इक उम्र लग गई है मगर मान तो गया
मुझ को वो आज नाम से पहचान तो गया
अब जो भी फैंसला हो वो मंज़ूर है मुझे
जिसको भी जानना था वो सच जान तो
गया
दीपक हूँ मैं जो बुझ न सकूंगा हवाओं
से
कोशिश तमाम कर के ये तूफ़ान तो गया
बिल्डर की पड़ गई है नज़र रब भली करे
बच्चों के खेलने का ये मैदान तो गया
टूटे हुए किवाड़ सभी खिड़कियाँ खुली
बिटिया के सब दहेज़ का सामान तो गया
कर के हलाल दो ही दिनों में मेरा बजट
अच्छा हुआ जो घर से ये मेहमान तो गया
(तरही गज़ल)
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