समय की ताकत को पहचानने वाले पल, बस कुछ ही आते हैं जीवन में ... आज की तारीख के बारे में सोचता हूँ तो कुछ ऐसा ही महसूस होता है ... बीतते बीतते आज माँ से बिछड़े दो साल हो ही गए ... हालांकि उस दीवार पर आज भी उनकी फोटो नहीं लगा पाया ... स्वर्गीय, श्रधांजलि जैसे शब्द उनके लिए इस्तेमाल करने से पहले घबराहट होने लगती है ... ये जरूर है की सोचते सोचते कई बार संवाद जरूर करने लगता हूँ माँ के साथ विशेष कर जब जब उसका तर्क समय की ताकत को पहचानने के लिए होता है ...
मुझे पाता है
तुम कहीं नहीं जाओगी
हालांकि जो कुछ भी तुम्हारे बस में था
उससे कहीं ज्यादा कर चुकी हो हम सब के लिए
सच मायने में जो हमारा फ़र्ज़ था
तुम तो वो भी कर चुकी हो
बिना बताए, बिना जतलाए
तुमसे बेहतर कौन जानता था हमारी क्षमता को
इसी विश्वास के बल पे कह रहा हूँ
तुम रहोगी आस पास हमेशा हमेशा के लिए
वैसे भी माँ को बच्चों से दूर
कौन रख सका है भला ...
मुझे पाता है
तुम कहीं नहीं जाओगी
हालांकि जो कुछ भी तुम्हारे बस में था
उससे कहीं ज्यादा कर चुकी हो हम सब के लिए
सच मायने में जो हमारा फ़र्ज़ था
तुम तो वो भी कर चुकी हो
बिना बताए, बिना जतलाए
तुमसे बेहतर कौन जानता था हमारी क्षमता को
इसी विश्वास के बल पे कह रहा हूँ
तुम रहोगी आस पास हमेशा हमेशा के लिए
वैसे भी माँ को बच्चों से दूर
कौन रख सका है भला ...
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