होठ दांतों में दबाना तो नहीं
यूँ ही कुछ कहना सुनाना तो नहीं
आप जो मसरूफ दिखते हो मुझे
गम छुपाने का बहाना तो नहीं
एक टक देखा हँसे फिर चल दिए
सच कहो, ये दिल लगाना तो नहीं
पास आना फिर सिमिट जाना तेरा
प्रेम ही है ना, सताना
तो नहीं
कप से मेरे चाय जो पीती हो तुम
कुछ इशारों में बताना तो नहीं
सच में क्या इग्नोर करती हो मुझे
ख्वामखा ईगो दिखाना तो नहीं
इक तरफ झुकना झटकना बाल को
उफ्फ, अदा ये कातिलाना तो नहीं
रात भर "चैटिंग" सुबह की ब्लैंक काल
प्रेम ही था "मैथ" पढ़ाना तो नहीं
कुछ तो था अकसर करा करतीं थीं तुम
बाल में ऊँगली फिराना तो नहीं
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है