बारूद की खुशबू है, दिन रात हवाओं में
देता है कोई छुप कर, तकरीर सभाओं में
इक याद भटकती है, इक रूह सिसकती है
घुंघरू से खनकते हैं, खामोश गुफाओं में
बादल तो नहीं गरजे, बूँदें भी नहीं आईं
कितना है असर देखो, आशिक की दुआओं में
चीज़ों से रसोई की, अम्मा जो बनाती थी
देखा है असर उनका, देखा जो दवाओं में
हे राम चले आओ, उद्धार करो सब का
कितनी हैं अहिल्याएं, कल-युग की शिलाओं में
जीना तो तेरे दम पर, मरना तो तेरी खातिर
मिलते हैं मेरे जैसे, किरदार कथाओं में
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