कभी तो गूंजो कान में
गुज़र जाओ छू के कंधा
गुज़र जाती है क़रीब से जैसे आवारा हवा
उतर आओ हथेली की रेखाओं में
जैसे सर्दी की कुनमुनाती धूप
खिल उठो जैसे खिलता है जंगली गुलाब
पथरीली जमीन पर
झांको छुप छुप के झाड़ी के पीछे से
झाँकता है जैसे चाँद बादल की ओट से
मिल जाओ अचानक नज़रें चुराते
मिलते हैं जाने पहचाने दो अजनबी जैसे
मैं चाहता हूँ तुम्हें ढूँढ निकालना
अतीत के गलियारे से
वर्तमान की राह पर ...
गुज़र जाओ छू के कंधा
गुज़र जाती है क़रीब से जैसे आवारा हवा
उतर आओ हथेली की रेखाओं में
जैसे सर्दी की कुनमुनाती धूप
खिल उठो जैसे खिलता है जंगली गुलाब
पथरीली जमीन पर
झांको छुप छुप के झाड़ी के पीछे से
झाँकता है जैसे चाँद बादल की ओट से
मिल जाओ अचानक नज़रें चुराते
मिलते हैं जाने पहचाने दो अजनबी जैसे
मैं चाहता हूँ तुम्हें ढूँढ निकालना
अतीत के गलियारे से
वर्तमान की राह पर ...
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