दबी है आत्मा उसका पुनः चेतन करो तुम
नियम जो व्यर्थ हैं उनका भी मूल्यांकन
करो तुम
परेशानी में हैं जो जन सभी को साथ ले कर
व्यवस्था में सभी आमूल परिवर्तन करो तुम
तुम्हें जो प्रेम हैं करते उन्हें ठुकरा
न देना
समय फिर आए ना ऐसा की आवेदन करो तुम
अभी भी मान लो सच को बहुत आसान होगा
कहीं लक्षमण की रेखा का न उल्लंघन करो तुम
समझदारी से अपनी बात सबके बीच रखना
कहीं अपने ही शब्दों में न संशोधन करो
तुम
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