अपने मन मोहने सांवले रंग में
श्याम रँग दो हमें सांवरे रंग में
मैं ही अग्नि हूँ जल पृथ्वी वायु गगन
आत्मा है अजर सब मेरे रंग में
ओढ़ कर फिर बसंती सा चोला चलो
आज धरती को रँग दें नए रंग में
थर-थराते लबों पर सुलगती हंसी
आओ रँग दें तुम्हें इश्क के रंग में
आसमानी दुपट्टा छलकते नयन
सब ही मदहोश हैं मद भरे रंग में
रंग भगवे में रँगता हूँ दाड़ी तेरी
तुम भी चोटी को रँग दो हरे रंग में
जाम दो अब के दे दो ज़हर साकिया
रँग चुके हैं यहाँ सब तेरे रंग में
(तरही गज़ल - पंकज सुबीर जी के मुशायरे में लिखी, जो दिल के
हमेशा करीब रहती है)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है