वक़्त के इक वार से पर्वत दहल गया
वक़्त के आँचल तले सपना कुचल गया
फर्श से वो अर्श पे पल भर में आ गए
वक़्त के हाथों में जो लम्हा मचल गया
गर्त में हम वक़्त के डूबे जरूर थे
वक़्त पर अपना भी वक़्त पे संभल गया
हम सवालों के जवाबो में उलझ गए
वक़्त हमको छोड़ के आगे निकल गया
वक़्त ने सब सोच के करना था वक़्त पे
वक़्त अपना वक़्त आने पे बदल गया
जेब में रहती थी दुनिया वक़्त पे नज़र
पर न जाने कब ये मुट्ठी से फिसल गया
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