जीत मेरी हो न तेरी हार हो
जो सही है बस वही हरबार हो
रात ने बादल के कानों में कहा
हट जरा सा चाँद का दीदार हो
नाव उतरेगी सफीनों से तभी
हाथ में लहरों के जब पतवार हो
है मुझे मंज़ूर हर व्योपार पर
पाँच ना हो दो जमा दो, चार हो
मौत है फिर भी नदी का ख्वाब
है
बस समुन्दर ही मेरा घरबार हो
इक नया इतिहास लिख दूंगा सनम
साथ गर मेरा तुम्हे स्वीकार
हो
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