सूरज खिला तो धूप के साए मचल गए
कुछ बर्फ के पहाड़ भी झट-पट पिघल गए
तहजीब मिट गयी है नया दौर आ गया
इन आँधियों के रुख तो कभी के बदल गए
जोशो जुनून साथ था किस्मत अटक गई
हम साहिलों के पास ही आ कर फिसल गए
झूठे परों के साथ कहाँ तक उड़ोगे तुम
मंज़िल अभी है दूर ये सूरज भी ढल गए
निकले तो कितने लोग थे अपने मुकाम पर
पहुंचे वही जो वक़्त के रहते संभल गए
मजबूरियों की आड़ में सब कुछ लिखा लिया
बच्चे ज़मीन कैश सभी कुछ निगल गए
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