तलाश ... शब्द तो छोटा हैं पर इसका सफ़र, इसकी तलब, ख़त्म
नहीं होती जब तक ये पूरी न हो ... कई बार तो पूरी उम्र बीत जाती है और ज़िन्दगी लौट
के उसी लम्हे पे आ आती है जहाँ खड़ा होता है जुदाई का बेशर्म लम्हा ... ढीठता के
साथ ...
उम्र के अनगिनत हादसों की भीड़ में
दो जोड़ी आँखों की तलाश
वक़्त के ठीक उसी लम्हे पे ले जाती है
जहाँ छोड़ गईं थीं तुम
वापस ना लौटने के लिए
उस लम्हे के बाद से
तुम तो हमेशा के लिए जवान रह गईं
पर मैं ...
शरीर पर वक़्त की सफेदी ओढ़े
ढूँढता रहा अपने आप को
जानता हूं हर बीतता पल
नई झुर्रियां छोड़ जाता है चेहरे पे
गुज़रे हुवे वक़्त के साथ
उम्र झड़ती है हाथ की लकीरों से
पर सांसों का ये सिलसिला
ख़त्म होने का नाम नहीं लेता
पता नहीं वो लम्हा
वक़्त के साथ बूढ़ा होगा भी या नहीं ...
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