आसमान पे नज़र टिकाई होती है
शहरों की चंचल चितवन के क्या कहने
मेकप की इक परत चढ़ाई होती है
दफ्तर में तो धूल जमी होती है पर
गांधी की तस्वीर लगाई होती है
उनका दिल टूटा तो वो भी जान गए
मिलने के ही बाद जुदाई होती है
चौड़ा हो जाता है बापू का सीना
बेटे की जिस रोज कमाई होती है
बूढी कमर झुकी होती है पर घर की
जिम्मेदारी खूब उठाई होती है
हो जाता है दिल सूना, घर सूना सा
बेटी की जिस रोज बिदाई होती है
चलते चलते एक और शेर ...
जिसने भी ये आग लगाई होती है
तीली हलके से सुलगाई होती है
खेतों में जब फसल उगाई होती है
मेकप की इक परत चढ़ाई होती है
दफ्तर में तो धूल जमी होती है पर
गांधी की तस्वीर लगाई होती है
उनका दिल टूटा तो वो भी जान गए
मिलने के ही बाद जुदाई होती है
चौड़ा हो जाता है बापू का सीना
बेटे की जिस रोज कमाई होती है
बूढी कमर झुकी होती है पर घर की
जिम्मेदारी खूब उठाई होती है
हो जाता है दिल सूना, घर सूना सा
बेटी की जिस रोज बिदाई होती है
चलते चलते एक और शेर ...
जिसने भी ये आग लगाई होती है
तीली हलके से सुलगाई होती है
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