फर्क करना मुश्किल होता है की तू यादों में या असल में साथ होती है (सच कहूं तो फर्क करना भी नहीं चाहता) ... हाँ जब कभी भी तेरी जरूरत महसूस होती है तू आस-पास ही होती है ... माँ है मेरी कहाँ जा सकती है मुझसे दूर ...
यकीनन तू मेरी यादों में अम्मा मुस्कुराती है
तभी तो खुद ब खुद चेहरे पे ये मुस्कान आती है
तो क्या है सब दिगंबर नाम से हैं जानते मुझको
मुझे भाता है जब तू प्यार से छोटू बुलाती है
में घर से जब निकलता हूँ बड़े ही लाड से मुझको
लगे कोई नज़र न आज भी काजल लगाती है
बुरी आदत कभी जब देख लेती है मेरे अन्दर
नहीं तू डांटने से आज भी फिर हिचकिचाती है
में बचपन में जरा कमजोर था पर आज भी अक्सर
फकीरों की मजारों पर मेरा माथा टिकाती है
रफ़ी आशा लता गीता सुरैया या तलत सहगल
पुराने गीत हों तो साथ अम्मा गुनगुनाती है
बढ़ा के हाथ अपना थाम लेती है वो चुपके से
मेरी कश्ती भंवर में जब कभी भी डगमगाती है
यकीनन तू मेरी यादों में अम्मा मुस्कुराती है
तभी तो खुद ब खुद चेहरे पे ये मुस्कान आती है
तो क्या है सब दिगंबर नाम से हैं जानते मुझको
मुझे भाता है जब तू प्यार से छोटू बुलाती है
में घर से जब निकलता हूँ बड़े ही लाड से मुझको
लगे कोई नज़र न आज भी काजल लगाती है
बुरी आदत कभी जब देख लेती है मेरे अन्दर
नहीं तू डांटने से आज भी फिर हिचकिचाती है
में बचपन में जरा कमजोर था पर आज भी अक्सर
फकीरों की मजारों पर मेरा माथा टिकाती है
रफ़ी आशा लता गीता सुरैया या तलत सहगल
पुराने गीत हों तो साथ अम्मा गुनगुनाती है
बढ़ा के हाथ अपना थाम लेती है वो चुपके से
मेरी कश्ती भंवर में जब कभी भी डगमगाती है
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