जिनके जीवन में हमेशा प्रेम है, उल्लास
है
दर्द जितना भी मिले टिकता नहीं फिर पास
है
दूसरों के घाव सिलने से नहीं फुर्सत
जिन्हें
अपने उधड़े ज़ख्म का उनको कहाँ आभास है
होठ चुप हैं पर नज़र को देख कर लगता है
यूँ
दिल धड़कता है मेरा शायद उन्हें एहसास है
दिन गुज़रते ही जला लेते हैं अपने जिस्म
को
जुगनुओं का रात से रिश्ता बहुत ही ख़ास
है
आंधियां उस मोड़ से गुज़रीं थी आधी रात को
दीप लेकिन जल रहे होंगे यही विश्वास है
सिरफिरे लोगों का ही अंदाज़ है सबसे जुदा
पी के सागर कह रहे दिल में अभी भी प्यास
है
हों भले ही राम त्रेता युग के नायक, क्या
हुआ
राम से ज़्यादा लखन के नाम ये बनवास है
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