ईंट ईंट घर की दरकने लगी
नीव खुद-ब-खुद ही सरकने लगी
बात जब बदलने लगी शोर में
छत दरो दिवार चटकने लगी
क्या हुआ बदलने लगा आज रुख
जलने से मशाल हिचकने लगी
बादलों को ले के उड़ी जब हवा
धूप बे-हिसाब दहकने लगी
दीप आँधियों में भी जलता रहा
रात को ये बात खटकने लगी
धर्म के गुज़रने लगे काफिले
गर्द फिर लहू से महकने लगी
सच की बारिशें जो पड़ीं झूम के
झूठ की ज़मीन सरकने लगी
बे-नकाब यूँ ही तुम्हे देख कर
बिन पिए ही रात बहकने लगी
नीव खुद-ब-खुद ही सरकने लगी
बात जब बदलने लगी शोर में
छत दरो दिवार चटकने लगी
क्या हुआ बदलने लगा आज रुख
जलने से मशाल हिचकने लगी
बादलों को ले के उड़ी जब हवा
धूप बे-हिसाब दहकने लगी
दीप आँधियों में भी जलता रहा
रात को ये बात खटकने लगी
धर्म के गुज़रने लगे काफिले
गर्द फिर लहू से महकने लगी
सच की बारिशें जो पड़ीं झूम के
झूठ की ज़मीन सरकने लगी
बे-नकाब यूँ ही तुम्हे देख कर
बिन पिए ही रात बहकने लगी
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