छत भिगोने आ गईं जो बदलियाँ
शोर क्यों करती हैं इतना बिजलियाँ
आदमी शहरों के ऐसे हो गए
चूस कर छोड़ी हों जैसे गुठलियाँ
फेर में कानून के हम आ गए
अब कराहेंगी हमारी पसलियाँ
हाथ में आते ही सत्ता क्या हुआ
पी गईं सागर को खुद ही मछलियाँ
उँगलियों की चाल, डोरी
का चलन
जानती हैं खेल सारा पुतलियाँ
खुल गया टांका पुराने दर्द का
रो रही हैं आज क्यों फिर पुतलियाँ
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