चूड़ियाँ कुछ तो
लाल रक्खी हैं
जाने क्यों कर
संभाल रक्खी हैं
जिन किताबों में
फूल थे सूखे
शेल्फ से वो
निकाल रक्खी हैं
हैं तो ये
गल्त-फहमियाँ लेकिन
चाहतें दिल में
पाल रक्खी हैं
बे-झिझक रात में
चले आना
रास्तों पर मशाल
रक्खी हैं
वो नहीं पर
निशानियाँ उनकी
यूँ ही बस साल
साल रक्खी हैं
चिट्ठियाँ कुछ तो
फाड़ दीं हमनें
कुछ दराज़ों में
डाल रक्खी हैं
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