बस वही मेरी निशानी, है अभी तक गाँव में
बोलता था जिसको नानी, है अभी तक गाँव में
खंडहरों में हो गई तब्दील पर अपनी तो है
वो हवेली जो पुरानी, है अभी तक गाँव में
चाय तुलसी की, पराठे, मूफली गरमा गरम
धूप सर्दी की सुहानी, है अभी तक गाँव में
याद है घुँघरू का बजना रात के चोथे पहर
क्या चुड़ेलों की कहानी, है अभी तक गाँव
में ?
लौट के आऊँ न आऊँ पर मुझे विश्वास है
जोश, मस्ती और जवानी, है अभी तक गाँव में
दूर रह के गाँव से इतने दिनों तक क्या
किया
ये कहानी भी सुनानी, है अभी तक गाँव में
(तरही गज़ल - पंकज सुबीर जी के मुशायरे में लिखी, जो दिल के
हमेशा करीब है)
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