चोट खाई गिर पड़े खड़े हुए
ज़िंदगी में इस कदर बड़े हुए
दर्द दे रहे हैं अपने क्या करूं
तिनके हैं जो दांत में अड़े हुए
उनको कौन पूछता है फूल जो
आँधियों की मार से झड़े हुए
दौर है बदल गए बुज़ुर्ग अब
घर की चारपाई में पड़े हुए
तुम कभी तो देख लेते आइना
हम तुम्हारी नाथ में हैं जड़े हुए
मत कुरेदिए हमारे ज़ख्म को
कुछ पुराने दर्द हैं गड़े हुए
ज़िंदगी में इस कदर बड़े हुए
दर्द दे रहे हैं अपने क्या करूं
तिनके हैं जो दांत में अड़े हुए
उनको कौन पूछता है फूल जो
आँधियों की मार से झड़े हुए
दौर है बदल गए बुज़ुर्ग अब
घर की चारपाई में पड़े हुए
तुम कभी तो देख लेते आइना
हम तुम्हारी नाथ में हैं जड़े हुए
मत कुरेदिए हमारे ज़ख्म को
कुछ पुराने दर्द हैं गड़े हुए
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