मुझे ता उम्र काँटों पर सुला दे
मगर बस नींद आने की दुआ दे
थके हारों को पल भर सुख मिलेगा
हवा चल कर पसीना जो सुखा दे
सजा अपनी करूंगा मैं मुक़र्रर
गुनाहों से मेरे पर्दा उठा दे
बराबर से मिलेगी धूप सबको
ये सूरज फैंसला अपना सुना दे
चुनौती दी है जो परवाज़ की तो
मुझे आकाश भी खुल कर खुला दे
कदम दो साथ मिल कर चल न पाया
वफ़ा के उस पुजारी को भुला दे
मगर बस नींद आने की दुआ दे
थके हारों को पल भर सुख मिलेगा
हवा चल कर पसीना जो सुखा दे
सजा अपनी करूंगा मैं मुक़र्रर
गुनाहों से मेरे पर्दा उठा दे
बराबर से मिलेगी धूप सबको
ये सूरज फैंसला अपना सुना दे
चुनौती दी है जो परवाज़ की तो
मुझे आकाश भी खुल कर खुला दे
कदम दो साथ मिल कर चल न पाया
वफ़ा के उस पुजारी को भुला दे
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है