सम्मोहन, बदहवासी ... पर किस बात की ... जैसे कुछ पकड़ में
नहीं आ रहा ... चेहरे ही चेहरे या सारे मेरे चेहरे ... फिसल रही हो तुम या मैं या जिंदगी या कुछ और ...
सतह कहाँ है ...
बेवजह बातें के लिए
लंबी रात का होना जरूरी नहीं
मौन का संवाद कभी बेवजह नहीं होता
हालांकि रात
कई कई दिन लंबी हो जाती है
उनको देखा
देखते ही रह गया
इसलिए तो प्यार नहीं होता
प्यार की वजह खोजने में
उम्र कम पड़ जाती है
कुछ समय बाद करने से ज्यादा
वजह जानना जरूरी होने लगता है
हालांकि मुसलसल कुछ नहीं होता
जिंदगी के अंधेरे कूँवे में फिसलते लोगों के सिवा
नज़र नहीं आ रही पर ज़मीन मिलेगी पैरों को
अगर इस कशमकश में बचे रहे
फिसलन के इस लंबे सफर में
जानी पहचानी बदहवास शक्लें देख कर
मुस्कुराने को जी चाहता है
कितना मिलती जुलती हैं मेरी तस्वीर से ये शक्लें
ऐसा तो नहीं आइना टूट के बिखरा हो
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