लहू का रंग है यकसाँ कहा शमशीर भालों ने
लगा डाली है फिर भी आग बस्ती के दलालों
ने
यकीनन दूर है मंज़िल मगर मैं ढूंढ ही
लूंगा
झलक दिखलाई है मुझको अँधेरे में उजालों
ने
वो लड़की है तो माँ के पेट में क्या ख़त्म
हो जाए
झुका डाली मेरी गर्दन कुछ ऐसे ही सवालों
ने
अलग धर्मों के भूखे नौजवानों का था कुछ
झगड़ा
खबर दंगों की झूठी छाप दी अख़बार वालों
ने
हवा भी साथ बेशर्मी से इनका दे रही है
अब
शहर के हुक्म से जंगल जला डाला मशालों
ने
वो अपना था पराया था वो क्या कुछ ले के भागा है
कहानी खोल के रख दी है कुछ मजबूत तालों ने
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