उदास रात का मंजर अगर नहीं आता
कभी में लौट के फिर अपने घर नहीं आता
में भूल जाता ये बस्ती, गली ये घर आँगन
कभी जो राह में बूढा शजर नहीं आता
जो जान पाता तेरी ज़ुल्फ़ है घना जंगल
कभी भी रात बिताने इधर नहीं आता
समझ गया था तेरी खौफनाक चालों को
में इसलिए भी कभी बे-खबर नहीं आता
बदल के रुख यूँ बदल दी चराग की किस्मत
हवा के सामने वर्ना नज़र नहीं आता
में अपने शेर भी लिख लिख के काट देता हूँ
कोई भी शेर मुकम्मल बहर नहीं आता
उसूल अपने बना कर जो हम निकल पड़ते
हमारी सोच पे उनका असर नहीं आता
कभी में लौट के फिर अपने घर नहीं आता
में भूल जाता ये बस्ती, गली ये घर आँगन
कभी जो राह में बूढा शजर नहीं आता
जो जान पाता तेरी ज़ुल्फ़ है घना जंगल
कभी भी रात बिताने इधर नहीं आता
समझ गया था तेरी खौफनाक चालों को
में इसलिए भी कभी बे-खबर नहीं आता
बदल के रुख यूँ बदल दी चराग की किस्मत
हवा के सामने वर्ना नज़र नहीं आता
में अपने शेर भी लिख लिख के काट देता हूँ
कोई भी शेर मुकम्मल बहर नहीं आता
उसूल अपने बना कर जो हम निकल पड़ते
हमारी सोच पे उनका असर नहीं आता
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