कहाँ खिलते हैं फूल रेगिस्तान में ... हालांकि पेड़ हैं जो
जीते हैं बरसों बरसों नमी की इंतज़ार में ... धूल है की साथ छोड़ती नहीं ... नमी है
की पास आती नहीं ... कहने को रेतीला सागर साथ है ...
मैंने चाहा तेरा हर दर्द
अपनी रेत के गहरे समुन्दर में लीलना
तपती धूप के रेगिस्तान में मैंने कोशिश की
धूल के साथ उड़ कर
तुझे छूने का प्रयास किया
पर काले बादल की कोख में
बेरंग आंसू छुपाए
बिन बरसे तुम गुजर गईं
आज मरुस्थल का वो फूल भी मुरझा गया
जी रहा था जो तेरी नमी की प्रतीक्षा में
कहाँ होता है चाहत पे किसी का बस ...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है