सजाई महफिलें जो
प्रेम की खामोश पायल ने
मधुर वंशी बजा दी
नेह की फिर श्याम श्यामल ने
शिकायत क्या करूँ
इस खेल में मैं भी तो शामिल हूँ
मेरी नींदों को
छीना है किसी मासूम काजल ने
वो मिलते ही
हकीकत हर किसी की जान लेता है
मचा रक्खी है
कैसी खलबली उस एक पागल ने
मुकम्मल जानने को
क्यों तुम्हें हर बात हो मालुम
पके हैं या के
हैं कच्चे बता दी एक चावल ने
फलक तो मिल गया
लेकिन कसक सी रह गयी दिल में
न जाने क्यों
मेरा रस्ता नहीं रोका है बादल ने
सितम, दुःख
दर्द, मुश्किल राह में जितनी चली आएं
बलाओं से बचा
रक्खा है मुझको माँ के आँचल ने
जी नमस्ते , आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में मंगलवार 24 मार्च 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएं......
सादर
रेणु
आभार आपका रेणु की
हटाएंवाह!दिगंबर जी ,बेहतरीन सृजन !
जवाब देंहटाएंसितम दुख दर्द ,मुश्किल राह में जितनी चली आएं
बलाओं से बचा रखा है मुझको माँ के आँचल नें ।
वाह !अद्भुत .
आभार शुभा की आपका ...
हटाएंफलक तो मिल गया लेकिन कसक सी रह गयी दिल में
जवाब देंहटाएंन जाने क्यों मेरा रस्ता नहीं रोका है बादल ने
बहुत खूब ,लाज़बाब गजल जिसे पढ़ने से मैं महरूम रह गई थी आज सखी रेणु ने इसे पढ़ने का सुअवसर दिया ,सादर नमन
आपका आ हर कामिनी की आपने समय निकाल कर इसे पढ़ा और सराहा ...
हटाएंवाह।
जवाब देंहटाएंवाह
वाह।
हर एक शेर तरासा हुआ और धारदार।
आभार रोहितास जी
हटाएंबहुत सुंदर ग़ज़ल सर। आपकी लेखनी से पहले की तरह नियमित रचनाओं का इंतजार है।
जवाब देंहटाएंआभार मीना जी ... कोशिश है नियमित होने की ...
हटाएंमुकम्मल जानने को क्यों तुम्हें हर बात हो मालुम
जवाब देंहटाएंपके हैं या के हैं कच्चे बता दी एक चावल ने
बेहद लाजवाब गजल
एक से बढ़कर एक शेर
निःशब्द हो जाती हूँ आपके लेखन पर प्रतिक्रिया के लिए शब्द बहुत बौने लगते हैं...
बस वाह!!!!
आपका स्नेह बना रहे 🙏🙏🙏
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