कभी हौले से छूना
न ना ना ना यकीनन ही मुहब्बत हो रही है
मेरी आवारगी की गुफ्तगू में नाम तेरा
अदब से ही लिया था पर मज़म्मत हो रही है
चुना है रास्ता कैसा, पड़ी है क्या किसी को
बुलंदी पर जो हैं उनकी ही इज्ज़त हो रही है
यहाँ पर कहकहों का शोर है लेकिन अदब से
ये कैसा घर है पहरे में मसर्रत हो रही है
उकूबत है हिमाकत या बगावत है दिये की
हवा के सामने आने की ज़ुर्रत हो रही है
झुकी पलकें, खुले गेसू, दुपट्टा आसमानी
ये दुनिया तो तेरे आने से जन्नत हो रही है
अमां मियाँ मज़ा आ गया...क्या शेर दागे हैं हुज़ूर...वाह भाई वाह...
जवाब देंहटाएंवाह .. बहुत खूबसूरत गज़ल
जवाब देंहटाएंउकूबत है हिमाकत या बगावत है दिये की
हवा के सामने आने की ज़ुर्रत हो रही है
बहुत खूबसूरती से लिखा है .
पूरी की पूरी गज़ल बेहतरीन , वाह दिगंबर भाई धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंI.A.S.I.H - ब्लॉग ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
हर एक पंक्तियाँ अद्भुत सुन्दर है
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर नासवा जी...मन खुश हो गया पढ़ कर..!!
उकूबत है हिमाकत या बगावत है दिये की
जवाब देंहटाएंहवा के सामने आने की ज़ुर्रत हो रही है
बहुत उंउम्दा शेर !
वाह !
जवाब देंहटाएंउम्दा गजल
खूबसूरत अभिव्यक्ति
आपकी लिखी रचना मंगलवार 10 जून 2014 को लिंक की जाएगी...............
जवाब देंहटाएंhttp://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
चुना है रास्ता कैसा, पड़ी है क्या किसी को
जवाब देंहटाएंबुलंदी पर जो हैं उनकी ही इज्ज़त हो रही है............
झुकी पलकें, खुले गेसू, दुपट्टा आसमानी
ये दुनिया तो तेरे आने से जन्नत हो रही है............ये शेर तो गजब के हैं।
बाकी शेर भी अच्छे होंगे। पर उनमें उर्दू के शब्द आए, जो समझ नहीं अाए।
वाह..... क्या अदा से जुर्रत पेश कर रहे हैं...... जन्नत की तो बाद में देखेंगे नासवा साहब..
जवाब देंहटाएंकभी शर्मा के छुप जाना कभी हौले से छूना
जवाब देंहटाएंन ना ना ना यकीनन ही मुहब्बत हो रही है
बहुत सुन्दर नासवा जी
बहुत ताज़गी भरे शेर हैं.. वाकई।
जवाब देंहटाएंमोहब्बत हर फ़िक्र से आज़ाद है. बहुत सुंदर रचना.
जवाब देंहटाएंवाह!
जवाब देंहटाएंदमदार :)
बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंबधाइयां आदरणीय-
यहाँ पर कहकहों का शोर है लेकिन अदब से
जवाब देंहटाएंये कैसा घर है पहरे में मसर्रत हो रही है
..बहुत सुन्दर उम्दा
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन पेड़ों के दर्द को क्यों नही समझते हम - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस' प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (10-06-2014) को "समीक्षा केवल एक लिंक की.." (चर्चा मंच-1639) पर भी होगी!
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
हर एक शेर ला -ज़वाब ,ख़ास ग़ज़ल ज़नाब दिगंबर नासवा साहब की।
जवाब देंहटाएंक्या बात है दिल बाग़ बाग़ हो गया !
जवाब देंहटाएंWaah... Bahut Hi Umda Panktiyan Hain
जवाब देंहटाएंभई वाह!!!!! क्या खूब लिखा है. हर शेर वज़नी है.
जवाब देंहटाएंवाह !!हर एक शेर बेहतरीन ....
जवाब देंहटाएंsunder gazal..
जवाब देंहटाएंsunder gazal..
जवाब देंहटाएंअँधेरों को यही एहसासे-ज़िल्लत हो रही है
जवाब देंहटाएंशहर में क्यों चराग़ों की मरम्मत हो रही है
... आधुनिक परिपेक्ष्य में पूर्णतया सार्थक होता लाजवाब शे'र , ग़ज़ल का हरेक अश'आर बेजोड़ लगा!
sundar abhivyakti .badhai
जवाब देंहटाएंsundar abhivyakti .badhai
जवाब देंहटाएंयक़ीनन हर एक शेर उम्दा .. वाह!
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत उम्दा ग़ज़ल...हरेक शेर बहुत ख़ूबसूरत...
जवाब देंहटाएंज़बरदस्त ग़ज़लें आ रही हैं आपकी कलम से. यह सिलसिला चलता रहे.
जवाब देंहटाएंअँधेरों को यही एहसासे-ज़िल्लत हो रही है
जवाब देंहटाएंशहर में क्यों चराग़ों की मरम्मत हो रही है
चुना है रास्ता कैसा, पड़ी है क्या किसी को
बुलंदी पर जो हैं उनकी ही इज्ज़त हो रही है
उकूबत है हिमाकत या बगावत है दिये की
हवा के सामने आने की ज़ुर्रत हो रही है
एक से बढ़कर एक शेर आदरणीय बहुत शानदार ग़ज़ल
खूबसूरत अशआर से सजी लाजवाब ग़ज़ल. कमाल के शेर हैं. दाद निकलती है हर शेर पर. कुछ तो व्यवस्था और हालात पर ज़बर्दस्त तंज़ करते नज़र आ रहे हैं. तहे दिल से मुबारकबाद.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
जवाब देंहटाएंसुन्दर ग़ज़ल...
बहुत सुंदर नासवा जी ! मंगलकामनाएं आपको !
जवाब देंहटाएंसबसे पहले तो टिप्पणी फार्म वापस पाने की बधाई :-))
जवाब देंहटाएंइस ग़ज़ल के लिए खास दाद देना चाहूँगा | एक मुक़म्मल ग़ज़ल .....हर शेर उम्दा और कसा हुआ | बहुत ही बढ़िया लगी...वाह , वाह
वाह बहुत खूब जी
जवाब देंहटाएंuncle kaam se lautne k baad ki poori thakan hi maano gayab ho gayi ho is ghazal k padhne se. . maja aa gaya sir.! :)
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंचुना है रास्ता कैसा, पड़ी है क्या किसी को
जवाब देंहटाएंबुलंदी पर जो हैं उनकी ही इज्ज़त हो रही है
यहाँ पर कहकहों का शोर है लेकिन अदब से
ये कैसा घर है पहरे में मसर्रत हो रही है
एक एक अल्फ़ाज़ एक एक अशआर मोती जैसा
चुना है रास्ता कैसा, पड़ी है क्या किसी को
जवाब देंहटाएंबुलंदी पर जो हैं उनकी ही इज्ज़त हो रही है
...वाह...हरेक शेर दिल को छूता हुआ..बहुत उम्दा ग़ज़ल...
लाजवाब ...
जवाब देंहटाएंदमदार शायरी!
जवाब देंहटाएंbahut khubsurt _/\_
जवाब देंहटाएंनि:शब्द करते भाव .....
जवाब देंहटाएंचुना है रास्ता कैसा, पड़ी है क्या किसी को
जवाब देंहटाएंबुलंदी पर जो हैं उनकी ही इज्ज़त हो रही है..
bilkul steek panktiyaan... ati sunder