उग रहे बारूद खन्जर इन दिनों
हो गए हैं खेत बन्जर इन दिनों
चौकसी करती हैं मेरी कश्तियाँ
हद में रहता है समुन्दर इन दिनों
आस्तीनों में छुपे रहते हैं सब
लोग हैं कितने धुरन्धर इन दिनों
आदतें इन्सान की बदली हुईं
शहर में रहते हैं बन्दर इन दिनों
आ गए पत्थर सभी के हाथ में
हो गए हैं सब सिकन्दर इन दिनों
हो गए हैं खेत बन्जर इन दिनों
चौकसी करती हैं मेरी कश्तियाँ
हद में रहता है समुन्दर इन दिनों
आस्तीनों में छुपे रहते हैं सब
लोग हैं कितने धुरन्धर इन दिनों
आदतें इन्सान की बदली हुईं
शहर में रहते हैं बन्दर इन दिनों
आ गए पत्थर सभी के हाथ में
हो गए हैं सब सिकन्दर इन दिनों
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