खेत होंगे कुदाल
भी होगी
लहलहाती सी डाल
भी होगी
धूप के इस तरह
मुकरने में
कुछ तो बादल की
चाल भी होगी
गौर से इसकी थाप
को सुनना
बूँद के साथ ताल
भी होगी
जोर से बोल दें अगर पापा
पूछने की मजाल भी होगी
सब्जी, रोटी
के साथ है मीठा
आज डब्बे में दाल
भी होगी
उनकी यादों के
अध-जले टुकड़े
आसमानी सी शाल भी
होगी
यूँ उजाला नज़र
नहीं आता
चुप सी जलती मशाल
भी होगी
प्रेम जीता हो
दिल में तो अकसर
एक प्रतिमा विशाल
भी होगी
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